हर हर महादेव

बाबा केदारनाथ का स्वर्ण मुकुट फंसा : रावल महाराष्ट्र में फंसे, कपाट खुलेगा 29 को, उनका रहना जरूरी

New Delhi : केदारनाथ मंदिर के मुख्य रावल (गुरु) महाराष्ट्र के नांदेड में फंसे हुए हैं। उन्होंने PM Narendra Modi से कपाट खुलने से पहले केदारनाथ पहुंचने की अनुमति मांगी है। रावल भीमाशंकर ने इसके लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखा है। रावल भीमाशंकर ने सड़क मार्ग से उत्तराखंड जाने की इजाजत मांगी है। हालांकि, उन्हें अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। उत्तराखंड सरकार उन्हें एयरलिफ्ट करने पर विचार कर रही है। उनके साथ मंदिर ट्रस्ट के चार और लोग भी हैं। केदारनाथ को पहनाया जाने वाला सोने का मुकुट भी उन्हीं के पास है। लॉकडाउन के चलते टिहरी राजघराने के सदस्यों का पहुंचना भी मुश्किल हो रहा है, परंपरा के मुताबिक कपाट खुलते वक्त उनका होना भी जरूरी है।
मंदिर के नजदीक 7 फीट गहराई तक बर्फ जमी है। किसी भी तरह की मशीनें यहां आ नहीं सकतीं, इसलिए गेंती-फावड़े से ही धीरे-धीरे बर्फ हटाई जा रही है। केदारनाथ पैदल मार्ग से बर्फ हटाने का कार्य में 150 श्रमिक जुटे हैं। इसके अलावा 32 श्रमिकों की एक टीम केदारनाथ पहुंची। यह दल केदारनाथ में बर्फ हटा रही है।

केदारनाथ जाने के सड़क मार्ग से बर्फ हटाते मजदूर

29 अप्रैल को धाम के कपाट खोले जाने हैं। ऐसे में प्रशासन का प्रयास है कि मार्ग पर 15 अप्रैल तक आवाजाही शुरू हो जाये। हालांकि अभी दो तीन दिनों का काम बाकी है। धाम के कपाट खुलने से पहले केदारनाथ पैदल मार्ग से बर्फ हटाना किसी चुनौती से कम नहीं है। केदारनाथ के प्रमुख पड़ाव गौरीकुंड से केदारनाथ तक 16 किलोमीटर लंबा पैदल मार्ग है। अब तक करीब 15 किलोमीटर हिस्से से बर्फ हटा ली गई है।
29 अप्रैल को सुबह 6 बजे से केदारनाथ के कपाट खुलने हैं, जबकि इससे पहले 26 अप्रैल को यमनोत्री गंगोत्री के कपाट खुलेंगे। हालांकि, सरकार ने इस बार चारधाम मंदिरों के दर्शन ऑनलाइन करवाने का फैसला लिया है। इस पर स्थानीय लोगों और पुजारियों ने आपत्ति जताई है। केदारनाथ के रावल महाराष्ट्र या कर्नाटक और बद्रीनाथ के केरल से होते हैं। ये लोग यहीं से हर साल यात्रा के लिए आते हैं। परंपरा के मुताबिक केदारनाथ के रावल खुद पूजा नहीं करते, लेकिन इन्हीं के निर्देश पर पुजारी मंदिर में पूजा करते हैं। वहीं, बद्रीनाथ के रावल के अलावा कोई और बद्रीनाथ की मूर्ति नहीं छू सकता। आदि शंकराचार्य के वक्त से चली आ रही परंपरा के मुताबिक, कपाट खुलते वक्त मुख्य पुजारी का वहां मौजूद रहना जरूरी है। केदारनाथ का स्वर्ण मुकुट इनके पास ही रहता है और पारंपरिक कार्यक्रमों में ये उसे पहनते भी हैं, जिसे कपाट खुलने पर केदारनाथ को पहनाया जाता है। कपाट खुलते वक्त रावल का वहां मौजूद रहना जरूरी है। केदारनाथ का स्वर्ण मुकुट इनके पास ही रहता है और पारंपरिक कार्यक्रमों में ये उसे पहनते भी हैं, जिसे कपाट खुलने पर केदारनाथ को पहनाया जाता है।


