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पुरी में है भगवान जगन्नाथ के भक्त सालबेग का मंदिर, यहां से प्रसाद खाए बिना भगवान आगे नहीं जाते

New Delhi: हिंदु-मुस्लिम एकता की ये कहानी ऐसी है, जो हर धर्म के लोगों को सुननी चाहिए। ये कहानी पुरी में हर किसी को पता है। बच्चा-बच्चा इस कहानी को जानता है। ये कहानी भगवान जगन्नाथ के भक्त सालबेग की है। जिनका एक मंदिर भी है। उनकी समाधी के सामने रुके बिना रथयात्रा आगे नहीं बढ़ता है।

9 दिन मौसी के यहां रहने के बाद भगवान जगन्नाथ भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अपने घर यानी पुरी के जगन्नाथ मंदिर लौट आए। दो घंटे में एक किमी का सफर करने के बाद दोपहर 1:40 बजे अचानक भगवान जगन्नाथ का रथ एक मंदिर के सामने रुक गया। मंदिर में सामने नीले रंग का बोर्ड लगा है, जिस पर उड़िया और अंग्रेजी में लिखा है- सालबेग टेंपल, पुरी।

 

मंदिर से भगवान जगन्नाथ के लिए प्रसाद आया। उन्हें भोग चढ़ाया गया। इसके बाद ही यात्रा आगे बढ़ी। यहां से प्रसाद खाए बिना भगवान आगे नहीं जाते। 400 साल से ऐसा हो रहा है।’ भक्त सालबेग मुस्लिम थे। भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने वृंदावन से आए थे।

सालबेग 400 साल पहले हुए थे। सालबेग मुसलमान पिता और ब्राह्मण मां के बेटे हैं। बचपन से जगन्नाथ के भक्त थे। एक बार दर्शन के लिए पुरी आए थे। तब लोग पैदल यात्रा करते थे। चलते-चलते वे बीमार हो गए।’ ‘रथयात्रा का समय था। सालबेग ने जगन्नाथ को पुकारा। कहा- अब आगे नहीं बढ़ पाऊंगा। प्रभु मुझे यहीं दर्शन दो। उस वक्त भगवान जगन्नाथ मौसी के मंदिर से अपने मंदिर जा रहे थे। गुंडिचा मंदिर से जगन्नाथ मंदिर वापसी की परंपरा को बाहुड़ा कहते हैं।’

‘कहा जाता है बलभद्र और सुभद्रा के रथ तो चलते रहे, लेकिन जगन्नाथ का रथ वहीं रुक गया। उसे हाथियों से खींचने की कोशिश की गई, पर नहीं खिंचा। भक्त सालबेग ने दर्शन किए, तब जाकर रथ चला।’ सालबेग को जगन्नाथ के दर्शन हुए थे और यहीं सालबेग ने प्राण त्यागे थे। इसीलिए यहां उनकी समाधि बना दी गई थी।

सालबेग मंदिर में अंदर दाखिल होते ही सामने एक कमरा दिखता है। यहां दीवार पर भगवान जगन्नाथ की फोटो लगी है। नीचे छोटा सीमेंट से बना स्ट्रक्चर है। इस पर तिलक लगा था, फूल चढ़े थे। देखने में ये जगह किसी हिंदू देवी-देवता के स्थान की तरह है। पहले यहां भक्त सालबेग की छोटी सी समाधि थी। 2017 में सरकार ने मंदिर बनवा दिया।

 

 

 

 

 

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