New Delhi : नेता नगरी आज भले ही अकूत संपत्ति अर्जित करने का माध्यम मानी जाती हो लेकिन भारत में कुछ ऐसे नेता भी रहे हैं जिन्होंने इस धारणा को समय-समय पर अपनी सादगी से तोड़ा है। लालबहादुर शास्त्री, चौधरी चरण सिंह, अरविंद केजरीवाल या मनोहर पर्रिकर कई नाम लिए जा सकते हैं लेकिन माणिक सरकार की बराबरी करता कोई नहीं दिखता। जब जीवन में कुछ नहीं था तब से लेकर, जब वो त्रिपुरा के चार बार यानी बीस साल तक मुख्यमंत्री रहे तब तक वो अपनी सादगी नहीं डिगे।
Though I am not a supporter of any Left but manik sarkar simplicity has inspired me. Rare to find such personalities.
— sourabh singh (@sourabhAAP) March 4, 2018
What an amazing man this Manik Sarkar is!!! Respect. FYI he is a communist but i respect him for his simplicity. pic.twitter.com/6Hs4Y0aqRt
— Sujnan Nayak (@SujnanNayak) August 3, 2013
Being 'clean,non-corrupt&simple' despite being in power for25 yrs is certainly commendable. However let's not over-glorify this 'simplicity' & 'clean' image. What about performance?What are the major achievements of the Manik Sarkar govt over the 25 yrs they have been in power? pic.twitter.com/kHocRDYWA1
— Trishna Das Kumar (@TDasKumar) March 4, 2018
जहां कई नेता एक बार निगम पार्षद बन राजनीति की मलाई चाटने में और संपत्ति इकट्ठा करने में लग जाते हैं वहीं माणिक सरकार चार बार मुख्यमत्री रहते हुए भी अपना घर और एक कार नहीं खरीद पाए। वो मुख्यमंत्री बनने के बाद मुख्यमत्री आवास में ही रहे। यहां तक कि उन्हें मोबाइल भी रखना पसंद नहीं अपने सरकारी टेलीफोन के जरिए ही वो सब काम निपटाते हैं। उन्होंने अपना सारा जीवन देश और राज्य के नाम कर दिया। आइए जानते हैं इस महान हस्ती के बारे में।
माणिक सरकार का नाता त्रिपुरा से रहा है, यहां से वो लगातार 4 बार यानी बीस साल तक मुख्यमत्री रहे। 2018 में जब राज्य में विधानसभा चुनाव हुए तो वो हार गए, यानी सीएम नहीं बन पाए। बिप्लव देव मुख्यमंत्री बने। वर्तमान में वो राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं। वे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से संबद्ध हैं तथा पार्टी पोलितब्यूरो के सदस्य भी हैं। 2018 में चुनावों से पहले सीएम पद पर नामांकन करते वक्त उन्होंने अपनी कुल संपत्ति 1520 रुपए कैश और बैंक खाते में 2410 रुपए दिखाई थी। 20 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद भी उनके पास कोई भी विलासिता वस्तु तक नहीं है। उनका कहना है कि वो चाहें तो ये सब ले सकते हैं लेकिन उन्हें इसकी कोई जरूरत नहीं। उनका कहना है कि फिजूल खर्ची से बचा सारा रुपया उन्होंने जन कल्याण में लगा दिया। वामपंथी विचारधारा में उपभोग को ज्यादा से ज्यादा नकारने की जो नीति अपनाई जाती है उसे माणिक सरकार ने अपने जीवन में उतारा।
कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं के लिए बने सामान्य नियम के तहत जब वो मुख्यमंत्री थे तब उन्हें मिलने वाली तनख्वाह पार्टी फंड में जाती थी। यही नियम पर माणिक आज भी कायम हैं। घर चलाने के लिए उन्हें पार्टी की तरफ से खर्चे के रूप में 5000 रुपये महीने के मिलते हैं। एक इंटरव्यू के दौरान माणिक से उनकी सादगी के बारे में जब पूछा गया, जिसमें कहा गया कि अगर उन्हें भविष्य में मुख्यमंत्री आवास छोड़ना पड़े तो वो कहां जाएंगे। इसके जवाब में उन्होंने कहा- ”मेरा व्यक्तिगत खर्चा बहुत कम है – रोज़ का एक पैकेट गुल मंजन और एक चारमिनार सिगरेट, बस। तो मेरी पत्नी की पेंशन में हम दोनों का काम चल जाता है। रही बात घर की, तो वो देखा जाएगा।” हालांकि जायदाद के तौर पर उनकी मां द्वारा छोड़ा गया मकान प्राप्त है जो कि टिन से बना हुआ है।
Tripura CM & CPIM PBM Manik Sarkar's wife shows d way in simplicity. That's how d Left strikes a different chord. pic.twitter.com/FC4SR8LG6H
— Sowmen Mitter | সৌমেন মিটার | सौमेन मिटर (@SowmenMitter) December 20, 2015
Comrade Manik Sarkar visited Badharghat CPIM Party Office in Tripura which was set on fire yesterday night by BJP hooligans. This attack shows how terrified the BJP is. It will not stop us from raising voices of the people. pic.twitter.com/YM5U0zBEoF
— CPI (M) (@cpimspeak) January 9, 2020
Massive protests in Tripura as part of the all india call against anti people policies of the Modi Govt. Comrade Manik Sarkar was arrested while participating in the protest. He was later released due to statewide protest by people. We will keep fighting for the people! pic.twitter.com/vVrjhCXsz0
— CPI (M) (@cpimspeak) August 27, 2020
उनका राजनीतिक सफर की बात करें तो 1998 में सरकार को सबसे बड़ी सफलता मिली। 49 साल की उम्र में, वह माकपा के पोलित ब्यूरो के सदस्य बन गए, जो एक कम्युनिस्ट पार्टी में प्रमुख नीति-निर्माण और कार्यकारी समिति है। उसी वर्ष, वह त्रिपुरा राज्य के मुख्यमंत्री बने। तब से, उन्हें 20 वर्षों में लगातार पांच बार उसी पद के लिए चुना गया। वह भारत के उन गिने-चुने मुख्यमंत्रियों में एक हैं, जो इतने लंबे समय तक इस पद पर रह चुके हैं। उनकी पार्टी ने 2018 के चुनावों में बहुमत खो दिया और परिणामस्वरूप उन्हें पद छोड़ना पड़ा।