New Delhi : आप जिस तस्वीर को देख रहे हैं वो भले ही पुरानी है लेकिन जब भी कोई यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करने वाला छात्र या आम आदमी इस तस्वीर को देखता है तो उसे नई ऊर्जा ही मिलती है। तस्वीर में जो रिक्शेवाला आदमी है वो दरअसल आदमी नहीं है किसी बेटे के लिए वो ही उसका भगवान है जिसने जी तो़ड़ मेहनत कर रिक्शा चलाया और अपने बेटे को कलेक्टर बना दिया। रिक्शे की सीट पर बैठे गोविंद जायसवाल हैं जो अब आइएएस ऑफिसर हैं। 2007 में गोविंद ने पहले ही प्रयास में परीक्षा क्लियर कर आईएएस बने। उनकी ये कहानी सामान्य नहीं है। आज आपको इन बाप बेटे के संघर्ष से लेकर सफलता तक के सफर को जानना चाहिए।
Meet Govind Jaiswal, a rikshawpuller's son. Who cracked the IAS in his first attempt. Dare to #dreambig pic.twitter.com/ndZ1HlkNtY
— Speaking Tree (@speakingtree) October 19, 2014
गोविंद के पिता पढ़े लिखे नहीं हैं लेकिन शुरू से ही उन्हें पढ़ाई का मोल मालूम था। रिक्शा चलाने वाले पिता नारायण एक समय में रिक्शा चलाने की बजाए उन्हें किराए पर चलवाया करते थे। उनके पास साल 1995 में करीब 35 रिक्शे थे। पत्नी की बीमारी में उन्होंने 20 रिक्शे बेच दिए। इसके बाद कुछ बेटियों की शादी के लिए बेच दिए। जब एक दो ही रिक्शे बचे तो खुद भी उन्होंने रिक्शा चलाना शुरू कर दिया। 2004-05 में गोविंद को सिविल की तैयारी और दिल्ली भेजने के लिए बाकी रिक्शे बेच डाले। पढ़ाई में कमी न हो, इसलिए एक रिक्शा वो खुद चलाने लगे।
गोविंद 2007 बैच के IAS अफसर हैं। वे इस समय गोवा में सेक्रेट्री फोर्ट, सेक्रेट्री स्किल डेवलपमेंट और इंटेलिजेंस के डायरेक्टर जैसे 3 पदों पर तैनात हैं। उनका परिवार किराये के मकान में रहता था। उनकी बहनों ने उनका बड़ा साथ दिया। जब गोविंद दिल्ली पढ़ाई के लिए आये तो पिता के पास एक ही रिक्शा बचा था, जिसे चलाकर वह गोविंद का खर्च भेजते थे। गोविंद को फॉर्म, किताबों और किराए के लिए पैसों की जरूरत पड़ी तो उन्होंने अपनी एकलौती जमीन बेचकर पैसा भेजा।
गोविंद ने पढ़ाई करते वक्त वो दिन भी देखे जब उन्होंने एक टाइम का खाना बचाकर अपनी किताबों के लिए पैसे जोड़े थे। गोविंद ने अपना खर्चा चलाने के लिए बच्चों को गणित की ट्यूशन पढ़ाना शुरू की। परीक्षा की तैयारी के दौरान गोविंद लगातार 18 घंटे पढ़ाई करते थे और पैसा बचाने के लिए कई बार छोटी छोटी चीजों के लिए मन मारना पड़ता था।