New Delhi : नाम तो सुना ही होगा। सुल्ताना डाकू। सालों से किंवदंती सुलताना को हमलोग हमेशा डाकू ही जानते रहे हैं। ऐसी कहानियां जिससे ये भी भान होने लगा कि उससे बड़ा कोई डाकू नहीं हुआ और यह भी कि वह बस कहानियों का पात्र मात्र है। सुल्ताना को समेटे कई लोकगीत भी आपको सुनने को मिल जाएंगे। जिनसे लगता है कि ये मात्र किस्से कहानियों तक ही सीमित था। गब्बर सिंह की तरह। मगर यह सच नहीं है। सुल्ताना डाकू कोई मिथक या मिथ्या नहीं, बल्कि सच था। इतिहास के पन्नों में दर्ज सुल्ताना वो डाकू था, जिसको अंग्रेजों ने गर्त में मिला दिया। क्योंकि वो नायक था भारत के मजलूमों और गरीबों का। पूरा सच आज हम आपको बताते हैं।
The hunt for Sultana Daku : #jimcorbett played a role in his capture
Sultana looks like a meek & obedient clerk, tho pic.twitter.com/h8GkwJKWQX— TheSignOfFive (@TheSignOfFive) July 25, 2016
आज से लगभग 120 साल पहले गुलाम भारत के मुरादाबाद में हरथला गांव में एक लड़के का जन्म हुआ। आगे चलकर ये लड़का उत्तर प्रदेश का खुंखार दस्यु बना, नाम था सुल्ताना, जिसने लूट मचाकर अंग्रेजों की नाम में दम कर दिया। सुल्ताना एक डाकू था, उसने डकैती की। उसने अंग्रेजों के माल पर हाथ साफ किया, एक नहीं कई बार। गुलाम भारत को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहूति देने वाले कई नायकों में से एक सुल्ताना डाकू भी था। उसके बारे में ज्यादा व्याख्या या प्रसंग पढ़ने में नहीं आते। वह उन नेताओं में से नहीं था, जिनका संगठन अंग्रेजों के समक्ष भारत के करोड़ों लोगों का नेतृत्व करता था। उसे अंग्रेजों की चापलूसी कर देशवासियों को बड़े जननायक बनने का छलावा देने वाले तत्कालीन समाज के ऐसे लोगों से कोई हमदर्दी नहीं थी। न वह उनके जैसा बनना चाहता था। वो तो सही मायनो में मसीहा था।
सुल्ताना डाकू को लेकर बहुत कम जानकारी मिलती है। वह 20वीं सदी के दूसरे दशक का सबसे दुर्दांत और खतरनाक डाकू माना जाता है। उसे अपने इलाके और गांव के लोगों के बीच अच्छी खासी लोकप्रियता भी हासिल थी। इसने महाराणा प्रताप के घोड़े के नाम पर ही अपने घोड़े का नाम चेतक रख लिया था। इस डाकू का जन्म अपराधियों के मुस्लिम भाटू कबीले में हुआ था। ऐसा भी कहा जाता है कि इस डाकू की साहसिक कहानियां सुनने के बाद एक अंग्रेज मेम फिदा हो गई थी। वह इसे पागलों की तरह प्यार करने लगी थी। सुल्ताना पर भी उसके प्यार का रंग चढ़ गया। सुल्ताना ने डांस करने वाली इस अंग्रेजी मेम का अपहरण कर लिया और अपने पास रखने लगा। उसका नाम फुलकनवार्न था जिसका भारतीय अपभ्रंश पुतली बाई के रूप में हुआ।
Magnificent ravines of #Chambal…home of mythological Sultana daku or Indian version of Robinhood…part of my childhood folklore! pic.twitter.com/CHQvDlcq22
— Anand Pradhan (@apradhan1968) November 7, 2018
सुल्ताना 17 साल की छोटी सी उम्र में डाकू बन गया था। गुलाम भारत के दौरान अंग्रेज सरकार की नृंशक नीतियों और भारत के लोगों खासकर गरीबों से उनका हक छीनने की नीति ने ही सुल्ताना को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा कर दिया था। ऐसे में सुल्ताना शोषित और पिछड़े समाज में एक उम्मीद की किरण बनकर उभरा। धीरे-धीरे उसे गरीब लोगों का समर्थन भी मिलना शुरू हो गया था। कहा जाता है कि इसी समर्थन के बल पर उसने अगले एक साल में ही 100 डकैतों का एक गैंग बना लिया था। सुल्ताना के लिए गरीबों की खून-पसीने की मेहनत से इकट्ठा किया गया, अंग्रेजी खजाना हमेशा लूट का पहला निशाना रहा। उत्तर प्रदेश में नजीबाबाद के इलाके में सुल्ताना डाकू के खौफ की तूती बोलती थी। ये रास्ता गरीबों और गांव वालों के लिए तो सुरक्षित था, लेकिन अंग्रेज अधिकारियों के लिए मौत का रास्ता बन गया था।
