Hima das nominated for Khel ratna

18 साल की उम्र में महीनेभर में जीत लिये 5 गोल्ड, भरपेट खाने के लिये हिमा ने चुना एथलीट जीवन

New Delhi : प्रतिभा एक चमकते हुए हीरे की तरह होती है जो चाहें कितने ही गहरी खदान में हो कभी न कभी अपनी सही कीमत पा ही लेती है। ऐसे ही एक हीरे का नाम है हिमा दास जो देश के पूर्वी छोर पर बसे असम राज्य के एक छोटे से गांव से आती हैं। ऐसा गांव जहां आज भी कई घरों में बिजली नहीं, परिवहन के साधन नहीं, लगभग देश- दुनिया से कटे इस गांव के लोग खेती-किसानी करके अपना जीवन बसर करते हैं। इसी गांव की बेटी हिमा दास जब अपनी प्रतिभा और मेहनत के दम पर चमकी तो उसकी कीमत पूरी दुनिया ने जानी।

महज 18 साल की उम्र में हिमा दास ने वो कर दिखाया जो देश के जाने माने धावक मिल्खा सिंह और पीटी ऊषा भी नहीं कर पाए। हिमा दास के नाम अन्डर 20 चैम्पियनशिप में पहली भारतीय खिलाड़ी होने का खिताब है। अप्रैल 2018 में गोल्ड कोस्ट में खेले गए कॉमनवेल्थ खेलों की 400 मीटर की स्पर्धा में हिमा दास ने 51.32 सेकेंड में दौड़ पूरी करते हुए छठवाँ स्थान प्राप्त किया था। तथा 4X400 मीटर स्पर्धा में उन्होंने सातवां स्थान प्राप्त किया था।
हिमा दास का अपनी मेहनत के दम पर पूरी दुनिया में पहचान बना पाना आसान नहीं रहा। हिमा का जन्म 2000 में असम राज्य के नगाँव जिले के कांधूलिमारी गाँव में हुआ था। उनके माता पिता धान की खेती करते हैं। लेकिन उनके पिता के पास खेती के लिए सिर्फ दो बीघा ही जमीन है। परिवार बड़ा होने के कारण खेती से हुई कमाई ऊंट के मुंह में जीरा जैसी थी, घरवालों के पास खेती के अलावा कमाई का दूसरा साधन नहीं था इसलिए उनके घर गरीबी शुरू से हावी रही। हिमा चौथे नंबर की बेटी होने के कारण स्कूल जा पाई और अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी कर पाई। अभी 2019 में ही उन्होंने अपनी 12वीं पूरी की है। हिमा ने कभी नहीं सोचा था की वो अपने दौड़ने को करियर के रूप में चुनेंगी। वो बचपन से फुटबॉल खेलने की शौकीन थीं। लड़कों के साथ वो खेतों में दिनभर फुटबॉल खेला करती थीं। वो फुटबॉल में ही अपना करियर बनाना चाहती थीं। लेकिन नवोदय विद्यालय के उनके कोच ने उन्हें रेसर बनने की सलाह दी और इस सलाह को मान लेना हिमा के लिए वरदान साबित हुआ हिमा ने अब इसी में अपनी जान लगा दी।
जब तक हिमा जिला स्तर की प्रतियोगिताएं खेल रही थी तब तक तो ठीक था लेकिन कोच ने हिमा को नेशनल के लिए तैयार करने के लिए ट्रैनिंग जॉइन करने को कहा इसके लिए उन्हें घर से दूर जाना था लेकिन इसके लिए परिवार वाले राजी नहीं थे। हिमा के घर वालों ने उसे ये सोच कर ट्रेनिंग पर भेजा की अब कम से कम उसे भरपेट तीन टाइम का खाना तो मिल सकेगा। घर से निकली हिमा फिर तो नाम बनाकर ही वापस लोटी। धीरे धीरे हिमा को पूरा देश जानने लगा लेकिन 2019 में उनका नाम देश की हर जबान पर था कारण था- एक महीने में 5 गोल्ड मेडल झटकना। 2019 में हिमा ने पहला गोल्ड मेडल 2 जुलाई को ‘पोज़नान एथलेटिक्स ग्रांड प्रिक्स’ में 200 मीटर रेस में जीता था। 7 जुलाई 2019 को पोलैंड में ‘कुटनो एथलेटिक्स मीट’ के दौरान 200 मीटर रेस को हिमा ने 23.97 सेकंड में पूरा करके दूसरा गोल्ड मेडल हासिल किया था। 13 जुलाई 2019 को हिमा ने चेक रिपब्लिक में हुई ‘क्लांदो मेमोरियल एथलेटिक्स’ में महिलाओं की 200 मीटर रेस से तीसरा गोल्ड मेडल हासिल किया था। 19 साल की हिमा ने 17 जुलाई 2019 को चेक रिपब्लिक में आयोजित ‘ताबोर एथलेटिक्स मीट’ के दौरान महिलाओं की 200 मीटर रेस में चौथा गोल्ड मेडल हासिल किया। हिमा ने चेक गणराज्य में ही जुलाई 2019 में 400 मीटर की दौड़ में जीत हासिल की. हिमा का जुलाई मास 2019 में मात्र 19 दिनों के भीतर प्राप्त किया गया यह पांचवां स्वर्ण पदक था।
उनकी इस सफलता के बाद वो जैसे स्टार बन गईं। एलए इंडिया, फैमिना जैसी मैग्जीन जिनके लिए संदरता के मानकों को पूरा करना पड़ता है इन मेग्जीन्स के कवर पेज पर हिमा चमक रही थीं। कभी दौड़ने के लिए उनके पास ढंग के जूते नहीं हुआ करते थे तब उनके पिता ने उन्हें अपनी गाढ़ी कमाई से 1200 रुपये के जूते गिफ्ट किए थे। अपने पिता की इस भेंट को स्वीकारते हुए हिमा की आंखे भीग आईं थी। ये देख 2018 में एडिडास कंपनी ने हिमा को अपनी कंपनी का ब्रेंड एम्बेस्डर बनाया था।

कम उम्र में हिमा की इस कामयाबी के लिए लोग कहने लगे थे कि लड़कियों को अगर भागना ही है तो वो अपने लिए भागें हिमा दास की तरह अपने सपने पूरा करने के लिए भागें। यही नहीं उनकी इस कामयाबी पर खेल जगत के दिग्गजों ने, प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक ने उन्हें बधाई दी थी। आज हिमा ने अपनी ही नहीं अपने परिवार की जिंदगी भी संवार दी है।

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