NEW DELHI – इसी साल 22 जनवरी को अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर का उद्घाटन होना है और देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति सहित देश के सभी मुख्यमंत्री, राज्यपाल और विधायक सांसदों को भी इस आयोजन के लिए आमंत्रण कार्ड भेजा गया है. इसके अलावे देश विदेश से कई महत्वपूर्ण लोगों को भी बुलवा भेजा गया है, लेकिन आश्चर्य की बात है कि इस देश के चार शंकराचार्यों को अभी तक आमंत्रण पत्र नहीं भेजा गया है.
न्यूज वेबसाइट द वायर पर करण थापर और ज्योतिषापीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का एक इंटरव्यू प्रकाशित हुआ है। उसके अनुसार शंकराचार्य का कहना है कि मुझ पर गलत आरोप लगाया जा रहा है कि मैंने अयोध्या राम मंदिर उद्घाटन समारोह का विरोध किया है, जबकि सच यह है कि मंदिर समिति द्वारा अभी तक मुझे कोई आमंत्रण पत्र नहीं दिया गया है, इसलिए हम पर यह आरोप कोई नहीं लगा सकता कि हमने आमंत्रण को ठुकरा दिया है। हालांकि मुझे आमंत्रण पत्र मिलता तो भी मैं वहां नहीं जाता. जब करण थापर ने पूछा कि क्या आपके अतिरिक्त उन तीन शंकराचार्यों को भी आमंत्रण पत्र नहीं मिला है तो अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि मैं अपनी बात कह सकता हूं, उन तीनों का पक्ष नहीं ले सकता.
आमंत्रण पत्र अब तक नहीं दिया गया इसके पीछे आपको क्या कारण लगता है
शंकराचार्य ने कहा कि यह सवाल तो मंदिर समिति के लोगों से पूछा जाना चाहिए
क्या आपको अपमानित करने के लिए मंदिर समिति द्वारा अब तक आमंत्रण पत्र नहीं दिया गया है
शंकराचार्य ने कहा कि कह नहीं सकते. ट्रस्ट का क्या विचार है, यह तो ट्रस्ट ही बता सकता है. हम लोगों ने राम जी की जन्म भूमि की प्राप्ति के लिए जो हमारा कर्तव्य था उसका हमने निर्वाह किया है. इसलिए हमारे मन में संतोष है
क्या आपको लगता है कि अभी भी समय है कि आपके पास आमंत्रण पत्र आ सकता है और आमंत्रण पत्र नहीं आने के कारण आप अपसेट हो
ऐसी कोई आकांक्षा मेरे मन में नहीं है कि मुझे वहां आमंत्रित किया जाए. सच बात यह है कि अगर वह मुझे आमंत्रित भी करते तो मैं वहां नहीं जाता
आमंत्रण मिलने के बाद भी आप वहां क्यों नहीं जाते
इसलिए नहीं जा सकते हैं क्योंकि शंकराचार्य जी के सामने अगर कुछ अशास्त्रीय होता है जो शास्त्रों के अनुसार स्वीकार नहीं किया जा सकता है, हम लोग यह चाहते हैं कि जो भी धर्म कार्य हो वह शास्त्रों के निर्देश पर हो, धर्मशास्त्र के अनुसार हिंदू धर्म शास्त्र जिसमें कार्य करने की पद्धति विधि बताई गई है कि ऐसा करना, ऐसा नहीं करना है
क्या हिंदू धर्म के अनुसार इस बात का उल्लेख है कि मंदिर संपन्न हुए बिना और शिखरर बने बिना प्रतिमा का प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो सकता
हिंदू धर्म में जितने भी वास्तु शास्त्र हैं या कोई भी ग्रंथ है उसको उठा लीजिए स्पष्ट रूप से कहा गया है मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती है, बल्कि मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होती है. मंदिर देव रूप है. माने भगवान का शरीर तो मंदिर है, मूर्ति आत्मा है. धर्मशास्त्र के हिसाब से मंदिर भगवान का शरीर होता है. कलश भगवान का सर होता है. अभी शिखर बना ही नहीं है. धर्मशास्त्र के अनुसार शिखर भगवान की आंखें हैं. वर्तमान राम मंदिर की बात करें तो आंख बना नहीं है, सर बना नहीं है, मुंह बना नहीं है. बिना सर के सिर्फ घर तैयार हुआ है. इस धर्म में आप कहते हैं कि हम प्राण डाल देंगे. यह कोई सामान्य गलती नहीं है
