New Delhi : महाराणा प्रताप का नाम भारत के इतिहास में उनकी बहादुरी के कारण अमर है। वह अकेले राजपूत राजा थे जिन्होंने मुगल बादशाह अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। उनके आगे कई बार अकबर की सेना भाग खड़ी हुई। महाराणा के उनके पिता का नाम महाराणा उदय सिंह था और माता महारानी जयवंता बाई थीं। अपने परिवार की वह सबसे बड़ी संतान थे। उनके बचपन का नाम कीका था। बचपन से ही महाराणा प्रताप बहादुर और दृढ़ निश्चयी थे। सामान्य शिक्षा से खेलकूद एवं हथियार बनाने की कला सीखने में उनकी रुचि अधिक थी। उनको धन-दौलत की नहीं बल्कि मान-सम्मान की ज्यादा परवाह थी।
Maharana Pratap never lose any war . battle of haldighati was won by Maharana Pratap nowadays it is prooved becoz when maharana was lose then why Akbar attacked 6 times on maharana Pratap 1582 battle of dewair won by maharana Pratap major battle… pic.twitter.com/hJr4XMPeBc
— Balvir Singh Rathore (@bsrj10) August 30, 2020
उनके बारे में मुगल दरबार के कवि अब्दुर रहमान ने लिखा है- इस दुनिया में सभी चीज खत्म होने वाली है। धन-दौलत खत्म हो जाएंगे लेकिन महान इंसान के गुण हमेशा जिंदा रहेंगे। प्रताप ने धन-दौलत को छोड़ दिया लेकिन अपना सिर कभी नहीं झुकाया। हिंद के सभी राजकुमारों में अकेले उन्होंने अपना सम्मान कायम रखा।
महाराणा प्रताप के पिता उदय सिंह ने पहले बेटे जगमल को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था जो उनकी सबसे छोटी पत्नी से थे। वह प्रताप सिंह से छोटे थे। जब पिता ने छोटे भाई को राजा बना दिया तो अपने छोटे भाई के लिए प्रताप सिंह मेवाड़ से निकल जाने को तैयार थे लेकिन सरदारों के आग्रह पर रुक गए। मेवाड़ के सभी सरदार राजा उदय सिंह के फैसले से सहमत नहीं थे। सरदार और आम लोगों की इच्छा का सम्मान करते हुए प्रताप सिंह मेवाड़ का शासन संभालने के लिए तैयार हो गए। 1 मार्च, 1573 को वह सिंहासन पर बैठे।
1)Maharana Pratap carried a 80 kg spear and two swords with him and also wear an armour that weigh around 72 kgs. He would weight around 208 kg in total.
2) Maharana Pratap story inspired Chatrapati shivaji Maharaj pic.twitter.com/Kq5who746x— Mohithgowda238 (@mohithgowda238) August 29, 2020
कहा जाता है कि महाराणा प्रताप 7 फीट 5 इंच लंबे थे। वह 110 किलोग्राम का कवच पहनते थे, कुछ जगह कवच का भार 208 किलो भी लिखा गया है। वह 25-25 किलो की 2 तलवारों के दम पर किसी भी दुश्मन से लड़ जाते थे। उनका कवच और तलवारें राजस्थान के उदयपुर में एक संग्रहालय में सुरक्षित रखे हैं। महाराणा की 11 पत्नियों से 17 बेटे और 5 बेटियां थीं। राव राम रख पंवार की बेटी अजबदे पुनवार उनकी पहली पत्नी थीं। महाराणा के बेटे और उत्तराधिकारी अमर सिंह अजबदे के ही बेटे थे।
महाराणा को भारत का प्रथम स्वतंत्रता सेनानी भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने कभी अकबर के सामने समर्पण नहीं किया। वह एकलौते ऐसे राजपूत योद्धा थे, जो अकबर को चुनौती देने का साहस रखते थे। हालांकि, एक बार उन्होंने समर्पण के विषय में सोचा जरूर था, लेकिन तब मशहूर राजपूत कवि पृथ्वीराज ने उन्हें ऐसा न करने के लिए मना लिया। अकबर ने 1576 में महाराणा प्रताप से युद्ध करने का फैसला किया। मुगल सेना में 2 लाख सैनिक थे, जबकि राजपूत केवल 22 हजार थे। इस युद्ध में महाराणा ने गुरिल्ला युद्ध की युक्ति अपनाई। 1582 में दिवेर के युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना ने मुगलों को बुरी तरह पराजित करते हुए चित्तौड़ छोड़कर मेवाड़ की अधिकतर जमीन पर दोबारा कब्जा कर लिया।
