फातिमा बीवी- जब लड़कियां बेचारी समझी जाती थीं उस समय सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज बनीं

New Delhi : न्यायपालिका जो देश में न्यायव्यवस्था कायम करने का काम करती है, उसी की सर्वोच्च संस्था है सर्वोच्च न्यायालय जिसे हमारे संविधान में वर्णित सभी मौलिक अधिकारों का गारंटर कहा जाता है। इस गारंटी को सुप्रीम कोर्ट में बैठे जज पूरा करते हैं। 1950 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना हुई थी, और यहां न्याय देने का काम 39 सालों तक सिर्फ पुरुषों के ही हवाले रहा। साल 1989 में एम. फातिमा बीवी जब सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज बनी तो ये एतिहासिक घटना थी। भारत तो क्या पूरे एशिया में कोई महिला न्यायपालिका के सर्वोच्च जज के तौर पर काम नहीं कर रही थी। जब फातिमा सुप्रीम कोर्ट में जज बनी तो देश की आधी आबादी के लिए ये गर्व का क्षण था।

उस समय कहा जाता था कि अब महिलाएं बेचारी बन न्याय मांगेगी ही नहीं वो किसी को न्याय दिला भी सकेंगी। जब वो इस पर आसीन हुईं थी तब भारतीय समाज में महिलाओं को आम सभाओं तक में बोलने का अधिकार नहीं था उस समय कैसे फातिमा सर्वोच्च अदालत की जज बनीं आइए जानते हैं।
फातिमा बीवी का जन्म केरल के पथानामथिट्टा में 30 अप्रैल 1927 को हुआ था। वो एक मुस्लिम परिवार से ताल्लुक रखती थीं। सौभाग्य से वो ऐसे राज्य में पैदा हुई थी जहां की साक्षरता दर उस से लेकर अब तक सभी राज्यों से सबसे अच्छी है। वहां लिंगानुपात भी लड़कियों को लिए बेहद अच्छा है। इस माहौल का प्रभाव उनके परिवार पर भी दिखाई देता। उनके पिता ब्रिटिश भारत में सब रजिस्ट्रार के सरकारी पद पर तैनात थे। घर में पढ़ाई लिखाई का माहौल शुरू से ही था इसलिए उन्हें धर्म की तालीम में उलझाए रखने की बजाए उनके पिता ने उन्हें आधुनिक शिक्षा के तहत पढ़ाया। केरल की साक्षरता दर बेहतर होने के बावजूद भी वहां के स्कूल और कॉलेजों में गिनी चुनी ही लड़किया दिखाई देती थी। उनकी विद्यालयी शिक्षा कैथीलोकेट हाई स्कूल, पथानामथिट्टा से हुई। जहां उनके साथ सिर्फ तीन लड़किया ही पास हुई थी। उन्होने यूनिवर्सिटी कॉलेज, त्रिवेंद्रम से स्नातक और लॉ कॉलेज, त्रिवेंद्रम से एल एल बी किया।
एल.एल.बी करने के बाद जैसा कि कोर्ट में वकील बनने के लिए बार काउंसिल की परीक्षा पास करनी होती है इस परीक्षा में फातिमा बीवी 1950 में बैठी। उन्होंने इस परीक्षा को पहले ही प्रयास में पास ही नहीं किया बल्कि परीक्षा में टॉप भी किया। जिसके लिए इन्हें गोल्ड मेडल दिया गया। बार काउंसिल की परीक्षा में बैठने वाली और इसे पास करने वाली ये अकेली महिला थी। ये भारत में वो समय था जब हर 3 में से दो लड़कियां अपनी पढ़ाई को पूरा करने से पहले ही स्कूल छोड़ देती थी। फातिमा ने परीक्षा पास करने के बाद 1958 में केरल अधीनस्थ न्यायिक सेवा में मुंसिफ़ के रूप में नियुक्त हुयी। वो एक एक मसले का बड़ी बारीकी से अध्यन कर कोर्ट में फैसला देने पहुंचती थीं। 1968 में वे अधीनस्थ न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत हुयी। इसके बाद 1972 में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, 1974 में जिला एवं सत्र न्यायाधीश, 1980 में आयकर अपीलीय ट्रिब्यूनल की न्यायिक सदस्य और 8 अप्रैल 1983 को उन्हें केरल के उच्च न्यायालय में एक न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया। यहां जितने भी पदों के बारें में बताया गया है उस पर आसीन फातिमा बीवी पहली ही महिला थी जो यहां तक पहुंच पाईं थीं।
और फिर वो एतिहासिक दिन 06 अक्टूबर 1989 को आया जब उन्हें सर्वोच्च न्यायालय की न्यायाधीश के तौर पर नियुक्त किया गया। तब राजीव गांधी की सरकार थी। यहां से 24 अप्रैल 1992 को वे सेवा निवृत हुई। इसके बाद उन्होंने मानव अधिकार आयोग में काम किया।

फातिमा ने कभी भी आराम नहीं किया रिटायरमेंट की उम्र के बाद तक वो अपनी योग्यता के अनुसार जो कुछ भी कर सकती थीं उन्होंने किया। इसके बाद वो 1997 से 2001 के बीच तमिल नाडू की गवर्नर भी रहीं। फातिमा बीवी आज महिलाओं के लिए प्रेरणा पुंज हैं। 92 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।

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