New Delhi : आज हम आपको मध्यप्रदेश में डिप्टी कलेक्टर के पद पर कार्यरत निकिता मंडलोई की संघर्ष से सफलता तक की कहानी के बारे में बताएंगे। ये कहानी बेटी की मेहनत और लगन की तो है ही लेकिन बेटी की सफलता के पीछे उसकी मां की अटूट हिम्मत और अपनी बेटी पर पूर्ण विश्वास की दास्तान को भी बयां करती है। उनकी ये कहानी उन छात्रों के लिए प्रेरणा है जो आर्थिक तंगी के बावजूद हर समस्या से लड़ते हुए मैदान में डटे हुए हैं। निकिता के आगे ऐसी एक नहीं कई समस्याएं थीं। हिंदी मीडियम के सरकारी स्कूल में पढ़ीं निकिता जो कभी दूसरों के सामने खुलकर बोल तक नहीं पाती थीं वो न केवल अच्छे कॉलेज से पढ़ाई करती हैं बल्कि अपनी मां के विश्वास पर खरी भी उतरती हैं।
सभी विद्याथियों के लिए अद्भुत उदाहरण बनी निकिता मंडलोई…
खरगोन की 21 वर्षीय (Youngest candidate) निकिता मंडलोई को अपने पहले ही प्रयास में राज्य प्रशासनिक सेवा 2018 की परीक्षा में सफल होने और डिप्टी कलेक्टर बनने पर हार्दिक बधाई शुभकामनाएं । #NikitaMandloi @SYadavMLA pic.twitter.com/ckbJotsCEY
— Deepak singh yadav (@DeepakydvINC) February 5, 2019
Nikita Mandloi who has secured AIR 23 in MPPSC 2018 shares her success mantra and strategy. #MPPSC #TopperofMPPSC #MPPSC2018 #NikitaMandloi #CSE #DKT #DelhiKnowledgeTrackhttps://t.co/toJuGoj1gm
— Delhi Knowledge Track (@dktindia_in) February 11, 2019
निकिता ने साल 2018 में मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग (एमपीपीएससी) में 23वी रैंक प्राप्त की थी। अब वो डिप्टी कलेक्टर के पद पर कार्यरत हैं। खास बात ये है कि उन्होंने हिंदी माध्यम से उस साल टॉप किया था। इसके साथ ही वो आदिवासी समाज से भी ताल्लुक रखती हैं। उन्हें अपनी पढ़ाई करते समय कई आर्थिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ा इसके बाद भी उन्होंने राज्य में टॉप रैंक हासिल की। वो बचपन से ही पढ़ने में काफी तेज थीं, उनकी इसी खूबी पर उनके पिता सब से कहते थे कि एक दिन उनकी बिटिया अफसर बनेगी। निकिता को उनके पिता खूब सपोर्ट भी करते थे। लेकिन दुर्भाग्यवश जब वो आज एक अफसर हैं तो उनके पिता ही नहीं हैैं। निकिता जब 12वीं में थी तब उनके पिता का देहांत हो गया। इससे पूरे घर की हिम्मत के साथ ही निकिता के भीतर का जुनून भी मर गया।
पिता के जाने के बाद घर के आर्थिक हालात लगातार खराब होते गए। ऐसे में पढ़ाई में तेज रहने वाली निकिता इतनी ज्यादा टूट गईं कि उन्होंने पढ़ाई तक छोड़ दी थी। पढ़ाई छोड़ने के बाद वो घर में ही अपनी मां के साथ चूल्हे चौके में हाथ बंटाने लग गई। ऐसे में जब उनके शिक्षकों को पता चला कि वो आगे पढ़ना ही नहीं चाहती हैं तो उन्होंने निकिता का हौसला बढ़ाया। वो पढ़ने को तो राजी हो गईं अब समस्या पैसों की थीी। उनके बड़े भाई अकेले कमाते थे। निकिता की मां भले ही अनपढ़ हों लेकिन उन्हें पढ़ाई की कीमत पता थी। उन्होंने बेटी को पढ़ाने के लिए खुद भी कमाना शुरू कर दिया। अपनी मां की हिम्मत देख निकिता में भी अपने सपनों को पूरा करने का जोश जगा। वो फिर से रिकवर कर 12वीं की परीक्षा पास कर कॉलेज पहुंची।
कॉलेज में एडमिशन के लिए उनकी मां ने उन्हें बिना बताए अपनी गले की चैन बेच दी। निकिता जब कॉलेज पहुंची तो वो वहां की अंग्रेजी से घबरा गईं पढ़ना लिखना सब अंग्रेजी में होता था। उन्होंने ग्रेजुएशन में बायो मेडिकल लिया था। नतीजा ये रहा कि वो 5 विषयों में से 3 में फेल हो गईं। लेकिन उनकी मां ने निकिता का हौसला कभी कम नहीं होने दिया। उन्होंने दिन रात मेहनत की अपनी अंग्रेजी ठीक की और अच्छे नंबरों से उन्होंने अपना ग्रेजुएशन पूरा किया।
अपने फाइनल यर में ही उन्होंने मन बनाया लिया था कि उन्हें इसके बाद सिविल सेवा में जाना है। वो अपनी मां को गौरवान्वित करना चाहती थीं। कोचिंग की फीस मंहगी थी तो उन्होंने इन्दौर में एक एनजीओ के तहत चलने वाली कोचिंग को जॉइन किया जहां उन्होंने 2 साल जमकर मेहनत की। इसके बाद उन्होंने मध्य प्रदेश सिविल सेवा परीक्षा दी और उसमें अच्छी रैंक के साथ पास हुईं। उनका कहना है कि वो आज जो भी उसमें उनके गुरुजनों और उनकी मां का अहम योगदान है।