मैं मर जाऊं, तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना…

New Delhi : दिल में हिंदुस्तान लिये राहत इंदौरी ने आज 11 अगस्त को दुनिया को अलविदा कह दिया। ऐसे मौके पर उनका एक शेर – मैं म”र जाऊं, तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिन्दुस्तान लिख देना… भावुक कर रही है। आज सुबह ही उन्होंने खुद ट‍्वीट कर जानकारी दी थी कि उनकी कोरोना रिपोर्ट पॉजेटिव आई है और वे हॉस्पिटल में भर्ती हो गये हैं। उन्होंने अपने चाहनेवालों से कहा – दुआ कीजिये कि मैं जल्दी से ठीक होकर लौटूं। लेकिन न तो कोई दवा काम आई और न ही दुआ। शाम में राहत के रुखसती की खबर आई तो लोगों को धक्का लगा।

70 साल की उम्र में राहत के लिये कोरोना का यह संक्रमण बेहद गंभीर मसला था। राहत को निमोनिया भी हो गया था। लगातार तीन हार्ट अटैक भी आये। एक जनवरी 1950 को रिफअत उल्लाह साहब के घर राहत साहब की पैदाइश हुई। रिफअत उल्लाह 1942 में सोनकछ देवास जिले से इंदौर आये थे। उनका बचपन का नाम कामिल था। बाद में इनका नाम बदलकर राहत उल्लाह कर दिया गया। बचपन मुफलिसी में गुजरा। वालिद ने इंदौर आने के बाद ऑटो चलाया। मिल में काम किया। हालात इतने खराब हो गये कि राहत साहब के परिवार को बेघर होना पड़ गया था।
राहत इंदौरी के बेटे और युवा शायर सतलज राहत ने बताया – पिता चार महीने से सिर्फ नियमित जांच के लिये ही घर से बाहर निकलते थे। उन्हें चार-पांच दिन से बेचैनी हो रही थी। डॉक्टरों की सलाह पर एक्सरे कराया गया तो निमोनिया की पुष्टि हुई थी। इसके बाद सैंपल जांच के लिये भेजे गये, जिसमें वे कोरोना संक्रमित पाये गये। राहत को दिल की बीमारी और डायबिटीज थी। सांस लेने में तकलीफ के चलते आईसीयू में रखा गया था।

राहत ने बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी से उर्दू में एमए किया था। भोज यूनिवर्सिटी ने उन्हें उर्दू साहित्य में पीएचडी से नवाजा था। राहत ने मुन्ना भाई एमबीबीएस, मीनाक्षी, खुद्दार, नाराज, मर्डर, मिशन कश्मीर, करीब, बेगम जान, घातक, इश्क, जानम, सर, आशियां और मैं तेरा आशिक जैसी फिल्मों में गीत लिखे।

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