New Delhi : इस कहानी को बताने से पहले आप कल्पना करके देखिए कि आपका जो प्लस पाइंट हो या जिसके दम पर आप कुछ अलग और बेहतरीन करने का साहस रखते हों वो प्लस पाइंट ही आपसे छिन जाए तो आप क्या करेंगे। ऐसा ही हंगरी सेना के जवान कैरोली टैकाक्स के साथ हुआ। कैरोली निशानेबाजी में इतने तेज थे कि उनकी पूरी सेना में उनसे ऊंची रेंक के ऑफिसर्स भी उनकी शूटिंग का मुकाबला नहीं कर पाते थे। अपने इस हुनर को कैरोली ने खेल के रूप में आजमाया और बिना कोई मैच हारे नेशनल्स तक पहुंच गए। अब उनका सपना ओलंपिक गेम्स को फतह करना था जो कि 1940 में होने वाले थे।
Olympic Day stories.
Karoly Takács was an ace pistol shooter from Hungary who was denied a place in the 1936 Summer Olympics team because he was not an officer. The rule was lifted in 1940, but by then Takács had lost most of his right hand in a grenade accident. pic.twitter.com/JVuW2xMSDP— Joy Bhattacharjya (@joybhattacharj) June 23, 2020
Karoly Takacs – The man with the only hand. pic.twitter.com/fjoOfrWxvL
— Dr. Dilipsinh Sodha (@DrDilipSodha) January 28, 2019
Featured #Hungarian: Károly Takács
The Right-Handed Shooter Who Won With His Left Hand#AHF @Olympicshttps://t.co/ZEkpETqv4p pic.twitter.com/YAfrwrsueo— American Hungarian (@AmerikaiMagyar) September 18, 2017
अपने इस प्लस पाइंट पर कैरोली को पूरा भरोसा था उन्होंने खूब मेहनत भी कि लेकिन जिस हाथ के दम पर उन्होंने बिना हारे बड़े-बड़े दिग्गजों को हराया था और नेशनल जीता था वो हाथ ओलंपिक के जीतने से पहले ही कट गया। इसके बाद भी उन्होंने अपने बाएं हाथ से शूटिंग कर दो बाह ओलंपिक में गोल्ड जीत कर इतिहास रच दिया। उनकी ये कहानी इंस्पीरेशनल स्टोरीज में सबसे ज्यादा पढ़ी जाने वाली कहानी है। इसी कहानी को आज यहां पढ़िये।
जब भी प्रेरणा पुरुषों की बात होती है तो कैरोली का नाम जरूर आता है। उनका जन्म 21 जनवरी 1910 में हुआ था। हंगरी सेना में भर्ती तो हुए लेकिन उनका नाम शूटिंग गेम्स में हुआ। शूटिंग को वो एक जुनून की तरह देखते थे। उन्होंने सभी राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीतीं। सभी को पूरा यकीन था कि वह 1940 के ओलंपिक में निश्चित रूप से गोल्ड जीतेंगे। उन्होंने सालों तक खुद को ओलंपिक के लिए तपाया। अपने आपको दिन रात मेहनत कर तैयार किया। उनका एक ही मकसद था कि वो कैसे भी अपने इस हाथ को दुनिया का सबसे अच्छा निशाना लगाने वाला हाथ बनाए। लेकिन जो हाथ उनकी खूबी, उनका हुनर और उनका गर्व था वो एक हादसे में बुरी तरह चोटिल हुआ। जब वो आर्मी में थे तो एक दिन प्रशिक्षण चल रहा था। ट्रेनिंग के दौरान एक ग्रेनेड उनके दाएं हाथ में फट गया। ये उनका शूटिंग हैंड था। इस दुर्घटना में उनके हाथ के साथ ही उनके सपनों के भी चिथड़े उड़ गए।
उनके दिमाग में अब यही चल रहा था कि अब वो 1940 में होने वाले ओलंपिक को कैसे जीतेंगे। लेकिन अगर उस वक्त कैरोली हार मान जाते तो वो न ही इतिहास रच पाते न ही अनपे सपनों को पूरा कर पाते और फिर न ही आप उन्हें जान पाते। कैलोरी के पास दो ऑप्शन थे। रोएँ और अपने जीवन के लिए अपने भाग्य को दोष दें, या फिर अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखें। उन्होंने दूसरा ऑप्शन चुना। उन्होंने अपने बाएं हाथ, अपने बाएं हाथ पर ध्यान केंद्रित किया। एक महीने बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई, उन्होंने अपनी ट्रेनिंग बांए हाथ के साथ शुरू कर दी। साल 1939 में उनके देश में राष्ट्रीय स्तर का जब मैच आयोजित हुआ तो वो भी वहां पहुंच गए। सभी खिलाड़ियों ने उनके हौसले की सराहना करते हुए कहा कि आप यहां हमारा मुकाबला देखने के लिए आए खुशी हुई। उन्होंने जवाब दिया, “मैं यहां आपको प्रोत्साहित करने के लिए नहीं बल्कि आपके साथ कॉम्पटीशन करने के लिए आया हूं। तैयार हो जाओ दोस्तों ”। ये सुन सब सन्न रह गए। प्रतियोगिता शुरू हुई। हर कोई अपने सर्वश्रेष्ठ हाथ के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा था लेकिन वह अपने बांए और सिर्फ एक हाथ से प्रतिस्पर्धा कर रहा थे।और सभी को आश्चर्यचकित करते हुए, वह जीत गए।
The first-ever disabled shooting champion.
The late Hungarian shooter Karoly Takacs' dream of winning a gold medal at the @Olympics nearly crashed in 1938. Check out this inspiring story of how Takacs conquered the world twice in 1948 and 1952! #SundayMotivation #Olympics pic.twitter.com/H1AMjRzRBl
— Sportswallah (@TheSportswallah) April 28, 2019
Best Real Life Inspirational Story of Karoly Takacs by Sandeep Maheshwari https://t.co/03sGe3R7nb via @YouTube
— bikramdas (@bikramd79969901) August 25, 2019
इसके बाद उन्होंने अपना सारा ध्यान आने वाले ओलंपिक पर लगाए रखा लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के कारण लगातार दो बार ओलंपिक टाल दीए गए। कैरोली ने धैर्य नहीं खोया। 1938 में उनकी उम्र 28 साल थी और 1948 जब फिर से ओलंपिक हुए तो उनकी उम्र 38 साल थी। अधिकांश खेलों में, बूढे एथलीट के लिए युवा लोगों के साथ कॉम्पटीशन करना कठिन होता है। लेकिन “मुश्किल” शब्द उनके शब्दकोश में नहीं था। यहां जब उन्होंने जीत हासिल की तो पूरी दुनिया चौंक गई। वो यहीं नहीं रुके इसके अगले ओलंपिक में भी वो खेले और उसमें भी फर्स्ट आकर गोल्ड जीत लिया। इससे पहले शूटिंग में किसी अन्य एथलीट ने लगातार दो स्वर्ण पदक नहीं जीते थे।