New Delhi : प्रसिद्ध गांधीवादी शिल्पकार कांतिभाई पटेल को आज भी गुजरात के लोग बहुत प्यार से याद करते हैं। इस दुनिया में बिड़ले ही ऐसे लोग पैदा होते हैं जो अपना सर्वस्व राष्ट्रहित में लुटा देते हैं। आज जब हम अपना 73वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं तो ऐसे महान विभूतियों को याद तो करना ही चाहिये। उन्होंने महात्मा गांधी और सरदार पटेल की अद्भुत मूर्तियां बनाईं। और दुनिया को अलविदा कहने से पहले अपनी अर्जित संपत्तियों को दान कर दिया। कुछ नेक कार्यों के लिये।
महात्मा गांधी के समर्पण भाव के सिद्धांत को जीने वाले प्रसिद्ध मूर्तिकार, पद्मश्री कांतिभाई पटेल ने दो वर्ष पहले ही अपनी संपत्ति और जमीन दान में दे दी। कांतिभाई की संपत्ति की कुल कीमत करीब 60 करोड़ रुपए आंकी गई। उन्होंने गांधीजी, सरदार वल्लभ भाई पटेल समेत देश-विदेश की कई महान हस्तियों की मूर्तियां बनाई हैं।
हालांकि बाद के दिनों में उन्होंने कई सालों से प्रतिमाओं पर नाम लिखना बंद कर दिया। कांतिभाई का कहना था- मेरे जीवन का उद्देश्य आध्यात्मिक है। कई सालों से मैंने मेरी बनाई प्रतिमाओं पर नाम लिखना भी बंद कर दिया। जून 2019 में वे दुनिया को अलविदा कह गये। जाने से दो साल पहले से उन्होंने प्रतिमाएं बनाना भी बंद कर दिया है।
उन्होंने कहा था – कला जीवन को आकार देती है। गांधीजी भी कहा करते थे कि कला आत्मा का ईश्वरीय संगीत है। कला जिंदा रहे इसलिए मैंने चांदलोड़िया स्थित करीब सवा दो एकड़ जमीन ललित कला अकादमी को दान में दी है। इसके लिए मैंने सभी कागजी कार्रवाई पूरी कर दी है।
कांतिभाई ने बताया था- मैंने गांधीजी के साथ 11 दिन सेवाग्राम में बिताये थे।
इस दौरान एक दिन मैं उनका स्केच बना रहा था, तभी वहां लोगों का आना-जाना बढ़ गया। मैं डिस्टर्ब हो रहा था और मैंने यही शब्द जोर से बोल दिया, तब गांधीजी ने कहा – अंग्रेज गुजराती बोलते हैं और तुम गुजराती होकर भी अंग्रेजी बोल रहे हो। यह कहकर उन्होंने मुझे दो आने का जुर्माना भरने का आदेश दिया। मुझे इस पर हमेशा से गर्व रहा है, क्योंकि इसी स्केच पर गांधीजी ने अपने दस्तखत कर मुझे शाबासी दी थी। यही मेरा ईनाम था। इस स्केच को मैंने नवजीवन प्रेस को दिया था।