गर्भगृह तैयार हो तो क्या प्राण प्रतिष्ठा हो सकती है
गर्भगृह का मतलब है मां का कोख। अर्थात गर्भाशय तैयार हो गया है. गर्भाशय में गर्भाधान होता है अर्थात गर्भधारण. 9 महीने के बाद ही वह सामने आता है फिर उसके हाथ बनते हैं, पैर बनते हैं, शरीर बनता है, मुंह बनता है, आंख बनता है. जब तक पूरा शरीर ना बन जाए तब तक प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो सकता
22 जनवरी का दिन मंदिर उद्घाटन के लिए क्या सही है
अगर 22 जनवरी का दिन सही है तो पंचांग में उल्लेख क्यों नहीं है देश के सभी हिंदुओं के घर में पंचांग रहता है. 80% हिंदू मुहूर्त देखे बिना कोई भी काम नहीं करते. इसलिए घर में पंचांग खरीद कर रखा जाता है. अभी भी सनातन धर्म के लोग पंचांग और मुहूर्त पर ही ध्यान देते हैं. हर पंचांग में 1 साल के अंदर आने वाले सभी शुभ मुहूर्त का उल्लेख रहता है. आप देशभर से सारे पंचांग मंगा लीजिए और किसी एक पंचांग में दिखा दीजिए की पंचांग लिखने वाले ने इस दिन को राम मंदिर उद्घाटन के मुहूर्त में लिखा है. क्या देश के सारे ज्योतिषी जो पंचांग बनाते हैं और देशवासियों को शुभ मुहूर्त की जानकारी देते हैं क्या किसी ने इस दिन के मुहूर्त को नहीं पकड़ पाया. एक आदमी आ गया और इस मुहूर्त को पकड़ ले रहा है. बाकी ज्योतिषी क्यों नहीं पकड़ पाए. अगर यह इतना उत्तम मुहूर्त था कि 500 वर्षों के संघर्ष के बाद बनने वाले भगवान श्री राम के मंदिर प्राण प्रतिष्ठा हो सकती थी तो ज्योतिषियों ने क्यों नहीं पकड़ा और पंचांग में क्यों नहीं छापा कि इस दिन यह मुहूर्त है. हमने तो 10—15 पंचांग मंगवा कर देख लिया, किसी में नहीं मिला. 22 जनवरी का दिन जिस ज्योतिषी जी ने निकाला है वह काशी के रहने वाले हैं, काफी अच्छे हैं और विद्वान हैं. हम लोग भी उनका आदर सम्मान करते हैं. हमने टीवी पर उनका इंटरव्यू देखा जिसमें वह कह रहे हैं कि मुझे कहा गया की जनवरी के अंदर का मुहूर्त चाहिए तो जो उसमें से सबसे अच्छा था वह मैंने बता दिया. इसका मतलब है कोई उनको ऑर्डर दे रहा था कि आपको इसी टाइम फ्रेम में उद्घाटन का दिन निकालना है. ऐसे में जनवरी महीने के अंदर जो उनको अच्छा दिन लगा होगा वह उन्होंने बता दिया. हम समझते हैं कि इसमें ज्योतिषीजी का कोई दोष नहीं है.
क्या अभी भी निमंत्रण पत्र आएगा तो आप ठुकरा देंगे
अगर मुझे आमंत्रण पत्र आया होता तो मैं अयोध्या तक तो जाता लेकिन मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा में शामिल नहीं होता. मैं इसलिए जाता ताकि आमंत्रण का सम्मान भी हो जाए, भगवान के घर से बुलावा आया था उसका निरादर नहीं होना चाहिए. हम अयोध्या तक जाते. ताकि मंदिर समिति को बता सके कि देखिए हम आपका आमंत्रण पर तो आए हैं लेकिन प्राण प्रतिष्ठा में शामिल नहीं होंगे क्योंकि शास्त्र के अनुसार काम नहीं हो रहा है. हम अपने सामने अधर्म होते नहीं देख सकते.
