New Delhi : एक साधारण सी लड़की जो acedonia से कोलकाता आयी थी, वह दुनिया भर में शांति की मसीह बन जायेगी किसी ने सोचा भी नहीं था। मदर टेरेसा का पूरा नाम मदर टेरेसा एग्नेस गोनवश बिजोकईसु था। महज 9 वर्ष की उम्र में उनके पिता जी का स्वर्गवास हो गया था। परिवार की स्थिति को संभालने के लिए माँ ने बिजनेस प्रारम्भ कर दिया जिससे मदर टेरेसा को कार्य करने के साथ साहस की भी प्रेरणा मिली। 12 वर्ष की उम्र में ही उनके मन में दूसरे लोगों की सेवा करने का भाव जागृत हो गया था। 12 वर्ष की उम्र में नन बनने का निश्चय कर प्रशिक्षण के लिए वह आयरलैंड गईं। बाद में वह सेंट मेरी स्कूल की प्रिंसिपल भी बनीं। लेकिन 1947 में विभाजन के दौरान शरणर्थियों की सहायता करने के लिए उन्होने प्रिंसिपल के पद को त्याग दिया और नर्स बन गईं।
The way St. Mother Teresa looked at babies 🥺😍🙏🕊💫 pic.twitter.com/4doNe9twKZ
— Catholic Connect (@ConnectCatholic) May 6, 2020
बाद मे उन्होंने नर्स की ट्रेनिंग ले कर कोलकाता को कार्यक्षेत्र के रूप में चुना। अपने स्कूल की शुरुआत कर उन्होने अपने कार्य को प्रारम्भ किया। इस दौरान उन्होने गरीबो के लिए बहुत कुछ किया। मदर टेरेसा के एग्नेस के सिस्टर टेरेसा बनने के पीछे एक प्रख्यात कहानी है। इस प्रशिक्षण के बीच एक नन से उनकी मुलाकात हुई। नन का कहना था कि ईश्वर को खुश करने के लिए कोई बड़ा या महान काम करने की आवश्यकता नहीं हैं। छोटे-छोटे काम करके भी भगवान को खुश किया जा सकता है। उन्होंने इस कार्य को लिटिल-वे नाम भी दिया। एग्नेस भी इस बात से काफी प्रभावित होते हुईं और अपना नाम बदल कर टेरेसा कर लिया। टेरेसा के द्वारा दुखियो की अत्यधिक सेवा करने के चलते मदर टेरेसा के नाम से प्रख्यात हुईं।
“We ourselves feel that what we are doing is just a drop in the ocean. But the ocean would be less because of that missing drop” St. Mother Teresa Keep doing the good you are doing! pic.twitter.com/QrAali6vny
— Fr. Peter Wojcik (@ChicagoPriest) May 8, 2020
मदर टेरेसा ने निर्मल हृदय नामक एक घर की स्थापना भी की। उनके कार्य से कोलकाता निगम काफी प्रभावित हुई और उन्हे एक पुराना घर भी दिया। 7 अक्टूबर 1950 में टेरेसा की संस्था Missionaries of Charity को सरकार द्वारा मान्यता मिल गई। उनकी लगन की बदौलत उनका यह मिशन पूरे भारत में फैल गया। शिशु निकेतन, निर्मल हृदय और शांति नगर, प्रेम घर आदि में मदर टेरेसा स्वयं सेवा कार्य किया करती थी। 70 वर्ष अधिक उम्र में भी मदर टेरेसा 21 घंटो तक काम करती रहती थी।
See Christ in Everyone You Meet! RT https://t.co/AF1hHDdkhx #TeamJesus#MotherTeresa pic.twitter.com/8WBWxr7aQL
— Susan Fox (@testisfidelis) May 18, 2020
मदर टेरेसा और उनके साथी घर व होटलो से बचे हुए खाने को इक्कठा कर गरीबो को भोजन खिलाने का प्रबंध भी करते थे। माता-पिता से दूर या उनके नियंत्रण में न रहने वाले बच्चो के अलावा आपराधिक कार्यो में फंसे हुए बच्चों का जीवन बनाने के लिए प्रतिमा सेन नाम के स्कूल की स्थापना की। मदर टेरेसा एवं उनके साथियो को यदि कोई भी असहाय व्यक्ति नजर आता था तो वह उसे अपने साथ लें जाते थे।
"If you judge people, you have no time to love them."~#MotherTeresa pic.twitter.com/zdHnbLFlRU
— Becky Curran Kekula (@BeckyMotivates) May 18, 2020
5 सितंबर 1997 को मदर टेरेसा का देहांत हो गया। उनकी अंतिम यात्रा में शामिल होने के लिए विश्व के कई देशो से व्यक्ति आए थे। मदर टेरेसा कहा करती थी, की सम्पूर्ण विश्व मेरा घर है। मदर टेरेसा की सेवा भावना को देखते हुए भारत के साथ विश्व के कई देशो ने काफी पुरस्कार भी दिए। इंग्लैंड की महारानी द्वारा मदर टेरेसा को आर्डर ऑफ़ ब्रिटिश एम्पायर, राजकुमार फिलिप ने टेंपल्स पुरूस्कार, अमेरिका ने कैनेडी पुरूस्कार और भारत देश ने नेहरू शांति पुरूस्कार, पदम् श्री एवं भारत रत्न पुरूस्कार और नोबल पुरूस्कार से समानित किया जा चुका था।