New Delhi : बिना आंखों के दौड़ना और ओलंपिक तक पहुंच जाना, कई इंटरनेशनल दौड़ों में प्रथम आकर गोल्ड मेडल जीतना। ये बात भले ही कल्पना जैसी और असंभव सी जान पड़ती हो लेकिन ये हमारे देश के पहले फुल्ली ब्लाइंड एथलीट की सच्ची कहानी है। अंकुर स्कूल में थे जब से ही वो इंटरनेशनल टूर्नामेंट खेलने लगे थे। अंकुर की प्रतिभा खेल तक ही सीमित नहीं है, वो शुरुआते से ही एक मेधावी छात्र रहे। उन्होंने 12वीं में टॉप किया जिसके बाद उनका दाखिला दिल्ली के जाने माने सेंट स्टीफंस कॉलेज में हो गया। यहां से उन्होंने इतिहास विषय से अपनी स्नातक की पढ़ाई की वो यहीं नहीं रुके उन्होंने यहीं से अपनी एम.ए भी पूरी की। धामा अपनी सभी अड़चनों को पीछे छोड़ते हुए आज विश्व स्तर पर अपना नाम बना चुके हैं। आइये जानते हैं देश के पहले ब्लाइंड एथलीट के बारे में।
Athletics Men's 1500m T11 Round1 Heat1 -Vipin Kumar Guide Runner for Ankur Dhama's was pushed by other competitor pic.twitter.com/zxah3LhOYt
— Paralympic India (@ParalympicIndia) September 11, 2016
#RioParalympics2016: Ankur Dhama, India's first blind athlete https://t.co/6MVQIUOwCr pic.twitter.com/pBxY6pypgA
— TOI Sports News (@TOISportsNews) September 6, 2016
अंकुर धामा का जन्म 7 जुलाई 1994 को खेकड़ा नाम के उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में हुआ। उनके पिता किसान हैं। जब उनका जन्म हुआ तो वो एकदम स्वस्थ थे, लेकिन जब वो पांच साल के हुए तो आंखों में हुए इन्फेक्शन के कारण उनकी पहले एक आंख चली गई फिर इलाज के दौरान उनकी दूसरी आंख भी चली गई। वो शुरू से खेलने कूदने में आगे रहते थे। जब वो देख सकते थे तब वो क्रिकेट खेलते थे। वो कहते हैं कि मेरी आखों के जाने के बाद मेरा क्रिकेटर बनने का सपना भी उन्हीं के साथ चला गया। लेकिन उस पांच साल के बच्चे ने अपना पूरा जीवन ग्लानी और रो-धोकर बिताने की बजाए जिंदगी में हर स्थिति में आगे बढ़ने का रास्ता चुना। आंखे खोने के बाद क्रिकेट छूटा तो उन्होंने बाकी दूसरे खेल के तरीके ढूंढ़ निकाले और अपना मन उन्हीं के जरिए लगाते।
अंकुर खेल के साथ साथ पढ़ाई में भी काफी तेज थे। उन्होंने अपनी आठवीं तक की पढ़ाई अपने गांव से ही सामान्य स्कूल में सामान्य छात्रों के साथ पढ़कर पूरी की। गांव में उनके पढ़ने के लिए ब्रेल सामग्री तक उपलब्ध नहीं होती थी। जब उन्होंने आठवीं कक्षा पास की तो उनके लिए गांव में कोई ब्लाइंड स्कूल नहीं था। उन्होंने अपने सीनियर्स से दिल्ली के कई प्रशिद्ध ब्लाइंड स्कूल के बारे में सुना था जिसमें से एक जेपीएम स्कूल था। अंकुर ने यहां का एंट्रेस निकाल कर इस स्कूल में दाखिला पाया। वो बताते हैं कि ये स्कूल उनकी लाइफ में टर्निंग पाइंट की तरह आया। यहां से उन्होंने काफी कुछ सीखा। उनका शैक्षिक विकास तो हुआ ही साथ ही यहां उन्हें खेल कूद का प्रोफेशनल माहौल मिला। यहीं से उन्होंने सबसे पहले अपने आपको एक एथलीट के रूप में पहचाना और स्टेट, फिर नेशनल और फिर इंटरनेशनल टूर्नामेंट उन्होंने खेले और कई पदक जीते।
कॉलेज मं अंकुर अपने कोच डॉ. सत्यपाल सिंह के नेतृत्व में ट्रेन हुए, जिन्होंने उनकी गलतियां और खूबिया बताई। 2016 में, उन्होंने पैरालम्पिक खेलों में पहली बार देश का प्रतिनिधित्व किया जहां उन्होंने रियो में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ एथलीटों के साथ मुकाबला किया। हालांकि वो यहां नहीं जीत पाए। अंकुर ने 2012 में मलेशियाई ओपन चैम्पियनशिप में 800 मीटर और 1500 मीटर में स्वर्ण पदक जीता। 2014 में ही , उन्होंने 1500 मीटर में स्वर्ण पदक और संयुक्त अरब अमीरात में शारजाह ओपन चैम्पियनशिप में 800 मीटर में कांस्य पदक जीता था। 2014 में फ़ैज़ा इंटरनेशनल एथलेटिक्स प्रतियोगिता में, उन्होंने 800 मीटर में रजत पदक और दुबई में 1500 मीटर में कांस्य पदक जीता।
Heartiest congratulations to very talented para-athlete from Baghpat, Ankur Dhama on being conferred with the coveted Arjuna Award today.
Ankur lost his vision at a very early age but that didn’t dampen his spirit,he trained hard and went on to win medals for the nation. 🇮🇳 pic.twitter.com/VKBJgJWYk8
— Dr. Satya Pal Singh (@dr_satyapal) September 25, 2018
With Ankur Dhama, who represented India in 1500m race at the #Paralympics. pic.twitter.com/f9Yksz6CrO
— Narendra Modi (@narendramodi) September 22, 2016
उन्होंने पैरालंपिक खेलों में अपने देश का प्रतिनिधित्व किया जहां उन्होंने रियो 2016 में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ एथलीटों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा की। अंकुर को 2018 नेशनल पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में पुरुषों की 800 मीटर स्पर्धा में स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। इसी साल राष्ट्रपति द्वारा उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया।