राजा दशरथ का शब्दभेदी वाण : वनवास और पुत्र वियोग का कारक बना, नहीं रहा कोई साथ

New Delhi : सनातन हिन्दू धर्म में कई महाकाव्य और धार्मिक कथाओं का सम्पूर्ण वर्णन बताया गया हैं। हिन्दू धर्म के ग्रंथ इस बात का सबूत हैं, कि युगों में देवी-देवताओ नें अवतार लेकर पृथ्वी पर बढ़ रहे पाप का खात्मा किया। कुछ पौराणिक ग्रंथों में दैवीय पात्रों और सिद्ध ऋषि मुनियों द्वारा दिये गये श्राप का सम्पूर्ण वर्णन किया गया है। इस में एक श्राप श्रीराम के पिता अयोध्या नरेश दशरथ को भी लगा था। उसकी कथा कुछ इस प्रकार है।
जब अपने दृष्टिहीन माता-पिता की प्यास को बुझाने के लिए श्रवण कुमार नदी किनारे गये थे, तो राजा दशरथ उस समय जंगल में शिकार कर रहे थे। राजा दशरथ शब्द भेदी वाण चला कर श्रवण कुमार को अज्ञानवश तीर मार देते हैं। राजा दशरथ का बाण श्रवण कुमार की छाती भेद देता ह और वह दर्द से चीख पड़ते हैं। दशरथ उनकी आवाज सुनकर नदी की ओर जाते हैं। वहां वे देखते हैं कि उनके वाण से मूर्छित हो कर श्रवण कुमार छटपटाते रहते हैं। दशरथ जी उसी छण उनसे क्षमा मांगने लगते हैं।
श्रवणकुमार अंतिम समय में राजा दशरथ से सिर्फ इतना कहते हैं – मेरे दृष्टिहीन माता पिता बहुत प्यासे हैं, उन्हे जल पिला देना। और वह अपना देह त्याग देते हैं। जब राजा दशरथ श्रवण कुमार के माता-पिता को सारी कहानी बताते हैं तो अपने बुढ़ापे की लाठी के जाने की खबर सुनते ही उनकी माता देवी ज्ञानवती भी अपने प्राण त्याग देती हैं। श्रवण कुमार के पिता राजा दशरथ को श्राप देते हैं कि जिस प्रकार मैं अपने पुत्र के लिये तड़प रहा हूं और जैसे मेरे प्राण त्यागने के वक्त मेरा पुत्र मेरे साथ नहीं होगा ठीक उसी तरह जब तुम अपना देह त्यागोगे तो तुम्हारे पास भी पुत्र नहीं होगा। जिस तरह हम पुत्र के वियोग में तड़प रहे हैं तुम भी एसे ही कोप को प्राप्त होगे।
और फिर क्या हुआ सभी जानते हैं। जब राजा दशरथ ने देह का त्याग किया उस समय भगवान राम वनवास काट रहे थे। लक्ष्मण जी भी राम जी के साथ ही थे। भरत और शत्रुघ्न उस समय अपने मामा के घर गये हुये थे। इस तरह ऋषि शांतनु का शाप सत्य साबित हुआ था।

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