“Legends never die, they become a part of you!”On dis special day of Maharana Pratap Janam Jayanti, we present to u The Battle of Haldighati painting post r Maharana Pratap & Chetak went viral.Hope dis gives u strength in times like these .Jai rajputana 🙏#MahaRanaPratapJayanti pic.twitter.com/wLH0EnKQzn
— Vimanika Comics (@vimanikacomics) May 9, 2020
इस युद्ध की जानकारी यहां के राजाओं को पहले भी थी, लेकिन महाराणा प्रताप पहले ऐसे भारतीय राजा थे, जिन्होंने बहुत व्यवस्थित तरीके से इस युक्ति का उपयोग किया और परिणामस्वरूप मुगलों को घुटने टेकने पर मजबूर भी कर दिया। अकबर के सामने महाराणा पूरे आत्मविश्वास से टिके रहे। एक ऐसा भी समय था, जब लगभग पूरा राजस्थान मुगल बादशाह अकबर के कब्जे में था, लेकिन महाराणा अपना मेवाड़ बचाने के लिए अकबर से 12 साल तक अड़े रहे। अकबर ने उन्हें हराने का हर हथकंडा अपनाया, लेकिन महाराणा आखिर तक अपराजित ही रहे।
एक बार अब्दुल रहीम खान-ए-खाना मुगल अधिकारी के साथ महाराणा प्रताप के खिलाफ कैंपेनिंग कर रहे थे। उनके शिविर की सभी औरतों को महाराणा के बेटे अमर सिंह ने हिरासत में ले लिया। अमर सिंह उनको पकड़कर महाराणा के सामने लाए। महाराणा ने तुरंत अपने बेटे को आदेश दिया कि सभी औरतों को सही-सलामत उनके शिविर में वापस पहुंचाया जाए।
During the battle of Haldighati,
fought on 18th or 21st June, 1576.
Maharana Pratap (Rajput King) sliced Bahlol Khan (Mughal) into 2 pieces along with his helmet, armour and even his horse pic.twitter.com/JjstU4g2bC— Balvir Singh Rathore (@bsrj10) August 30, 2020
महाराणा प्रताप के समय दिल्ली पर मुगल शासक अकबर का राज था। अकबर के समय के राजपूत नरेशों में महाराणा प्रताप ही ऐसे थे, जिन्हें मुगल बादशाह की गुलामी पसंद नहीं थी। इसी बात पर उनकी आमेर के मानसिंह से भी अनबन हो गई थी, जिसका नतीजा यह हुआ कि मानसिंह के भड़काने से अकबर ने खुद मानसिंह और सलीम (जहांगीर) की अध्यक्षता में मेवाड़ पर आक्रमण करने के लिए भारी सेना भेजी।अकबर ने मेवाड़ को पूरी तरह से जीतने के लिए 18 जून, 1576 ई. में आमेर के राजा मानसिंह और आसफ खां के नेतृत्व में मुगल सेना को आक्रमण के लिए भेजा। दोनों सेनाओं के बीच गोगुडा के नजदीक अरावली पहाड़ी की हल्दीघाटी शाखा के बीच युद्ध हुआ। इस लड़ाई को हल्दीघाटी के युद्ध के नाम से जाना जाता है। ‘हल्दीघाटी का युद्ध’ भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध है। इस युद्ध के बाद महाराणा प्रताप की युद्ध-नीति छापामार लड़ाई की रही थी। ऐसा माना जाता है कि इस युद्ध में न तो अकबर जीत सका और न ही राणा हारे। मुगलों के पास सैन्य शक्ति अधिक थी तो राणा प्रताप के पास जुझारू शक्ति की कोई कमी नहीं थी। उन्होंने आखिरी समय तक अकबर से संधि की बात स्वीकार नहीं की और मान-सम्मान के साथ जीवन व्यतीत करते हुए लड़ाइयां लड़ते रहे।
भारतीय इतिहास में जितनी महाराणा प्रताप की बहादुरी की चर्चा हुई है, उतनी ही प्रशंसा उनके घोड़े चेतक को भी मिली। कहा जाता है कि चेतक कई फीट उंचे हाथी के मस्तक तक उछल सकता था। कुछ लोकगीतों के अलावा हिन्दी कवि श्यामनारायण पांडेय की वीर रस कविता ‘चेतक की वीरता’ में उसकी बहादुरी की खूब तारीफ की गई है। हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक, अकबर के सेनापति मानसिंह के हाथी के मस्तक की ऊंचाई तक बाज की तरह उछल गया था। फिर महाराणा प्रताप ने मानसिंह पर वार किया। जब मुगल सेना महाराणा के पीछे लगी थी, तब चेतक उन्हें अपनी पीठ पर लादकर 26 फीट लंबे नाले को लांघ गया, जिसे मुगल फौज का कोई घुड़सवार पार न कर सका। प्रताप के साथ युद्ध में घायल चेतक को वीरगति मिली थी।