New Delhi : पोलियो हमारे देश से जा चुका है, लेकिन इसका दंश अभी भी हमें देखने को मिलता है। न जाने कितने मासूम इस विक्लांगता का शिकार हुए। इस बीमारी ने न जाने कितनों के हौसलों को तोड़ा। लेकिन हमारे पास ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जिन्होंने विक्लांगता को अपनी कामयाबी के दम पर ठेंगा दिखाया है। उन्हीं में से एक नाम डॉ.सतेंद्र सिंह का है वो 9 महीने की उम्र में इस बीमारी की चपेट में आए थे। लेकिन उन्होंने हार मानने के बजाए, अपने भाग्य को कोसने की बजाए मेहनत का रास्ता चुना और अपनी तकदीर को खुद लिखा। आज वो एमबीबीएस और एमडी डॉक्टर हैं उन्होंने अपना पूरा जीवन दिव्यांगों का जीवन कैसे सरल बनाया जा सके इसके प्रति समर्पित कर दिया।
@Adapt_India & @photoquipindia celebrated #60yearsofPhotoquip &
(#IDPD2019, #IDOD2019) by inviting four exceptional ppl to photograph these four successful disabled leadersDr Ketna Mehta | Dr Satendra Singh | Dr Sam Taraporevala | Ms Malini Chib@GrahbByBhargavi #RonnySequeira pic.twitter.com/olHtRADSfj
— Satendra Singh, MD (@drsitu) December 5, 2019
Dr. Satendra Singh is one of the those doctors that goes beyond the call of his duty. He is more than just a great doctors, he is a compassionate humanitarian.
Know more: https://t.co/mawMr0G6yl #OneLifeManyRoles pic.twitter.com/L7uqWK5Smw— Bajaj_Finserv (@Bajaj_Finserv) July 2, 2019
Dr Satendra Singh of #Delhi's GTB hospital suffers from polio & is fighting for the rights of the disabled people who want to pursue a career in medicine. He has written a letter to the health ministry on the new amendment notification@AlokReporter pic.twitter.com/8txOI8MeOW
— Mirror Now (@MirrorNow) March 18, 2019
डॉ.सतेंद्र का जीवन काफी दुख भरा रहा लेकिन वो दया के पात्र कभी नहीं बने। अपनी शिक्षा और मेहनत के दम पर उन्होंने अपनी गरिमा हासिल की।उनके पिता आर्मी में थे। सतेंद्र ने केंद्रीय विद्यालय से स्कूली शिक्षा पूरी की। उन्हें कई स्तरों पर भेदभाव का सामना करना पड़ा लेकिन इस व्यवहार ने सतेंद्र को और भी मजबूत बनाया। अपने आगे आ रही कठिनाइयों को देखते हुए उन्होंने ठान लिया कि वो दिव्यांगों का जीवन सरल बनाने के क्षेत्र में काम करेंगे। उनके जीवन में उन्हें कई कड़वे अनुभव हुए जिसमें एक के बारे में वो बताते हैं कि जब वो स्कूल में पढ़ते थे तब एक टीचर ने कॉलर से पकड़ कर उन्हें जबरन प्रार्थना सभा में जाने के लिए मजबूर किया और घसीटते हुए वो सभा में ले आए। जबकि उन्हें प्रार्थना सभा में न जाने की छूट थी। इस घटना ने उन्हें कई दिनों तक परेशान किया। लेकिन उनके परिवार वालों ने विशेष तौर पर उनकी मां ने उन्हें काफी सपोर्ट किया।
वो एक ब्राइट स्टूडेंट रहे। आगे जाकर उन्होंने साइंस की पढ़ाई की और डाक्टर बनने की ओर कदम बढ़ाए। उन्होंने अपना एमबीबीएस गणेश शंकर विद्यार्थी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज, कानपुर से और बाद में फिजियोलॉजी में डॉक्टर ऑफ मेडिसिन यानी एमडी की पढ़ाई की। एक डाक्टर बन जाने के बाद भी उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में भेदभाव का सामना करना पड़ा। यहां तक कि यूपीएससी ने भी उन्हें उनकी योग्यता के आधार पर न आंककर उनकी शारीरिक क्षमता के आधार पर आंका और इटरव्यू में उन्हें इसी कारण के चलते निकाल दिया गया।
Retweeted Dr Satendra Singh (@drsitu):
Watch the special show themed on #disability on @rajyasabhatv which includes Union Minister Social Justice & Empowerment Sh @TCGEHLOT as the panellist along with IAS Ira Singhal, Javed Abidi and me. ‘The Pulse’ wil… pic.twitter.com/lx9GP1265K
— harish kumar (@harishjach) February 11, 2018
Valentine's Day series #LovePossible brings you the story of disability rights crusader Dr Satendra Singh and his better half, Ranjita. What happened when they first met nearly 15 years ago. Read on to find out.