क्या आपके अलावे देश के अन्य शंकराचार्य भी 22 जनवरी को अयोध्या मंदिर प्राण प्रतिष्ठा में नहीं जा रहे हैं
कोई नहीं जा रहा है अभी तक जो मेरी जानकारी है उसके अनुसार कोई भी शंकराचार्य इस आयोजन में भाग लेने नहीं जा रहे हैं. आगे क्या परिवर्तन होगा यह कौन कह सकता है.
पुरी के शंकराचार्य ने कहा है कि शास्त्र में साफ उल्लेख है की प्रतिमा को कौन छूकर प्राण प्रतिष्ठित कर सकता है. अगर प्रधानमंत्री प्राण प्रतिष्ठित करेंगे तो क्या मैं वहां ताली बजाने जाऊंगा. क्या आपको लगता है पूरी के शंकराचार्य ने सही कहा है
बिल्कुल उन्होंने जो कहा है वह एकदम सही है, शब्द सबके अपने-अपने होते हैं. शब्दावली कुछ भी हो सकती है मूल बात यह है कि शास्त्र विधि वहां पर नहीं हो रही है, इसलिए वहां हमारा उपस्थित होना सही नहीं है. जो मैं कह रहा हूं वही बात वह भी कह रहे हैं. अशास्त्रीय कार्य होगा वहां हम जाकर क्या करेंगे. हम वहां उसको रोक तो लगा नहीं सकेंगे, उपस्थित होने पर भी दबाव रहेगा. ऐसी स्थिति में न जाना ही सही रहेगा.
मंदिर प्राण प्रतिष्ठा करने का अधिकार शंकराचार्य का है, चार दिशा में चार शंकराचार्य बनाए गए हैं लेकिन सबके अधिकार बराबर है. चारों का शास्त्र एक ही है.
देशभर में इस बात को लेकर चर्चा है कि राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा धार्मिक से ज्यादा राजनीतिक हो चुका है इस पर आपका क्या विचार है
राम मंदिर का जो मामला है वह खुद ही राजनीतिक हो चुका है. धार्मिक कहां रह गया है. अगर धार्मिक रहता तो धर्माचार्य से परामर्श किया जाता. सबसे पहली बात तो यह है कि धर्माचार्य का एक रामालय ट्रस्ट बना हुआ था. 1993 में भूमि का अधिग्रहण हुआ तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अभी नहीं, मुकदमा चलेगा. मुकदमा में जो जीतेगा चाहे हिंदू पक्ष या मुस्लिम पक्ष उसको अगल-बगल की विवादित जमीन निर्माण के लिए दे दी जाएगी. राम जन्मभूमि न्यास है जिसके कारण ढांचा ढाया गया उसको नहीं दी जाएगी. इसलिए अगर दूसरा कोई संतों का ट्रस्ट इसके लिए तैयार होगा भविष्य में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने पर उसे दी जा सकेगी. तो ऐसी स्थिति में शंकराचार्यों का एक ट्रस्ट जिसे रामालय ट्रस्ट कहा गया उसका निर्माण किया गया जो कि पहले से विद्यमान था लेकिन उसे हटाकर के प्रधानमंत्री द्वारा एक नया ट्रस्ट बनाया गया. जिसकी घोषणा भारत के संसद में की गई. इसका मतलब है वहीं से समझ आ गई की यह धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक है. होना तो यह चाहिए था कि धार्मिक लोगों को उसे ट्रस्ट में रखा जाता, जो धर्म के बारे में जानते और पढ़ते हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ. साल 1993 में जब कांग्रेस की सरकार थी पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे तब नया ट्रस्ट बनाने को लेकर कहा गया तब उन्होंने खुद तो नया ट्रस्ट नहीं बना लिया बल्कि संतो को ट्रस्ट बनाने के लिए कहा. पीवी नरसिम्हा राव भी चाहते तो स्वयं का ट्रस्ट बना देते लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. लेकिन इन्होंने बना दिया. जिस दिन रामालय ट्रस्ट को हटाकर नया ट्रस्ट बनाया गया उसी दिन पता चल गया कि यहां धर्म की अनदेखी होने वाली है. वह अनदेखी हमेशा चलती रही, मंदिर निर्माण में कभी भी धर्माचार्य से या शंकराचार्य से सीधा कोई परामर्श नहीं लिया गया. व्यक्तिगत अगर किसी से लिया गया हो तो इस बात की जानकारी मुझे नहीं है. कभी भी ऐसी कोई खबर अखबार या टीवी चैनल में नहीं आई कि शंकराचार्य से मिलकर पूछा गया कि आप लोग इसके बारे में क्या कहना चाहते हैं और क्या सुझाव देना चाहते हैं. अब मंदिर बन रहा है और प्राण प्रतिष्ठा की बात चल रही है, इसमें भी शंकराचार्य से कोई सलाह मशवरा नहीं किया गया, बिना पूछे आप तारीख तय कर देते हैं और कहते हैं कि सब कुछ सही हो रहा है.
