प्रेम-कहानी जिसने हमारा इतिहास-भूगोल बदला : पहली नजर का प्यार था संयोगिता का पृथ्वीराज से

New Delhi : यह प्रेम कहानी कुछ खास है। यह इतिहास में अमर ही नहीं है बल्कि सच्चे प्रेम की पर्याय भी है। महापुरुषों और वीरों की भूमि पर प्रेम की एक अनोखी कहानी। आज भी लोग एक वीर योद्धा को उसकी प्रेम कहानी को याद करते हैं। एक ऐसे प्रेमी की कहानी जिसने अपनी प्रेमिका का अपहरण उसके पिता के सामने उस वक्त कर लिया जब उसका स्वयंवर चल रहा था। हम बात कर रहे हैं दिल्ली की राजगद्दी पर बैठने वाले अंतिम हिन्दू शासक और भारत के महान वीर योद्धाओं में शामिल पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की।

पृथ्वीराज चौहान एक ऐसा वीर योद्धा जिसने अपने बचपन में ही शेर का जबड़ा फाड़ डाला था और जिसने अपनी आंखे खो देने के बावजूद भी मोहम्मद गौरी को अपने अचूक निशाने का शिकार बनाया। ये सभी जानते हैं कि पृथ्वीराज चौहान एक वीर योद्धा थे लेकिन ये बहुत कम ही लोगों को पता है कि वो एक महान प्रेमी भी थे। वो कन्नौज के महाराज जय चन्द्र की पुत्री संयोगिता से प्रेम करते थे। दोनो में प्रेम इतना था कि राजकुमारी को पाने के लिए पृथ्वी स्वयंवर के बीच से उन्हें उठा लाए थे। हालांकि इस प्रेम कहानी की शुरुआत के पीछे भी एक कहानी है।
पृथ्वीराज चौहान से पहली नजर का प्यार : बात उन दिनों की है जब पृथ्वीराज चौहान दिल्ली की राज गद्दी पर बैठे थे। इसी समय उस समय के मशहूर चित्रकार पन्नाराय पृथ्वीराज चौहान समेत बड़े राजा-महाराजाओं के चित्र लेकर कन्नौज पहुंचे, जहां उन्होंने सभी चित्रों की प्रदर्शनी लगाई। पृथ्वीराज चौहान का चित्र इतना आकर्षक था कि सभी स्त्रियां उनके आकर्षण में बंध गयीं। सभी युवतियां उनकी सुन्दरता का बखान करते नहीं थक रहीं थीं। पृथ्वीराज की तारीफ संयोगिता के कानों तक पहुंची तो संयोगिता अपनी सहेलियों के साथ उस चित्र को देखने के लिए दौड़ी-दौड़ी चली आईं। चित्र देख पहली ही नज़़र में संयोगिता ने अपना दिल पृथ्वीराज को दे दिया।

 

वह अब तय कर चुकी थीं कि शादी तो पृथ्वीराज चौहान से ही करेंगी। लेकिन किसी भी प्रेम कहानी में अगर विलन न हो तो वह कहानी जाने क्यों पूरी ही नहीं होती? पृथ्वीराज और संयोगिता की प्रेम कहानी के विरोधी थे संयोगिता के पिता जयचंद। महाराज जयचंद और पृथ्वीराज चौहान में कट्टर दुश्मनी थी, इसलिए यह मिलन आसान नहीं था। पर कहते हैं कि प्यार अपना रास्ता निकाल ही लेता है। संयोगिता ने भी इस समस्या का तोड़ ढ़ूढ़ लिया था। उनके इस तोड़ का मुख्य पात्र बना चित्रकार पन्नाराय, जिसे पहले संयोगिता का एक सुंदर चित्र बनाना पड़ा, फिर उसे ले जाकर पृथ्वीराज चौहान को दिखाना पड़ा। चित्र में संयोगिता के यौवन को देखकर पृथ्वीराज चौहान भी मोहित हो गये। उन्होंने भी एक पल में संयोगिता को अपना दिल दे दिया। संयोगिता का तीर निशाने पर लग चुका था, जिस कारण अब प्रेम की आग दोनों तरफ लगी गई थी।
पृथ्वीराज चौहान के प्रेम की कहानी आगे बढ़ती, इसके पहले महाराजा जयचंद्र ने संयोगिता के लिए स्वयंवर का आयोजन करके रंग में भंग डालने का काम कर दिया। संयोगिता के स्वयंवर में विभिन्न राज्यों के राजकुमारों और महाराजाओं को आमंत्रित किया, लेकिन पृथ्वीराज को आमंत्रण नहीं भेजा गया था।