टिहरी दरबार नरेंद्र नगर में ही टिहरी महाराज की जन्म कुंडली देखकर मंदिर के कपाट खुलने की तारीख तय होती है। टिहरी राजघराने के लोग, जिन्हें बोलंदा बद्री भी कहते हैं, उनका बद्रीनाथ के कपाट खुलने के वक्त मंदिर में रहना जरूरी है और उनके राज पुरोहित ही पूजा करते हैं। बद्रीनाथ की गारू घड़ा की परंपरा भी राज परिवार की महारानी और महिलाएं पूरी करती हैं।
केदारनाथ मंदिर तक पहुंचने के रास्ते में बर्फ जमी हुई थी। अब केवल एक किलोमीटर का हिस्सा बाकी रह गया है। अगले 5 दिन में इस एक किमी में जमी बर्फ की सफाई का काम भी पूरा हो जाएगा। इसके बाद मंदिर तक का रास्ता आने-जाने के लिए खुल जाएगा।
इस बीच, यात्रा मार्ग पर खच्चरों का संचालन भी लिनचोली तक शुरू हो गया है। रास्ते मे बड़े-बड़े हिम शिखर होने के कारण खच्चरों का संचालन अभी मंदिर तक नहीं हो पा रहा है। केदारनाथ में लगातार हो रही बर्फबारी के कारण सफाई के काम में रुकावट आ रही है। फरवरी के अंतिम सप्ताह से टीम मार्ग को दुरुस्त करने में जुटी है, लेकिन बीच-बीच में खराब मौसम के कारण इसमें बाधा पड़ती रही। मार्च के आरंभ में भारी बर्फबारी के कारण काम में जुटे श्रमिकों को वापस गौरीकुंड भेजना पड़ा। इसके बाद मार्च के अंतिम सप्ताह से काम दोबारा शुरू किया गया। केदारनाथ और लिनचोली के बीच दो किलोमीटर मार्ग में करीब 15 से 20 फीट ऊंचे हिमखंड हैं। 32 सदस्यों की जो टीम केदारनाथ भेजी गई है वह केदारनाथ की ओर से मार्ग साफ करेगी, जबकि दूसरी टीम लिनचोली की ओर से आगे बढ़ेगी।

चार धाम की यात्रा का सड़क मार्ग साफ करते मजदूर

जिले में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के लिए सात स्थाई चिकित्सकों की तैनाती की गई है जबकि एक चिकित्सक को अस्थाई तौर पर रखा गया है। स्थायी चिकित्सकों की तैनाती होने से जहां कोरोना संक्रमण महामारी से निपटने में स्वास्थ्य विभाग को राहत मिलेगी, वहीं दूरस्थ इलाकों में चिकित्सक मिलने से लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं के लिए भटकना नहीं पड़ेगा।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. एसके झा ने बताया कि जिले के दूरस्थ इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के उद्देश्य से स्थाई रूप से चिकित्सकों की तैनाती कर दी गई है। डॉ. भुवन चन्द्र प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र दैड़ा ऊखीमठ, डॉ. दीपाली नौटियाल व डॉ हेमा असवाल सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र अगस्त्यमुनि, डॉ. कपिल तिवारी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र जखोली, डॉ. नेहा अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य दुर्गाधार, डॉ. भवानी प्रताप राजकीय एलोपैथिक चिकित्सालय पठालीधार, डॉ. शिवानी गुंसाई जिला अस्पताल एवं अस्थाई तौर पर डॉ नितीश कुमार को अति प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र जैली में तैनात किया गया है।

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