New Delhi : भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव के साथी रहे चंद्रशेखर आजाद कीसी परिचय के मोहताज नहीं है। भारत की आजादी में दो विचारधाराएं मुख्य रूप से उभर कर सामने आती हैं। जिसमें पहली है बिना खड़ग-बिना ताल वाली और दूसरी वो है जिसमेें कहा जाता था कि बेहरों को सुनाने के लिए धमाकों की जरूरत होती है। दूसरी विचारधारा भगत सिंह और उनके साथियों की थी जो गांधी के अहिंसा वाले विचार से अलग थी। इसी विचारधारा का हिस्सा थे चंद्रशेखर आजाद, जिन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर अंग्रेजी शासन की चूलें हिला दी थीं।
Pistol & last photograph of Sri #ChandrashekharAzad Alfred Park Allahabad. 🙏🙏🚩🇮🇳 pic.twitter.com/SMQYaXti97
— Pankaj Tripathi (@Pankajchinu) August 10, 2020
अंग्रेज उन्हें मोस्ट वांटेड की तरह घर-घर और चप्पे-चप्पे में ढ़ूंढ़ते फिरते थे। भारत माता के इस लाल को अंग्रेज जब सामने से नहीं पकड़ पाए तो चुपके से उन्हें घेर कर मारने की कोशिश की थी। लेकिन चंद्रशेखर ने अंग्रेजों के हाथों पकड़े जाने की बजाए खुद को गोली मार ली थी। इलाहबाद के जिस अल्फ्रेड पार्क में वो शहीद हुए थे वहां पूजा होने लगी थी। वहां की मिट्टी लोग पवित्र मानकर अपने साथ ले जाते। ये देख अंग्रेजों ने पार्क को उजाड़ दिया था।
23 जुलाई 1906 को मध्प्रदेश के भाबरा में जन्में चंद्रशेखर के मानों खून में ही भारत माता को आजाद कराने का जुनूून भरा था। उनके माता पिता उन्हें संस्कृत का विद्वान बनाना चाहते थे लेकिन बेटे का मन शुरू से ही हर जुल्म के खिलाफ उबल पड़ता था। किशोर होते होते वो अंग्रेजों के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने लगे थे। साल 1919 को जब जलियांवाला हत्याकांड हुआ तो इसका गुस्सा पूरे देश में दिख रहा था। जगह जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे थे।
Chandrashekhar Azad.
Born in 1906, was a part of Hindustan Republican Association & the most fearless #freedom fighter. During a skirmish with British soldiers, after killing many enemies he shot himself with his Colt pistol. He swore he would never be captured alive
(11/14) pic.twitter.com/laXm8HEfsI— RadioChinar (@RadioChinar) August 15, 2020
तब चंद्रशेखर 13-14 साल के बालक ही थे लेकिन इस क्रूर घटना को देखकर उनके दिल में भी अंग्रेजों के प्रति आग जल रही थी। यहां से ही उन्होंने तय कर लिया कि अपना पूरा जीवन भारत माता को आजाद करने में लगा देना है।
20 साल के होते-होते चंद्रशेखर ने बहुत से युवाओं में भारत मां को आजाद कराने का जज्बा भर दिया और एक बड़ा संगठन बना लिया। ये संगठन गांधी जी का भी समर्थन करता था उनकी पदयात्रा में शामिल होता था। लेकिन जब गांधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया तो इनका मन गांधी जी के तरीके से उचट गया। इसके बाद वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इसका नतृत्व राम प्रसाद बिस्मिल कर रहे थे। अब वो अंग्रेजी सरकार के खिलाफ अपनी जान से भी खेल जाते। उन्होंने 1925 को काकोरी में उस ट्रेन को लूटा जिसमें अंग्रेजों का पैसा जा रहा था।
इस तरह की लूटें वो हथियारों की खरीद के लिए करते थे। लेकिन ये सबसे बड़ी लूट थी जिसे काकोरी कांड से जाना गया। अपने 5 प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स की हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया।
इतने कांड करने के बाद चंद्रशेखर अंग्रेजी सरकार के लिए सिर दर्द बन गए। अब उन्हें मोस्ट वांटेड की तरह ढूंढा जाने लगा। इसके बाद चंद्रशेखर भी बहुत छिपकर रहने लगे। सभी लोग चंद्रशेखर को जानते थे और उन्हें अपने घर में छिपाने में मदद करते थे। 27 फरवरी 1931 को इलाहबाद में जब चंद्रशेखर अपने साथी सुखदेव से मिलने पहुंचे तो अंग्रेजों ने उन्हें अचानक उसी पार्क में घेर लिया वहां तब उनके पास एक पिस्टल के अलावा और कुछ न था।
Story of Chandrashekhar Azad by Himanshu Bajpai Oral Storyteller #SwadheentaKeRang
Posted by Ministry of Culture, Government of India on Friday, August 14, 2020
Story of Chandrashekhar Azad by @lakhnauaa,
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चंद्रशेखर ने किसी तरह सुखदेव को वहां से भगा दिया और जब ये तय हो गया कि अब उन्हें अंग्रेज पकड़ ही लेंगे तो उन्होंने उनके हाथ लगने की बजाए खुद ही वीर गति को प्राप्त होना बेहतर समझा। जिस जामुन के पेड़ के नीचे वो शहीद हुए थे अंग्रेजों ने उसे कटवा दिया था। और पार्क को भी ध्वस्त कर दिया था, जिसे आजादी के बाद संवारा गया।