UPSC में अंग्रेजी से 2 बार हुये फेल फिर हिन्दी में दिया इंटरव्यू और टॉप रैंक के साथ बनें IAS

New Delhi : यूपीएससी यानी सिविल सेवा परीक्षा में इंटरव्यू तक पहुंच जाने के बाद भी सफलता सूचि में नाम का न आना बड़ा दुखद होता। इस परीक्षा में लाखों की संख्या में विद्यार्थी प्रीलिम्स जो कि प्रारंभिक परीक्षा होती है उसमें बैठते हैं। फिर 15 हजार के लगभग विद्यार्थी मेन्स परीक्षा में सिलेक्ट होते हैं। इसके बाद आता है इंटरव्यू। इंटरव्यू के लिए मात्र 2 से 3 हजार विद्यार्थियों का सिलेक्शन किया जाता है। लेकिन इंटरव्य में भी लगभग 2 हजार विद्यार्थियों की छंटनी कर दी जाती है। इंटरव्यू के बाद करीब हजार छात्र ही परीक्षा में सफल होते हैं। यही कारण है कि जब इस परीक्षा के इंटरव्यू तक पहुंच जाने के बाद भी सफलता नहीं मिलती तो ये बड़ा पीड़ादायी होता है।

कुछ ऐसा ही हुआ दिलीप कुमार के साथ। वो इंटव्यू में आकर लगातार 2 बार फेल हुए। रोचक बात तो ये है कि जब वो अंग्रेजी में इंटरव्यू देकर सफल नहीं हुए तो उन्होंने हिंदी में इंटरव्यू दिया और उन्होंने अच्छी रैंक के साथ सफलता पाई।
दिलीप ने यूपीएससी परीक्षा साल 2019 में पास की इसमें उन्हें ऑलओवर 73वीं रैंक मिली। दिलीप आज उन विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा हैं जो यूपीएससी परीक्षा देते वक्त हिंदी और अंग्रेजी माध्यम के प्रति तरह-तरह की धारणाएं पाले रहते हैं। दिलीप ने भी सोचा था कि अगर वो अंग्रेजी में इंटरव्यू देते हैं तो इसका ज्यादा प्रभाव पड़ेगा लेकिन इंटरव्यू तक लगातार दो बार पहुंचने के बाद भी उन्हें सफलता नहीं मिली। दिलीप इसका सीधा कारण अंग्रेजी को मानते हैं। वो कहते हैं कि आपकी पकड़ दोनों भाषाओं में होनी बेहद जरूरी है लेकिन इंटरव्यू उसी भाषा में दीजिए जिसमें आप पूरे कॉन्फिडेंस में रहें। दिलीप ने मेन्स तो अंग्रेजी में लिखा था लेकिन जब वो इंटरव्यू अंग्रेजी में देते थे तो अपना विश्वास खो देते थे। इसलिए उन्होंने अगली बार हिंदी भाषा में इंटरव्यू दिया और सफल रहे।
उन्होंने बताया कि जब उन्होंने पिछले दो सालों में जब अंग्रेजी में इंटरव्यू दिया था तो उन्हें 143 मार्क्स मिले थे और जब वही इंटव्यू उन्होंने 2018 की परीक्षा में हिंदी में दिया तो उन्हें 179 मार्क्स की बड़ी बढ़त मिली। दिलीप इस परीक्षा को पास करने के लिए भाषा को एक बड़े फेक्टर के तौर पर देखते हैं। उनका कहना है कि आप किसी भी भाषा में मेन्स और इंटरव्यू दें इससे कोई परेशानी नहीं होती, जरूरी ये होता कि विद्यार्थी जिस भाषा में परीक्षा लिख रहा है उसमें उसकी कितनी पकड़ है। यही इंटरव्यू में देखा जाता है कि केंडीडेट जिस भाषा में इंटरव्यू दे रहा है उसमें उसका कान्फीडेंस लेवल क्या है। उनकी शिक्षा भी हिंदी माध्यम में हुई है। दिलीप बताते हैं कि वो भी उस धारणा का शिकार हो गए थे कि इंटरव्यू अंग्रेजी में देने से काफी ज्यादा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि अंग्रेजी में बोलने पर वो उतना बेहतर तरीके से अपनी बात को नहीं रख पाए जो वो हिंदी के जरीए रख सकते थे। उनकी सलाह सभी विद्यार्थियों को यही है कि वो अपनी ही भाषा में परीक्षा और इंटरव्यू को अटेम्पट करें। इसके साथ ही अंग्रेजी पर मजबूत पकड़ भी बना कर रखें।

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