सुल्ताना के डकैतों ने यहां चप्पे-चप्पे पर नजर रखनी शुरू कर दी थी। उनके निशाने पर अंग्रेजों, जमींदारों और दीवानों का खजाना रहता था। उस समय नैनीताल के राजनिवास और प्रसिद्ध देहरादून को जाने वाला एकमात्र रास्ता नजीबाबाद से ही होकर जाता था। जो भी अंग्रेज काफिला उधर से गुजरता, घात लगाए सुल्ताना के डकैट उनको लूट लेते। सुल्ताना के डर से वहां चौकसी बढ़ा दी गई, लेकिन अंग्रेजों को इसका कोई खास फायदा नहीं मिला। धीरे-धीरे सुल्ताना ने अपनी लूट के क्षेत्र में बेतहासा वृद्धि कर ली, और जल्द ही सुल्ताना खौफ का पर्याय बन गया। सुल्ताना गांव के लोगों के बीच काफी मशहूर था। क्योंकि वह लूटा हुआ माल गरीबों और गांव वालों में बांट देता था। अमीरों को लूटकर गरीबों की मदद करने की फितरत ने ही सुल्ताना को गरीबों का मसीहा और अंग्रेजों की नजर में एक अपराधी बना दिया था।
अब अंग्रेज अधिकारी सुल्ताना को पकड़ने की कोशिश करने लगे थे। सुल्ताना भी शातिर था, वो इतनी जल्दी पुलिसवालों के हाथ कैसे आ जाता। अंग्रेज सरकार ने उसे पकड़ने के लिए 300 जवानों की एक टीम भी बनाई थी। 300 सिपाहियों की ये टीम, उस दौर में आधुनिक हथियारों से सुसज्जित थी। जिसमें 50 घुड़सवारों का एक दस्ता भी मौजूद था। काफी मेहनत के बाद भी जब कुमाऊं के पुलिस आयुक्त पर्सी बिंडहम सुल्ताना को पकड़ नहीं पाए, तो उन्होंने युवा अधिकारी फ्रैडी यंग को बुलावा भेजा।
In 1972 , Dara Singh played the role of Sultana Daku in the movie titled the same !!!! pic.twitter.com/7QxJUW1cqq
— Vaibhav Singh,IFS (@VaibhavSinghIFS) April 13, 2020
सुल्ताना डाकू को जब पुलिस तलाश कर रही थी, तभी उसने हल्द्वानी के एक जमींदार खड़क सिंह कुमड़िया के घर पर लूट मचा दी। ऐसे में जमींदार खड़क सिंह से भी सुल्ताना ने दुश्मनी मोल ले ली। लूट की ये बात जब फ्रैडी यंग और जिम कार्बेट को पता चली, तो उन्होंने खड़क सिंह को भी अपने साथ मिला लिया। ऐसे में फ्रैडी यंग, जिम कार्बेट और खड़क सिंह मिलकर सुल्ताना डाकू को ढूंढने में लग गए। बड़ी छानबीन के बाद तीनों ने एक अन्य शख्स तुला सिंह के सहयोग से सुल्ताना डाकू को दबोच लिया।
सुल्ताना के खौफ की तूती पूरे पश्चिमी यूपी में बोलती थी। इसे यहां के लोगों का अपार समर्थन भी हासिल था, शायद यही कारण है कि कई सालों तक ये अंग्रेजों से आंखमिचौली खेलता रहा। तब आयरिश मूल के भारतीय लेखक और एक बेहतरीन शिकारी जेम्स जिम कार्बेट को सुल्ताना डाकू के पीछे लगा दिया गया। अंग्रेज सरकार को उम्मीद थी कि जिस तरह से नरभक्षी तेंदुओं से जिम कार्बेट ने पहाड़ी लोगों को राहत दिलाई थी, ठीक उसी प्रकार जिम इस खतरनाक डाकू को मारकर उनकी भी चिंताओं को दूर करेंगे। हालांकि, ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया। ये जंगल का शिकारी इस इंसानी दुनिया के डाकू को पकड़ने में नाकामयाब रहा। ऐसे में सभी लोगों के असफल हो जाने पर विशेष अधिकारी फ्रेडी यंग को जांच में लगा दिया गया। अथक प्रयासों के बाद आखिरकार एक दिन सुल्ताना अंग्रेजों की पकड़ में आ ही गया। गुलाम भारत में भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी और एक लेखक रहे फिलिप मेसन ने अपनी किताब ‘द मेन हू रूल्ड इंडिया’ में लिखा है कि सुल्ताना डाकू को फ्रेडी यंग ने ही पकड़ा था। माना ये भी जाता है कि इसी युवा अंग्रेज अधिकारी फ्रेडी यंग ने सुल्ताना की गिरफ्तारी के बाद उसे क्षमा करने के लिए कई कोशिशें की थीं, लेकिन वह सफल नहीं हो पाया। सुल्ताना अपने बेटे को डाकू नहीं बनाना चाहता था।
With Harishchandra ji, #nautanki artist & his priceless collection of nautanki scripts. #SultanaDaku & the Pehelwan publisher on the cover. pic.twitter.com/ymArBH6V6c
— Danish Husain । دانش حُسین । दानिश हुसैन (@DanHusain) April 16, 2017
वह चाहता था कि उसे कभी भी अपने बाप के नाम पर जिल्लत न झेलनी पड़े। इसलिए उसने इस अंग्रेज अधिकारी से अपने बेटे की मदद करने को कहा। ऐसे में यंग ने सुल्ताना की बात मानते हुए उसके बेटे को पढ़ने इंग्लैंड भेज दिया। बहरहाल, कुल मिलाकर सुल्ताना डाकू पुलिस की गिरफ्त में था। एक छोटी सी सुनवाई के बाद उसे लूट और हत्या के मामले में दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुना दी गई।
आखिरकार, 7 जुलाई, 1924 को उसे 15 अन्य साथियों के साथ आगरा की जेल में फांसी फांसी पर लटका दिया गया। अंग्रेज सरकार ने सुल्ताना को समर्थन और पनाह देने वाले लगभग 40 परिवारों को भी कालापानी की सजा सुनाई। हालांकि फांसी की तारीख में कई विरोधाभास भी हैं। कहीं-कहीं फांसी का वर्ष सन 1925 भी लिखा है।