New Delhi : सुप्रीम कोर्ट ने आज मंगलवार 11 अगस्त को अपने एक आदेश में कहा – संशोधित हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में एक बेटी संपत्ति की बराबर की अधिकारी है। भले ही हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 के लागू होने से पहले ही किसी की जान चली गई हो, तो भी उनकी बेटियों का पैतृक संपत्ति पर अधिकार होगा। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। जस्टिस अरुण मिश्रा ने मंगलवार को उस अपील पर फैसला सुनाया, जिसमें कहा गया था कि क्या हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 का पूर्वव्यापी प्रभाव होगा या नहीं ?
Supreme Court said that daughters will have the right over parental property even if the coparcener had died prior to the coming into force of the Hindu Succession (Amendment) Act, 2005. https://t.co/KibABSasCp
— ANI (@ANI) August 11, 2020
कोर्ट ने फैसला सुनाते हुये कहा- बेटों की ही तरह, बेटियों को भी बराबर के अधिकार दिये जाने चाहिये। बेटियां जीवनभर बेटियां ही रहती हैं। बेटी अपने पिता की संपत्ति में बराबर की हकदर बनी रहती है, भले उसके पिता जीवित हों या नहीं। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में बनाया गया। इस कानून द्वारा ही महिलाओं के संपत्ति के अधिकार यानी संयुक्त हिंदू परिवार में विरासत के अधिकार को मान्यता दी गई। हालांकि, तब भी बेटी को सहदायक (कोपार्सनर) का दर्जा नहीं दिया गया था।
2005 में संसद ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 6 में संशोधन किया। बेटियों को एक बेटे के साथ एक सहदायक (कोपार्सनर) के रूप में मान्यता दी। इसके जरिये महिला को संविधान के अनुसार समान दर्जा दिया गया था। यह हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 9 सितंबर 2005 को लागू हुआ। संसद ने माना कि बेटियों को कोपार्सनरी नहीं बनाने से उनके साथ भेदभाव हो रहा है। मिताक्षरा पद्धति में महिला कोपार्सनर (सहदायक) नहीं हो सकती। यहां तक कि एक पत्नी, पति की संपत्ति के रख-रखाव की हकदार है, पर वह अपने पति की कोपार्सनर नहीं है। एक मां अपने बेटे के संबंध में कोपार्सनर नहीं है। इसलिए, संयुक्त परिवार की संपत्ति में एक महिला को पूरा हक नहीं था।