प्रिय मुंशी जी,
पहली बार आपको पत्र लिख रहा हूं. आपकी लेखनी ने मुझ जैसे साधारण इंसान पर गहरा प्रभाव डाला है. समाज को देखने का नजरिया बदला है. आपकी लेखनी ने एक मजदूर को इंसान बनाया है. सच कह रहा हूं आपकी कुछ किताबें अगर हाथ न लगी होतीं तो मेरे लिए एक मजदूर सिर्फ मजदूर होता. उसे इंसान के रूप में आपने दिखलाया.
आपको पढ़ने से पहले भी एक मजदूर के बदन पर वही कमीज थी मटमैली सी. वह तब भी भोर में ही मजदूरी करने जा रहा था. कड़कड़ाती सर्दी में, बारिश, चिलचिलाती धूप में. सारे मौसमों में. लेकिन तब वह मेरे लिए सामान्य सी बात थी. अब इन संवेदनाओं को महसूस कर पाता हूं. उसे शब्द दे पाता हूं.
आपकी याद आती है. आप जैसे छोड़कर गए थे. समाज अब भी वैसा ही है. गरीबी, अमीरी, राजनीति सब कुछ. आप होते तो लिखते पैदल चल रहे मजदूरों की कहानी. और साथ में रखते उस समाज को जिसने उन्हें पैदल चलने पर मजबूर किया. आप होते तो लिखते जब लॉकडाउन में समाज का एक हिस्सा स्वादिष्ट पकवानों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा कर रहा था ठीक उसी समय एक मां अपने बेटे को नमक-भात परोस रही थी.
आप लिखते उन मजदूरों की कहानी जो रोटी के लिए शहर गए थे. रोटी रेलवे लाईन पर ही रह गई और वो कट कर मर गए. आप लिखते उस समाज की संवेदनहीनता को जिसने यह कहा कि रेलवे लाईन सोने के लिए नहीं होती. आप लिखते उस झुककर चलने वाले बूढ़े इंसान की कहानी जो छत पाने के लिए पेंशन पाने के लिए सरकारी बाबूओं के चक्कर काटता है.
आप लिखते उस पिता के दर्द को जो सुबह बेटे को साथ में मजदूरी पर ले जाने के लिए जगाता है. उस मां की कहानी जो एक साथ पति और बेटा दोनों को परदेसी होते देखती है. किसानों की भी वही हालत है जैसा आप छोड़कर गए थे. अभी हाल की ही एक खबर आपको बताता हूं, एक किसान दंपति पर पुलिस ने इतनी लाठिया बरसाईं कि पति-पत्नी ने जहर खा लिया. आप होते तो बाप को गोद में लेकर बिलखते उन बच्चों पर लिखते.
आप होते तो लिखते उन सफाईकर्मियों की कहानी जो बजबजाते औऱ बदबू देते नालों में मर रहे हैं। पिछले साल की एक खबर आपको बता रहा हूं, गुजरात के वडोदरा में एक सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान सात सफाईकर्मी मर गए. दलितों को आए दिन पीट दिया जाता है क्योंकि वो बराबरी की बात करते हैं. सम्मान से जीना चाहते हैं.
वर्ष 2015 की बात है बीटेक के तीसरे बर्ष में था. आपकी पहली किताब जो मैंने पढ़ी वो थी गबन. उस किताब ने मुझे इतना प्रभावित किया कि तकनीक की दुनिया को छोड़कर मैं लेखन की दुनिया में आ गया. हां लेखन की दुनिया से केवल अपना पेट पल जाता है. लेकिन लिखने के बाद जो खुशी मिलती है शायद तकनीक की दुनिया में उसे नहीं पा पाता. कहने के लिए बहुत कुछ है लेकिन इस पत्र में इतना ही. बस इतना कहूंगा कि मुझे संवेदनशील बनाने में आपका बड़ा हाथ है.
आपका प्रशंसक
देवपालिक