पिता ने पान की दुकान चलाकर बेटे को पढ़ाया, बेटे ने IAS बनकर पूरा किया गरीब पिता का सपना

New Delhi : आज हम आपको एक पान वाले के बेटे की सफलता की कहानी बता रहे हैं। लखनऊ के गणेशगंज इलाके के रहने शिव कुमार गुप्ता के बेटे ईश्वर कुमार ने IAS बनकर पूरे परिवार का नाम रौशन किया। लखनऊ के गणेशगंज इलाके में एक छोटा से मकान में रहने वाले शिव कुमार गुप्ता के इस चिराग ने ना सिर्फ इस इलाके में बल्कि पूरे शहर में अपने माता-पिता का नाम रौशन किया है। पिता शिव कुमार गुप्ता इसी इलाके में एक छोटी सी पान की दूकान चलाते थे, जो फिलहाल अतिक्रमण की जद में आकर टूट चुकी है।

शिवकुमार की दो बेटियां और दो बेटे हैं, बड़ा बेटा ईश्वर कुमार अब आईएएस अधिकारी बन गया है। सिविल सेवा में उसने 187वीं रैंक हासिल की है, जिसकी वजह से तीन दिन से लोगों के बधाई देने के लिए लोगों का तांता लगा हुआ है।
पिता शिवकुमार गुप्ता के मुताबिक़ उनके बेटे ने शुरूआती पढ़ाई आजमगढ़ में नानी के गांव में रहकर की थी। शुरू से ही पढ़ाई में होशियार ईश्वर ने जब हाईस्कूल के इम्तिहान में सूबे में 18वीं रैंक हासिल की तो उसके माता-पिता उसे लखनऊ पढ़ाई के लिए ले आये। ईश्वर के पिता ने खुद पान की एक छोटी सी दूकान लगाकर परिवार का पालन पोषण और बच्चों की पढ़ाई कराई। उसे इंजीनियर बनाने के लिए एजुकेशान लोन तक लिया।

ईश्वर कुमार की मां कुसुम देवी के मुताबिक़, जब उनके बेटे का फोन आया की वो अधिकारी बन गया वो खाना बनाना छोड़कर मंदिर पहुंच गयीं। ईश्वर की मां का कहना है कि लखनऊ से पढ़ाई के बाद वो गाज़ियाबाद में इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने चला गया और बाद में उसे सेल में नौकरी मिल गयी। अब वो दो तीन साल नौकरी कर लेगा तब उसकी शादी करेंगें।
बहन अनुराधा का कहना है कि वो शुरू से शर्मीले स्वभाव के हैं, हां लेकिन खेलने में क्रिकेट, फुटबाल, हॉकी, टेबल टेनिस हर तरह के खेल में उनका इंट्रेस्ट था। वो अपनी पढ़ाई को बहुत संजीदगी से लेते रहे हैं। जब वो इंजीनियर बन गये थे तब भी वो खासी पढ़ाई करते रहे। ईश्वर हमेशा कहा करते कि उनका तो बस एक ही सपना है आईएएस अधिकारी बनना, और वो चौथे प्रयास में आखिरकार आईएएस अधिकारी बन ही गए।

ईश्वर कुमार कांदू का कहना है की वो नौकरी करने के साथ ही पढ़ाई भी करते थे, रोजाना चार से पांच घंटे पढ़ते थे। पढ़ाई में उन्होंने ऑनलाइन स्रोत और डिजिटल मटेरियल का भी इस्तेमाल किया। छुट्टी के दिन ईश्वर आठ से नौ घंटे पढ़ाई करते थे। कांदू ने सिविल सर्विस की तैयारी के लिए कोचिंग भी नहीं की।

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