सलाम ऐ वतन पर मिट जाने वाले नौजवान!
तुम्हारी हर साँस का कर्ज़दार है हिन्दुस्तान!!
New Delhi : 1947 में अंग्रेजों ने गुलाम भारत को आज़ाद करने का फैसला लिया। देश आज़ाद हुआ, लेकिन पाकिस्तान जैसे एक नासूर के साथ। आयेदिन पाकिस्तान की वजह से हमारा देश अशांत रहता है और अगर हम शांति चैन से रह पाते हैं तो अपने देश के अमर वीर सपूतों की वजह से। इन वीर सपूतों में एक नाम नायक जदुनाथ सिंह का आता है। देश के इस वीर सिपाही ने न सिर्फ अपनी मुठ्ठीभर टुकड़ी का कुशल नेतृत्व किया बल्कि अंत में पाकिस्तान के सैनिकों पर अकेले ही जमकर गोलियां बरसाई। इनके अदम्य साहस के सामने विरोधी पाकिस्तान को कई बार पीछे हटना पड़ा था, मगर अफ़सोस देश की रक्षा करते हुए जवान जदुनाथ शहीद हो गए। उनके इस वीरता के लिये परमवीर चक्र से नवाजा गया।
Nation pays homage to Naik Jadunath Singh, Param Vir Chakra(Posthumous) who made supreme sacrifice fighting Pakistani invaders at Tain Top on 06 Feb 48, Day celebrated as #NaosheraDay, the 71st Anniversary of martyrdom of Naik Jadunath Singh, PVC of 1 RAJPUT later 4 GUARDS@adgpi pic.twitter.com/gdq6yGsipB
— White Knight Corps (@Whiteknight_IA) February 6, 2019
राठौर राजपूत नायक जदुनाथ सिंह का जन्म 21 नवंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले में हुआ। उनके पिता बीरबल सिंह राठौर एक गरीब किसान थे। इनकी माता का नाम जमुना कंवर था। जदुनाथ अपने 8 भाई-बहनों में तीसरे स्थान पर थे। बड़ा परिवार होने के साथ-साथ परिवार की आर्थिक हालत भी ठीक नहीं थी। इनकी पढ़ाई में भी गरीबी विलन साबित हुई। शायद यही वजह रही कि उन्हें कक्षा 4 के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी।
जदुनाथ पिता के साथ खेतों में काम करने लगे। ये भगवान हनुमान के एक बड़े भक्त थे। गांव के लोग भी इन्हें ‘हनुमान भक्त’ कहकर पुकारते थे। उन्होंने सदा ब्रह्मचारी का जीवन बिताने का फैसला किया। जदुनाथ के अंदर बचपन से देश भक्ति व मानवता की भावना निहित थी। उनका देश के लिए कुछ कर दिखाने का एक सपना था। वे लोगों की मदद के लिए भी हमेशा तैयार रहते थे। जदुनाथ अपने गांव में पहलवानी भी किया करते। इसकी वजह से इन्हें आस-पास के गांव में ‘कुश्ती चैम्पियन’के तौर पहचान मिली। साल 1941 में उनका देश के लिए कुछ कर दिखाने का सपना भी पूरा हो गया। जदुनाथ को ब्रिटिश भारतीय सैनिक में शामिल कर लिया गया। उस वक़्त उनकी उम्र 25 साल की थी। वे राजपूत रेजिमेंट का हिस्सा बने। सैन्य विभाग में भर्ती होना उनके लिए सौभाग्य की बात थी।
Grand Salute to War Hero Naik #JadunathSingh sir Posthumously Awarded #ParamVirChakra#IndianArmy#NationFirst pic.twitter.com/lCCfFS9wCc
— DIXIT (@ILOVEMYINDIASJ) February 7, 2020
सैन्य प्रशिक्षण पूरा करने के बाद रेजिमेंट के पहले बटालियन में शामिल हुए। साल 1942 में बर्मा अभियान के लिए अराकान प्रान्त में तैनात किए गए। जहां उन्होंने जापानियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। जदुनाथ ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपनी बहादुरी का परिचय दिया। युद्ध समाप्त होने के बाद उनके पद में इजाफा कर दिया गया। उन्हें नायक पद से नवाजा गया।
अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान ने अपने सैनिकों को सशस्त्र कश्मीर भेजा। कश्मीर पर कब्ज़ा करने की फ़िराक में था। ऐसा तब हुआ जब भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से यह घोषित कर दिया कि, महाराजा हरि सिंह औपचारिक रूप से कश्मीर को भारत के साथ विलय करने को तैयार हैं। ऐसे में पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर के कई स्थानों पर एक साथ हमले किये। दिसंबर में पाकिस्तानियों ने झांगर पर अपना कब्ज़ा कर लिया। तब राजपूत बटालियन को हमलावरों को बाहर खदेड़ने और नौशेरा सेक्टर को सुरक्षित करने का आदेश मिला।
उसी नौशेरा क्षेत्र में टैनधार मोर्चा दुश्मन के लिए बहुत महत्वपूर्ण था, क्योंकि इससे श्रीनगर एयरफील्ड के नियंत्रण को आसानी से संभाला जा सकता था। अब दुश्मन की नज़र नौशेरा पर थी। यहां पर उसके काबिज हो जाने पर कश्मीर का नियंत्रण उनके हाथों में आ जाता। ऐसे में ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में 1 फ़रवरी 1948 को भारत के 50 पैराब्रिगेड ने नौशेरा पर हमला किया। वे अपनी बहादुरी व साहस से पाकिस्तान को पीछे धकलने में कामयाब रहे।
1947 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अद्वितीय साहस का परिचय देकर वीरगति को प्राप्त होने वाले, परमवीर चक्र से सम्मानित श्री #यदुनाथ_सिंह जी की पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि। #JadunathSingh pic.twitter.com/yMt2ChmxTH
— Dr Harsh Vardhan (@drharshvardhan) February 6, 2019
भारतीय सैनिकों ने नौशेरा पर अपना नियंत्रण प्राप्त कर लिया था। ब्रिगेडियर उस्मान अपने सैनिकों की मदद से कश्मीर को बचाने में कामयाब हो चुके थे। वे नौशेरा मोर्चे के बाद पाकिस्तान की चालों से अच्छी तरह वाकिफ थे। उन्होंने सभी पैराब्रिगेड को सेना की टुकड़ियों के साथ अलग-अलग मोर्चे पर तैनात कर दिया था।
भारतीय सैनिकों का नौशेरा पर मजबूती से काबिज होने पर पाकिस्तान बहुत हताहत हुआ। उसने 6 फ़रवरी को टैनधार पर हमला कर दिया। यहीं पर नायक जदुनाथ सिंह अपने 9 सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ मोर्चा संभाले हुए थे। पाकिस्तान ने सुबह टैनधार के आसपास आगजनी कर दिया, जिससे धुंए में वो आसानी से अपना लक्ष्य हासिल कर सके। पाकिस्तान लगातार हमले कर रहा था। ऐसे में नायक जदुनाथ अपनी छोटी सेना के साथ दुश्मनों से जमकर लोहा लेने लगे। वे अपने कुशल नेतृत्व से पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे धकलने में कामयाब रहे।कु छ देर बाद पाकिस्तान ने दोबारा से हमला करना शुरू कर दिया। उसके सैनिकों व हथियारों में बढ़ोत्तरी हो चुकी थी। वहीं नायक जदुनाथ के 4 सैनिक घायल हो गए थे। ऐसे में नायक जदुनाथ अपने बचे सैनिकों का लगातार प्रोत्साहन कर रहे थे। वे दुश्मनों से बड़ी बहादुरी व वीरता से लड़ रहे थे। इसी दौरान विरोधियों ने उन्हें भी घायल कर दिया।
In the latest episode of #ParamvirChakra, we will bring you the courageous stories of Naik Jadunath Singh and Second Lt. Rama Raghoba Rane. Don't forget to tune in at 7:30 PM, only on India Today TV with @GauravCSawant pic.twitter.com/dKeVhyydZm
— IndiaToday (@IndiaToday) November 10, 2018
जख्मी होने बावजूद जदुनाथ ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपने साहस का परिचय दिया और लड़ते रहे। उनके जोश को देखते हुए घायल सैनिकों को भी बल मिला। वे भी दोबारा दुश्मनों पर हमला करने लगे। जदुनाथ के गजब के साहस व नेतृत्व से एक बार फिर पाकिस्तान सैनिकों ने दम तोड़ दिया और पीछे हट गए। जदुनाथ दूसरी बार मोर्चा लेते हुए पकिस्तान को पीछे धकेल दिया था। उनके कुछ सैनिक शहीद भी हो चुके थे। पाकिस्तानी अभी भी हमले के फिराक में था। वहीं ब्रिगेडियर उस्मान जदुनाथ को बैकअप देने के लिए सेना की एक टुकड़ी को भेजा। जदुनाथ एक बार फिर विरोधियों को मुंह तोड़ जवाब देने लगे। उनके बचे सैनिक लगातार फायरिंग कर रहे थे।
उधर जदुनाथ भी घायल होने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी थी। उन्हें सैनिकों के आने तक मोर्चा संभालना था। इनके सभी सैनिक घायल हो चुके थे। ऐसे में जदुनाथ अकेले ही दुश्मनों से लोहा लेते रहे। जब उनसे रहा नहीं गया तो उन्होंने अपने मशीनगन को हाथ में लिए सामने से फ़ायरिंग शुरू कर दी। तब दुश्मनों की दो गोलियों ने नायक जदुनाथ को अपना शिकार बना लिया। एक गोली इनके सिर में जबकि दूसरी इनके सीने में आ लगी। जदुनाथ रणभूमि पर गिर गए और बड़ी निडरता के साथ दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हो गए। इनके शहीद होने पर बैकअप वाली सेना वहां पहुँच चुकी थी।
Naik Jadunath Singh was in command of a forward Section Post in Naushera (J&K). Enemy launched multiple attacks in successive waves. Naik Jadunath Singh though heavily outnumbered resisted, despite being wounded showed unmatched valour. Posthumously Awarded #ParamVirChakra pic.twitter.com/gL91JHzzgy
— ADG PI – INDIAN ARMY (@adgpi) February 7, 2019
उसने पाकिस्तान को तीसरी बार पीछे धकलने मर मजबूर कर दिया। ऐसा सिर्फ जदुनाथ के कुशल नेतृत्व व निडरता के कारण ही संभव हो सका था। 6 फ़रवरी 1948 को शहीद होने वाले नायक जदुनाथ को बाद में भारतीय सेना के सर्वोच्च पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से नवाजा गया। इस तरह भारत-पाकिस्तान की युद्ध में पाकिस्तान से कश्मीर बचाने वाले सैनिकों में एक नाम जदुनाथ का भी है, जिन्होंने अपनी वीरता से पाकिस्तानी सैनिकों के छक्के छुड़ा दिए थे। उन्होंने देश के लिए अपनी जान तक कुर्बान कर दी।