संयोगिता और पृथ्वीराज ने कभी सोचा नहीं था कि उनकी मुलाकात कुछ इस तरह होगी। हुआ यह कि संयोगिता द्वारपाल की भांति खड़ी पृथ्वीराज की मूर्ति को ही वरमाला पहनाने के लिए आगे बढ़ती है वैसे ही अचानक मूर्ति की जगह पर स्वयं पृथ्वीराज चौहान आ खड़े हुये और माला उनके गले में चली गयी। यह संयोगिता और पृथ्वीराज के प्रेम की पहली मुलाकात थी। दोनों की आंखों में प्रेम के मोती थे। यह देखकर पिता जयचंद बेटी संयोगिता को मारने के लिए आगे बढ़े, लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कर पाते, पृथ्वीराज उनकी आंखों के सामने संयोगिता को लेकर भाग गये। दोनों ने शादी कर ली।
पृथ्वीराज संयोगिता को तो स्वयंवर से भगाकर ले जाने में कामयाब रहे, लेकिन इस कारण जयचंद उनके सबसे बड़े दुश्मन बन बैठे। जयचंद ने पृथ्वीराज से बदला लेने के लिए मोहम्मद गोरी से हाथ मिला लिया। पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को युद्धों में 16 बार धूल चटायी थी, लेकिन हर बार उसे जीवित छोड़ दिया। गोरी ने अपनी हार का और जयचंद ने अपनी दुश्मनी का बदला लेने के लिए एक-दूसरे से हाथ मिला लिया। जयचंद ने अपना सैन्य बल भी मोहम्मद गोरी को सौंप दिया। युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई। उनको बंधक बना लिया गया।

 

बंधक बनाते ही मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान की आंखों को गर्म सलाखों से जला दिया और कई अमानवीय यातनाएं भी दी। अंतत: मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान की जान लेने का फैसला कर लिया था।

चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान- मित्र चंदबरदाई की इन पंक्तियों ने अंतिम समय में पृथ्वीराज चौहान में जान फूंकी और वह मुहम्मद गौरी को अपने अचुक निशाने से मारने में कामयाब रहे।

दरअसल राजकवि चंदबरदाई ने गोरी को पृथ्वीराज की एक खूबी बतायी कि पृथ्वीराज चौहान, शब्दभेदी बाण चलाने में माहिर है। यह बात सुन मोहम्मद गोरी ने रोमांचित होकर इस कला के प्रदर्शन का आदेश दिया, जिसके फलस्वरूप उसकी जान गई। गौरी के बाद उसकी सेना से बचने के लिए चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने एक-दूसरे के पेट में कटार भोंक कर बलिदान किया। संयोगिता इतने वियोग में थीं कि अपना दर्द किसी से बयां नहीं कर सकती थीं। उन्होंने सती होने का फैसला करते हुए खुद को समाप्त कर लिया।

और अंत में … पृथ्वीराज चौहान ने मुगल शासकों से रक्षा के लिए हरियाणा के हिसार में एक किले का निर्माण कराया था। हालांकि बाद में मुगल शासकों ने इस किले पर कब्जा कर लिया। इसके बाद इस किले में एक मस्जिद का निर्माण भी कराया गया था। पर्यटक आज भी इस किले और मस्जिद के खूबसूरत दृश्य देख सकते हैं।

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