New Delhi : कांग्रेस के पूर्व सांसद राशिद मसूद के घर पर मुस्लिम कट्टरपंथियों ने रसम पगड़ी के आयोजन पर कड़ी आपत्ति जताई है। पूर्व सांसद राशिद मसूद कोरोना महामारी की चपेट में आ गये और 5 अक्टूबर को रुड़की में उनका देहावसान हो गया। इसके बाद 11 अक्टूबर रविवार को सहारनपुर जिले के बिलासपुर गाँव में रसम पगड़ी की रस्म करने के लिये एक व्यापक आयोजन हुआ। इस दौरान ब्राह्मण पंडितों ने वैदिक मंत्रों का जाप किया। जैसे ही समारोह वैदिक मंत्रों का जाप शुरू हुआ कई मौलाना जो वहां उपस्थित थे तम्मिला उठकर चले गये।
"Rasam Pagri" ceremony of deceased Congress leader and 5-time MP Rasheed Masood was organised in UP's Saharanpur. Family members including nephew Imran Masood and scores of supporters were present at the function. Rasheed Masood had breathed his last on October 5. pic.twitter.com/IBiQau1yVm
— Piyush Rai (@Benarasiyaa) October 12, 2020
The clerics opposed the Hindu rituals at the ceremony and asserted that it should have been done according to Islamic traditionhttps://t.co/T6qUGtLPqr
— Swarajya (@SwarajyaMag) October 13, 2020
‘Ekatva’ sermon of @TanishqJewelry is needed here! Hope they will make an ad soon. Or do Tata brands only believe in treating women as objects of secularism? https://t.co/ZdTtQrVFXw
— Abhinav Prakash (@Abhina_Prakash) October 13, 2020
इस आयोजन को लेकर मौलाना असद क़ासमी ने कहा कि पगड़ी बांधना और परिवार के सबसे बड़े सदस्य को घर के मुखिया के रूप में चुनना एक अच्छी परंपरा है। लेकिन राशिद मसूद जी के यहां यह इस्लामिक परंपरा के अनुसार होना चाहिए था न कि हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार। जब रसम पगड़ी का वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किया गया था, तो मुस्लिम कट्टरपंथियों ने इसपर कड़ा विरोध जताया था।
इस रस्मी आयोजन में परिवार के बुजुर्गों ने साजन मसूद को पगड़ी बांधी। समारोह में रिश्तेदार और समर्थक भी मौजूद थे। जब मौलानाओं और कट्टरपंथियों ने इसका विरोध किया, तो परिवार ने उनकी बिल्कुल भी नहीं सुनी। साजन ने कहा कि यह एक पुरानी परंपरा है। उन्होंने कहा कि उनके दादा और चाचा के गुजर जाने के बाद भी भी उनके हिंदू दोस्तों ने रसम पगड़ी का आयोजन किया था।
उन्होंने कहा कि उनके पिता का पूरा जीवन हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए समर्पित था। उन्होंने कहा, “हमने इस समारोह के माध्यम से उन लोगों की भावनाओं की सराहना की जो मेरे पिता को श्रद्धांजलि देना चाहते थे।” उन्होंने कहा कि किसी को भी इस पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि इस्लाम सभी धर्मों का सम्मान करता है।