New Delhi : नवाजुद्दीन सिद्दीकी! बॉलीवुड में करीब दस साल पहले ये नाम नहीं था। कुछ सालों के बीच ही ये नाम इतना उठा कि उनका नाम एक अलग तरह की एक्टिंग की पहचान बन गया। इस नाम ने बॉलीवुड को वो किरदार दिए जो बॉलीवुड के इतिहास में अब तक अनछुए थे। वो एक अलग तरह का अभिनय लेकर फिल्मों में आए। वो अभिनय जिसने भारत के एक आम आदमी, अल्हल, गंवई अंदाज में पले-बढ़े व्यक्ति का सजीव चित्र केमरे के सामने पहली बार उतारा।
ये रूप देश के बड़े तबके में दिखाई देता है, यही कारण रहा कि उनके अभिनय को ज्यादा से ज्यादा लोगों ने पसंद किया। उनका यही हुनर उन्हें गांव से खींच कर मुंबई ले आया और तंग अंधेरी गलियों वाले एक छोटे से गांव में पले-पढ़े एक छोटे से लड़के को बड़े पर्दे पर लाकर आज बड़ा आदमी बना दिया। लेकिन ये एक दिन में नहीं हुआ अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए उन्हें 5 साल नहीं 10 साल नहीं पूरे 30 साल का समय लग गया। समय के आगे उन्होंने हार नहीं मानी क्योंकि उनका मानना था कि सफलता की कोई तारीख नहीं होती।
#ItsEntertainment | @Nawazuddin_S: My biggest struggle was being as honest as Manto.
Nawazuddin Siddiqui & @nanditadas open up about their #Manto journey during her conversation with @SakshmaSr. pic.twitter.com/pNqb9OVHOj
— Mirror Now (@MirrorNow) September 22, 2018
Nawazuddin Siddiqui has worked as a watchman and as a waiter in his struggle to make it as an actor. Now he is a national figure in cinema
— Madhavan Narayanan (@madversity) March 24, 2013
नवाज का जन्म एक किसान परिवार में 1974 को उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर जिले के एक छोटे से गाँव बुढ़ाना में हुआ। वो 9 भाई बहनों में सबसे बड़े हैं। पिता के पास अच्छी-खासी खेती थी जिससे बड़ा परिवार होने के बावजूद घर में किसी तरह की परेशानी नहीं हुई। हालांकि जब नवाज अपना करियर बनाने के लिए दिल्ली या मुंबई रहे तो उनके पास कभी-कभी खाने और रहने तक के पैसे नहीं होते थे। क्योंकि उन्होंने अपने करियर के लिए घर से ज्यादा मदद ली नहीं। गांव में लाइट नहीं होती थी इसलिए वो लैंप की रौशनी में पढ़ाई करते थे। यहीं उनका बचपन बीता, इंटरमीडिएट तक की पढाई भी इसी गाँव से की। नवाज अपने गांव से निकल कर बाहर जाना चाहते थे। इसमें पहला मौका उनकी शिक्षा ने उन्हें दिया जब वो आगे की पढ़ाई के लिए हरिद्वार आ गए।
उन्होने गुरुकुल कंगरी विश्वविद्यालया से अपनी केमिस्ट्री में बीएससी की पढाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने गुजरात जाकर एक केमिस्ट डिलिवरी ब्वाय के रूप में काम किया। इस काम में उनका मन नहीं लगता था। लेकिन यहां का शहरी अंदाज उन्हें काफी भाता था। यहां ही उन्होंने पहली बार थियेटर में नाटक होते हुए देखा। थियेटर की ये कला उनके दिल में बैठ गई उन्होंने तय किया कि हीरो बनने की शुरूआत ऐसे ही की जाए।
थियेटर करने और सीखने के लिए वो दिल्ली आ गए किसी ने उन्हें बता दिया था यहां बड़ी नाटक मंडलियां थियेटर करती हैं। काम करके जो पैसे कमाए थे वो यहां रहने और खाने में काम आए। वो बहुत ज्यादा थियेटर देखते थे। एक दिन किसी नाटक मंडली से उन्होंने पूछ लिया कि क्या मुझे भी शामिल कर सकते हैं। खुशकिस्मती से उन्हें नाटक मंडली में जोड़ लिया गया। उनमें एक्टिंग शायद बचपन से ही थी तो इसलिए उन्होंने जल्द ही एक बड़े कलाकार के रूप में पहचान बना ली।
थियेटर करके उन्हें खास पैसे नहीं मिलते थे। इसलिए उन्होंने दिल्ली में ही वॉचमैन की नौकरी की। दिन में नौकरी शाम को थियेटर और रात को पढ़ाई और प्रेक्टिस आने वाले लगभग 10 साल उनके ऐसे ही गुजरे। उनके साथ जो साथी थियेटर करते वो अच्छे-खासे पढ़े लिखे और अंग्रेजी बोलने वाले होते। उन्हीं में से एक साथी ने उनको नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के बारे में बताया। लेकिन इसका एंट्रेंस निकालना आसान नहीं था। फिर नवाज ने इसके लिए तैयारी शुरू कर दी। उन्होंने अपनी इंगलिश पर और स्पीकिंग स्किल्स पर काम किया। कड़ी मेहनत करके उन्होंने ये एंट्रेस निकाला यहां उनका शौक प्रोफेशन में बदलने की ओपचारिक शुरूआत हुई।
एनएसडी से निकलकर वो सीधे मुंबई गए। यहां वो जब किसी शूटिंग या फिल्म स्टूडियो पर जाकर कहते कि हम एक्टर हैं कुछ काम दे दो तो उन्हें ऊपर से नीचे तक देखा जाता और कहा जाता कि तुम किस एंगल से एक्टर लगते हो। नवाज बताते हैं कि पहले सिर्फ हीरो का मतलब 6 फीट का हट्टा-खट्टा, गोरा चिट्टा आदमी ही एक्टर माना जाता। उनके सपने का मजाक जिस तरह गांव में उड़ाया जाता था वही हाल मुंबई का भी था। शुरूआत में उन्हें सीरियल और फिल्मों में छोटे-छोटे किरदार मिलने लगे। सबसे पहले वो 1999 में शूल फिल्म में वेटर और सरफरोश में मुखबिर का रोल करते दिखाई दिए। कभी काम मिलता तो कभी साल 5 साल तक कोई काम ही नहीं मिलता लेकिन उन्होंने लाइन नहीं बदली और एक दिन बॉलीवुड में उनका टाइम आ ही गया।
उन्हें गैंग्स ऑफ वासेपुर और मांझी द माउंटेन मैन से बड़ी प्रसिद्धी मिली। इसके बाद तो उन्होंने बॉ़लीवुड में अपने इसी गंवई और गंवारू अंदाज के जरिए ही पहचान बना ली। आज उन्हें एक नहीं चार फिल्मों के लिए एक साथ राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। नवाजुद्दीन को 2012 की तलाश, गैंग्स ऑफ वासेपुर-1, 2 और कहानी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा गया है।