New Delhi : रामायण में बताया है कि श्रीराम, सीता और कौशल्या ने किस तरह समझदारी और धैर्य से रिश्तों को निभाया है। हम रामायण में श्रीराम और सीता के वैवाहिक जीवन में एक-दूसरे के प्रति पूरी तरह समर्पण का भाव देख सकते हैं। इसी तरह अगर वर्तमान में पति-पत्नी और सास भी समर्पण, बड़प्पन, समझदारी और धैर्य से काम लें तो रिश्तों में तनाव नहीं पैदा होगा। खुद को महत्व नहीं देते हुए त्याग भावना से रिश्ते निभाए जाने चाहिए। जिससे रिश्ते मजबूत होते हैं और प्रेम भी बना रहता है। श्रीरामजी को वनवास जाना था, उस समय वे चाहते थे सीताजी मां कौशल्या के पास ही रुक जाएं।
For all Shri Ram and Maa Sita fans 🤟 pic.twitter.com/ZTdM3tKjLt
— Lord Azee (@Doga791) October 11, 2020
This is the place in Sri Lanka. When Lord Ram was returning with Maa Sita, she felt thirsty and asked for water. Lord Ram prayed Maa Ganga and shooted an arrow on the banks of the sea.
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— RudraDev (@Rudra_Virabadra) May 26, 2020
जबकि सीताजी श्रीराम के साथ वनवास जाना चाहती थीं। कौशल्याजी भी चाहती थीं सीता न जाए। सास, बहू और बेटा, यहां इन तीनों के बीच त्रिकोण पैदा हो गया था। अक्सर इस त्रिकोण में कई वैवाहिक रिश्ते बिगड़ जाते हैं, लेकिन श्रीराम के धैर्य, सीताजी और कौशल्याजी की समझ ने रघुवंश का इतिहास ही बदल दिया। श्रीराम ने सीता को समझाया कि वन में कई प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ेगा।
वहां भयंकर राक्षस होंगे, सैकड़ों सांप होंगे, वन की धूप, ठंड और बारिश भी भयानक होती है, समय-समय पर मनुष्यों को खाने वाले जानवरों का सामना करना पड़ेगा, तरह-तरह की विपत्तियां आएंगी। इन सभी परेशानियों का सामना करना किसी सुकोमल राजकुमारी के लिए बहुत ही मुश्किल होगा। इस प्रकार समझाने के बाद भी सीता नहीं मानीं और वनवास में साथ जाने के लिए श्रीराम और माता कौशल्या को मना लिया।
सीता ने श्रीराम के प्रति समर्पण का भाव दर्शाया और अपने स्वामी के साथ वे भी वनवास गईं। समर्पण की इसी भावना की वजह से श्रीराम और सीता का वैवाहिक जीवन दिव्य माना गया है।