दुनिया को जीता- लोगों ने कहा अंग्रेजी के बिना कैसे बनोगे IAS तो उसने यूपीएससी में टॉप कर दिखाया

New Delhi : प्रशासनिक अधिकारी बनने के लिए दी जाने वाली सिविल सेवा परीक्षा में हिंदी माध्यम के अभ्यार्थियों में अक्सर असमंजस की स्थिति रहती है। ये धारणा है कि हिंदी माध्यम से परीक्षा देने वाले अभ्यार्थियों का चयन अंग्रेजी माध्यम में परीक्षा देने वालों की अपेक्षा कम होता। इसके पीछे तर्क देते हुए उन आंकड़ों की बात की जाती है जिसमें अंग्रेजी माध्यम से परीक्षा देने वालों का चयन ज्यादा होता है। आज हम आपको ऐसे आईएएस के बारे में बताएंगे जिन्होंने इन सभी धारणाओं को झुठलाते हुए यूपीएएसी परीक्षा में 13वां रैंक हासिल किया था।

इनका नाम है निशांत जैन। इन्होंने 2014 में यूपीएससी की परीक्षा दी थी। उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के रहने वाले निशांत एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उन्होंने अपनी पूरी पढ़ाई हिंदी माध्यम से की। लेकिन कभी भी अंग्रेजी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। वे शुरू से ही पढ़ाई लिखाई में अव्वल रहे। 10वीं और 12वीं कक्षा में उन्हें सबसे ज्यादा अंक मिले। उन्होंने बचपन में ही ठान लिया था कि उन्हें प्रशासनिक सेवा में जाना है।

इसके पीछे वो बताते हैं कि जब किसी सरकारी कागज पर वे किसी व्यक्ति का नाम अधिकारी की उपाधि के साथ लिखा हुआ देखते तो उन्हें बड़ा अच्छा लगता। बचपन से ही वो चाहते थे कि वो भी एक अधिकारी बने। जब उन्हें 10वीं कक्षा में पता चला कि अधिकारी बनने के लिए यूपीएससी नाम की परीक्षा देनी होती है तो उन्होंने अपने आपको परीक्षा के लिए तभी से तैयार करना शुरू कर दिया। जहां उनके गांव में सांइस स्ट्रीम का चलन था तो उन्होंने अपनी पढ़ाई आर्ट्स स्ट्रीम से जारी रखनी चाही।

निशांत बताते हैं कि उस समय ये धारणा थी कि ज्यादातर आईएएस आर्ट्स के विषय पढ़कर ही बनते हैं। जब ग्रेजुएशन किया तो उन्होंने तुंरत परीक्षा देने की बजाए नौकरी की। वो अपने पैसों से तैयारी करना चाहते थे। निशांत बताते हैं कि उन्होंने जीवन में कई परीक्षाएं दी लेकिन कोई परीक्षा अंग्रेजी माध्यम से नहीं दी। लेकिन जब यूपीएसी परीक्षा की तैयारी करने लगे तो उनके कई साथियों ने हिंदी को लेकर उन्हें कई बार टोका कि अंग्रेजी में परीक्षा दे सकते तो हो तो अंग्रेजी में ही दो। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने पूरी मेहनत से हिंदी में ही तैयारी की। निशांत कहते हैं कि मैंने हिंदी को अपनी कमजोरी नहीं बल्कि अपनी मजबूती माना।

अंग्रेजी के बारे में निशांत कहते हैं कि अंग्रेजी पर पकड़ होना भी जरूरी है लेकिन अंग्रेजी ही सफलता की सीढ़ी है ऐसा सोचना बिल्कुल गलत है। उन्होंने बताया कि जब वो तैयारी कर रह थे तो अच्छे नोट्स अंग्रेजी में ही मिलते थे जिन्हें पढ़ने में कभी गुरेज नहीं किया। निशांत कहते हैं कि यह साइकोलॉजी में भी कहा गया है कि अपनी मातृभाषा में हम जितने अच्छे से कोई उत्तर लिख सकते हैं, उतने अच्छे से दूसरी भाषा में नहीं लिख सकते। लेकिन हिंदी में ही पूरी पकड़ बना लें और मेहनत करें।

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