विदेशों में हिंदी भाषणों के जन्मदाता हैं अटलजी, दुनिया भर में राष्ट्रभाषा को दिलाया सम्मान

New Delhi : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक राजनेता होने के साथ ही प्रखर वक्ता भी थे। उनके दिए गए भाषणों का विपक्ष भी कायल था और हर कोई उनके भाषण को सुनना पसंद करता है। उनके कई ऐसे भाषण हैं, जिन्हें आज भी लोग सुनना पसंद करते हैं। उसमें एक सबसे प्रमुख है साल 1977 में संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में दिया गया वाजपेयी का भाषण। साल 1977 में अटल बिहारी वाजपेयी, प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार में विदेश मंत्री थे और वो दो साल तक मंत्री रहे थे।

उस दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण दिया था, जो उनके यादगार भाषणों में से एक है। यह भाषण बेहद लोकप्रिय हुआ और पहली बार यूएन जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की राजभाषा गूंजी।
कहा जाता है कि यह पहला मौका था जब यूएन जैसे बड़े अतंराष्ट्रीय मंच पर भारत की गूंज सुनने को मिली थी। अटल बिहारी वाजपेयी का यह भाषण यूएन में आए सभी प्रतिनिधियों को इतना पसंद आया कि उन्होंने खड़े होकर अटल जी के लिए तालियां बजाई। इस दौरान उन्होंने वसुधैव कुटुम्बकम का संदेश देते हुए अपने भाषण में उन्होंने मूलभूत मानव अधिकारों के साथ-साथ रंगभेद जैसे गंभीर मुद्दों का जिक्र किया था। उसके बाद भी उन्होंने विदेशी मंचों पर कई भाषण दिए जो काफी लोकप्रिय हुए।
इस दौरान उन्होंने भाषण में कहा था- मैं भारत की ओर से इस महासभा को आश्वासन देना चाहता हूं कि हम एक विश्व के आदर्शों की प्राप्ति और मानव कल्याण तथा उसके गौरव के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी पीछे नहीं रहेंगे।

वाजपेयी अपने भाषणों में कविताओं का सहारा लेते हुए प्रखर वाणी में भाषण देते थे, जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता था। उन्होंने भारतीय संसद में भी कई ऐसे भाषण दिए हैं, जिनकी विरोधियों ने भी तारीफ की।

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