हिंदू अखबार का उल्लेख करते हुए पूरी के शंकराचार्य ने कहा है कि किसी भी पॉलीटिशियन को धर्म की सीमा नहीं लांघणी चाहिए, मुझे लगता है कि एक आदमी करोड़ देवी देवता पर भारी पड़ रहा है तो क्या यहां पुरी के शंकराचार्य का मतलब पीएम मोदी से है
देखिए इसमें कोई दो राय नहीं है कि सब जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही नजर आते हैं और पूरी के शंकराचार्य ने जो कहा वह छुपा हुआ नहीं है कि उनका अर्थ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही है. एक व्यक्ति ही सबको चल रहा है
क्या आपको इस बात की चिंता है कि राम मंदिर एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है और यह देश को जोड़ने के बदले तोड़ रहा है
यही तो चिंता की बात है, हम सब की यही चिंता है आप भेद डालने की बात कर रहे हैं आप वेद शास्त्र मानने वाले को दो भाग में बांट रहे हैं. मंदिर ट्रस्ट में बैठे हुआ आदमी कहता है कि यहां शक्तों का और शिव के भक्तों का क्या काम है. यहां संन्यासियों का क्या काम है. शंकराचार्य का यहां क्या काम है. इस तरह से जो विभाजनकारी वाक्य है. यह वाक्य उस जगह से आ रहा है जिसका दायित्व था कि हिंदुओं को या पूरे देश के लोगों को किसी न किसी रूप में एक कर देता. किसी ने इस मंदिर को राष्ट्र मंदिर कहा था. राष्ट्र मंदिर इसी तरह से बनेगा यहां तो होना यह चाहिए था कि भारत में रहने वाले हर एक आदमी को इससे जोड़ा जाता किसी न किसी रूप में. लेकिन आपने तो हिंदू सनातन धर्म के लोगों में ही फूट डालने का काम कर दिया
अयोध्या में राम मंदिर बन रहा है क्या आप इससे सहमत हैं कि काशी और मथुरा में भी मंदिर का निर्माण होना चाहिए
हां हम इसके समर्थक हैं और हम चाहते हैं कि वहां मंदिर निर्माण हो. हम लोग एक देश में रह रहे हैं. एक देश में रहने का मतलब है कि हमारे बीच विवाद का कोई बिंदु ना हो. अगर कोई बिंदु है तो उसे तुरंत खत्म किया जाए अर्थात सुलझा ले. इतिहास स्पष्टता के साथ कह रहा है और कई साक्ष्य भी है किसी समय किसी कारण से जबरदस्ती का निर्माण हो गया है. हम चाहते हैं कि मिलजुल कर लोग बैठे और मिलजुल कर फैसला ले. 1950 में करपात्रृ जी महाराज ने मेनिफेस्टो लिखा था कि हम अगर सत्ता में आते हैं तो एक आयोग का गठन करेंगे कि जो स्थान जिसका है उसे दे दिया जाए, अगर हिंदुओं के स्थान पर मुसलमान का कब्जा है तो हिंदुओं को दे दिया जाए और अगर मुसलमान के स्थान पर हिंदुओं का कब्जा है तो मुसलमान को दे दिया जाए.
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