@drsitu #ValentineDay pic.twitter.com/0VB99NlCKP
— NewzHook (@NewzHook) February 14, 2019
इसके बाद उन्होंने हर क्षेत्र में दिव्यांगों के साथ हो रहे भेदभाव को उठाना शुरू कर दिया। एक अंग्रेजी समाचार चैनल को इंटरव्यू में वो कहते हैं- विकलांग लोग बड़े पैमाने पर हाशिए पर हैं। उन्होंने उल्लेख किया, “भेदभावपूर्ण रवैये को न केवल आम लोगों द्वारा, बल्कि दुखद रूप से, कुछ शिक्षित, कुलीन, शक्तिशाली वर्ग द्वारा भी उजागर किया जाता है।
यूपीएससी द्वारा उनके साथ किए गए भेदभाव को वो कोर्ट में कानूनी लड़ाई के रूप में लेकर आए। इसके लिए जब उन्होंने आरटीआई लगाई तो उन्हें पता चला कि विकलांग डॉक्टरों को शिक्षण, गैर-शिक्षण और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ संवर्गों में विशेषज्ञ सीएचएस पदों के लिए योग्य नहीं माना जाता है। उन्होंने फिर से शिकायत की और स्वास्थ्य मंत्रालय से अनुरोध किया कि इन पदों के लिए सभी पात्र डॉक्टरों को विकलांगता के साथ आवेदन करने की अनुमति दें। चार साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार स्वास्थ्य मंत्रालय को विकलांग डॉक्टरों के लिए 1,674 विशेषज्ञ केंद्रीय पदों को खोलने के लिए मजबूर होना पड़ा।
वो यहीं नहीं रुके इसके बाद उन्होंने स्वास्थ्य सेवाओं, एटीएम, डाकघरों, मतदान केंद्रों, महानगरों या रेलवे जैसी आवश्यक सेवाओं की दुर्गमता या बस कंडक्टरों का के व्यवहार, हवाई अड्डों या यूपीएससी में स्क्रीनिंग स्टाफ के लिए बड़ी कठिनाइयों को कम करने का प्रयास किया।
RT ViscardiCenter: Based in Delhi, India, Dr. Satendra Singh is a physician, professor, and disability rights crusader fighting to boost accessibility standards in health care. drsitu #HVAA17 https://t.co/IsNYQVs605 pic.twitter.com/XouMTQdPzJ
— Cobuild Lab (@cobuildlab) December 14, 2017
Dr. Satendra Singh (@drsitu), Delhi-based disability rights activist speaking to @IndianExpress said, "By removing penal provision, the govt is not only diluting the Act but also going against commitments it made internationally and to the UN."
(5/n) pic.twitter.com/HoTWfsGUaj
— Feminism in India (@FeminismInIndia) July 6, 2020
W.P.(C) No. 986/2018 in Supreme Court of a India
Court no 8 Item 15
Dr SATENDRA SINGH
Vs.
UNION OF INDIA AND ORS taken up with Item 5 (Puruswani Ashutosh case)#RejectMCIGuidelines
Involve #DocsWithDisabilities #NothingAboutUsWithoutUs pic.twitter.com/br5Zw8CJhf— Satendra Singh, MD (@drsitu) August 21, 2018
वह विकलांगता समुदाय में असाधारण व्यक्तियों को दिए जाने वाले प्रतिष्ठित हेनरी विसकार्डि अचीवमेंट अवार्ड जीतने वाले पहले भारतीय हैं।विकलांगता के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए दिल्ली सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस पर 2016 में इन्हे राजकीय पुरुस्कार से सम्मानित किया।