New Delhi : कहते हैं जहां हिम्मत और मेहनत साथ हों वहां कोई भी सपना पूरा हो सकता है। IAS श्वेता अग्रवाल की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। श्वेता एक छोटी से किराने की दुकान संचालित करने वाले 12वीं पास संतोष अग्रवाल एवं उनकी 10वीं तक शिक्षित पत्नी प्रेमा अग्रवाल की बेटी हैं। संतोष अग्रवाल की जिंदगी दिहाड़ी मजदूरी से शुरू हुई और छोटी सी किराने की दुकान पर खत्म हो गई लेकिन संतोष का संघर्ष और सपने इतने छोटे नहीं थे। उन्होंने अपनी बेटी श्वेता अग्रवाल को ना केवल अच्छे स्कूल में पढ़ाया बल्कि ऊंचाईयां छूने के लिए मोटिवेट भी किया।
From victim to victor, the story of IAS Sweta Agarwal will give you life goals! 😮💯
Posted by Josh Talks on Monday, June 11, 2018
आज उनकी बेटी श्वेता अग्रवाल एक आईएएस अफसर हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी श्वेता अग्रवाल कहती है कि वे दुनिया के सबसे अच्छे माता-पिता है। उन्होंने मुझे अपनी गरीबी के सामने कभी नहीं आने दिया और मुझे सबसे अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाया। श्वेता ने स्नातक सेंट ज़ेवियर कॉलेज, कोलकाता से किया। वे बताती है की मेरे माता-पिता हिंदी मध्यम से पढ़े है लेकिन उन्होंने मुझे अंग्रेजी माध्यम से पढाया, वे चाहते है की मै दुनिया के साथ चालू। श्वेता सेंट ज़ेवियर में अर्थशास्त्र में प्रथम आई थीं।
श्वेता अग्रवाल ने 2015 में यूपीएससी की परीक्षा में 19 वीं रैंक हासिल करके IAS अधिकारी बनने के अपने सपने को सच कर दिखाया। श्वेता जब दूसरी क्लास में थी तो उन्हें भी बाकी बच्चों की तरह ही घर से पैसे लाकर खाना खरीदने के लिए कहा जाता था। ऐसे में उनके माता-पिता ने श्वेता को कहा था कि उनके पास पैसे नहीं हैं। केवल एक चीज है जिस पर वो सबकुछ खर्च कर देंगे और वो है तुम्हारी पढ़ाई।
श्वेता अग्रवाल ने कोलकाता से पढ़ाई की है, लेकिन ज्वाइंट फैमिली में होने के बावजूद उनके पिता व्यावहारिक रूप से बेरोजगार थे। दैनिक मजदूर से लेकर किराने की दुकान में काम करने, सब्जी की दुकान चलाने तक उन्होंने श्वेता की शिक्षा के लिए काफी मेहनत की। श्वेता अग्रवाल ने पहले भी दो बार UPSC परीक्षा दी थी, लेकिन उनकी हमेशा से IAS ऑफिसर बनने की चाह थी। श्वेता बंगाल कैडर में शामिल होने के बारे में गर्व महसूस करती हैं।
अक्सर कहा जाता है कि लोग अपनी बेटियों पर जिंदगी भर की पूंजी का दांव नहीं लगाते। मध्यमवर्गीय लोग बेटियों को बंधन में रखते हैं। ऐसे पिता अपनी बेटियों के लिए कोई सपना नहीं देखते, परंतु संतोष ने देखा और देश को श्वेता जैसी अधिकारी दी।