New Delhi : इरादे और हौसलें मजबूत हों तो उसके आगे बड़ी से बड़ी चट्टानें हिल जाती हैं। कुछ ऐसा ही कर दिखाने वाले राजस्थान के देशलदान हैं। जिन्होंने अपने सपनों के आगे न तो लोगों की सुनी और न ही अपनी गरीबी के आगे घुटने टेके। देशलदान ने 2017 की यूपीएससी परीक्षा पास की थी जिसमें उन्हें ऑलओवर 82वां रैंक मिला था। उनका आईएएस बनने का सफर आसान नहीं रहा। घर में गरीबी थी पिता कस्बे में चाय की छोटी सी दुकान चलाकर परिवार का गुजारा करते थे। वो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे फिर भी पढ़ाई का मोल उन्हें मालूम था।
इसलिए उन्होंने बेटे की पढ़ाई को कभी रुकने नहीं दिया, जब पैसों की कमी पड़ी तो कर्ज लेकर पढ़ाया। लेकिन उस पिता की सारी पूंजी सारी महनत दोगुनी होकर वापस तब मिली जब उनका बेटा कलेक्टर बन गया। राजस्थान के जैसलमेर के सुमलियाई गांव के रहने वाले देशलदान के पिता ने दूसरों को चाय पिलाने में अपनी उम्र गुजार दी। गांव के बाहर स्थित उनकी चाय की दुकान को अब उनका बड़ा बेटा संभालता है। जब देशलदान आइएएस बने थे तो अगले दिन का अखबार जो हर रोज चाय की दुकान पर आता था उसे पढ़ हर दुकान पर आने वाले ने उनके भाई और उनके परिवार वालों को बधाई दी थी।
पिता गरीब जरूर थे लेकिन उन्हें अपने बेटे की प्रतिभा के बारे में शुरू से पता था। इसलिए पिता ने कभी भी देशलदान की पढ़ाई के लिए किसी भी चीज को रुकावट नहीं बनने दिया।जब भी बेटे को पढ़ाई के लिए पैसों की जरुरत पड़ी तो उन्होंने हमेशा मदद की। बेटे की पढ़ाई के लिए ब्याज पर पैसे लिए, ताकि देशलदान अपनी पढ़ाई जारी रख सके। इससे पहले देशलदान का चयन आईएफएस सेवा के लिए हो चुका था लेकिन देशलदान ने दोबारा परीक्षा देकर रैंक में सुधार किया और आईएएस की पोस्ट प्राप्त की।
देशलदान बचपन से ही पढ़ने में अव्वल रहे उनकी इस प्रतिभा को पिता ने भी समझा और उन्हें आगे बढ़ने के मौके दिए। बता दें सिविल सेवा परीक्षा भारत की एक प्रतियोगी परीक्षा है जिसके परिणाम के आधार पर भारत सरकार केंद्रीय व राज्य प्रशासन के लिए सिविल सेवाओं के अधिकारी (जैसे जिलाधिकारी) IPS पुलिस अधिकारी चुने जाते हैं। UPSC प्रत्येक वर्ष सिविल सेवा परीक्षा का आयोजन करती है। UPSC की सिविल सर्विस परीक्षा का सम्पूर्ण चक्र वर्ष का होता है।