New Delhi : कहते हैं जो सपने देखता है वो उसे पूरा करने के लिए जी जान लगा देता है। मेहनत के दम पर कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है। ये साबित किया IAS रमेश ने। रमेश कभी अपनी मां के साथ गलियों में घूम घूमकर चूड़ियां बेचा करते थे। महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के वारसी तहसील के महागांव के रमेश घोलप के सपने भी कुछ ऐसे थे कि उनकी नींद ने उनका साथ छोड़ दिया था। बचपन जब संभ्रांत घरों के बच्चे स्कूल जाने के लिए तैयार हुआ करते थे तब वह अपनी मां के साथ नंगे पांव चूड़ियां बेचने निकल जाया करते थे।
Experience makes a man better understand and deal with sufferings.
A case in point is Ramesh Gholap,who despite the hardships became an IAS officer. And now working overtime help people suffering because of Corona crisis. @RmeshSpeaks @dckoderma #SaturdayMorning #Jharkhand pic.twitter.com/Rhy6PLdruo— WeYo हिंदी (@WeYoIndia) July 4, 2020
निराशेच्या काळात मनातील भावना जवळच्या व्यक्तीसोबत #व्यक्त केल्या पाहिजेत.
स्पर्धा परीक्षेचा अभ्यास करताना 2010 साली पूर्व परीक्षा #फेल झाल्यावर तेंव्हा मैत्रिणीला(सध्याची पत्नी) लिहिलेल्या पत्रातून व्यक्त केलेल्या #भावना व #निर्धार.पूर्ण व्हिडिओ लिंक👇https://t.co/SFVGNF6DEG pic.twitter.com/rZngbTArKh
— Ramesh Gholap IAS (@RmeshSpeaks) August 28, 2020
रोटी के संघर्ष में रमेश और उनकी मां गर्मी-बरसात और जाड़े से बेपरवाह होकर नंगे पांव सड़कों पर फेरी लगाया करते थे। लेकिन आज वही रमेश एक IAS अफसर हैं। दुनिया में ऐसे लोग बहुतायत में हैं जो विपरीत परिस्थितियों के सामने टूट जाते हैं, लेकिन रमेश तो परिस्थितियों से लड़ने के लिए ही पैदा हुए थे। रमेश के पिता नशे के आदी थे और अपने परिवार का ख्याल नहीं रखते थे। अपने घर-बार का खर्चा उठाने के चक्कर में मां-बेटे चूड़ियां बेचने को विवश थे। कई बार तो इस काम से जमा पैसों से भी पिता शराब पी जाया करते थे।
रमेश बढ़ती उम्र से तालमेल बिठाते हुए मैट्रिक तक पहुंचे ही थे कि उनके पिता की मृत्यु हो गई। इस घटना ने उन्हें भीतर तक हिला कर रख दिया, लेकिन वे फिर भी डटे रहे। इन्हीं विपरीत परिस्थितियों में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा दी और 88.50 फीसदी अंक हासिल किए। तंगहाली के दिनों में रमेश ने दीवारों पर नेताओं के चुनावी नारे, वायदे और घोषणाओं इत्यादि, दुकानों के प्रचार, शादियों में साज-सज्जा वाली पेंटिंग किया करते थे। इस सबसे मिलने वाली रकम को वह पढ़ाई और किताबों पर खर्च किया करते थे।
कभी मां के साथ घर-घर घूम बेचते थे चूड़ियां, अब देश के तेज-तर्रार IAS हैं Ramesh Gholap @RmeshSpeaks ;
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छोटी उम्र से ही हर चीज के लिए जद्दोजहद करते-करते रमेश कई जरूरी बातें सीख गए थे। जैसे कि लोकतंत्र में तंत्र का हिस्सा होना क्या-क्या दे सकता है। व्यवस्था को बदलने के लिए क्यों व्यवस्था में घुसना बेहद जरूरी है। उन्होंने साल 2010 में अपनी मां को पंचायती चुनाव लड़ने हेतु प्रोत्साहित किया। उन्हें गांव वालों से अपेक्षित सहयोग भी मिला लेकिन उनकी मां चुनाव हार गईं। वह कहते हैं कि उसी दिन उन्होंने प्रण किया कि वे अफसर बन कर ही गांव में दाखिल होंगे।
रमेश कहते हैं कि संघर्ष के लंबे दौर में उन्होंने वो दिन भी देखे हैं, जब घर में अन्न का एक दाना भी नहीं होता था। फिर पढ़ाने खातिर रुपये खर्च करना उनके लिए बहुत बड़ी बात थी। एक बार मां को सामूहिक ऋण योजना के तहत गाय खरीदने के नाम पर 18 हजार रुपए मिले, जिसको उन्होंने पढ़ाई करने के लिए इस्तेमाल किया और गांव छोड़ कर इस इरादे से बाहर निकले कि वह कुछ बन कर ही गांव वापस लौटेंगे। शुरुआत में उन्होंने तहसीलदार की पढ़ाई करने का फैसला किया और इसे पास भी किया। लेकिन कुछ वक्त बाद आईएएस बनने को अपना लक्ष्य बनाया।
रमेश कलेक्टर बनने का सपना आंखों में संजोए पुणे पहुंच गए। पहले प्रयास में वे असफल रहे। वे फिर भी डटे रहे और दूसरे प्रयास में आईएस परीक्षा में 287 रैंक हासिल की। आज वह झारखंड मंत्रालय के ऊर्जा विभाग मे संयुक्त सचिव हैं और उनकी संघर्ष की कहानी प्रेरणा पुंज बनकर लाखों लोगों के जीवन में ऊर्जा भर रही है। वाकई रमेश आज वैसे तमाम लोगों के लिए एक मिसाल हैं जो संघर्ष के बलबूते दुनिया में अपनी पहचान बनाना चाहते हैं।