New Delhi : अरूणिमा सिन्हा! ये केवल नाम नहीं है बल्कि अब हौसले और जुनून का पर्याय बन चुका है। इस नाम से भारत तो गौरवान्वित हुआ ही है साथ ही न जाने कितने लोगों को प्रेरणा मिली है। अरुणिमा सिन्हां वो नाम जिससे उससे कुछ बदमाशों ने उसका पैर तो छीन लिया लेकिन हौसला न छीन पाया। उस पैर के बदले अरुणिमा कृत्रिम पैर लगा दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों को फतह कर गई और कृत्रिम पैर के सहारे इतिहास रचने वाली पहली महिला बन गईं। आज हम इसी नाम का परिचय आपको देने वाले हैं।
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— Telugu Dost-Sudheer (@telugudost004) July 30, 2020
अरुणिमा सिन्हा पहले वॉलीबॉल खिलाड़ी थीं। अप्रैल, 2011 में जब वो लखनऊ से नई दिल्ली ट्रेन द्वारा आ रही थी तो कुछ बदमाशों ने उनके गले में लटकी सोने की चैन को छीनने के लिए उनसे हाथा पाई की। बदमाशों ने चैन को छीन कर उन्हें चलती ट्रैन से बाहर फैंक दिया। दुर्घटना में उन्होंने अपनी एक टांग गंवा दी। बावजूद इसके अरूणिमा ने गजब के साहस का परिचय देते हुए 21 मई 2013 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट (29028 फुट) को फतह कर एक नया इतिहास रचते हुए ऐसा करने वाली पहली विकलांग भारतीय महिला होने का रिकार्ड अपने नाम कर लिया।
उसके बाद उन्होंने सभी सात महाद्वीपों की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों पर आरोहण का इरादा किया था। अरुणिमा को उनकी उपलब्धियों के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें ब्रिटेन की एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि से भी सम्मानित किया है। जिन हालात में अरुणिमा थीं, उसमें लोगों को खड़े होने के लिए सालों लग जाते हैं, वहीं अरुणिमा केवल चार माह में ही उठ कर खड़ी हो गईं। अगले दो साल उन्होंने एवरेस्ट पर चढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल से प्रशिक्षण लिया। उन्हें स्पांसर मिले, उनकी यात्रा शुरू हुई और फिर वह दिन भी आया जब मंजिल फतह हुई।
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— Neetu Yadav (@anabledlife) July 27, 2020
अरुणिमा का एक और सपना है वो है विकलांग लोगों के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय खेल अकादमी की स्थापना करना। इसके लिए वो बताती हैं कि, “इसके लिए मैंने कानपुर के पास उन्नाव में जमीन खरीद ली है। भवन बनाने की जरूरत है जिसपर 55 करोड़ खर्च होंगे। लेकिन, यह एक पैर से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने से अधिक मुश्किल नहीं होगा।” अरुणिमा ने लखनऊ में 120 विकलांग बच्चों को गोद भी लिया है और हर संभव तरीके से उनकी मदद कर रही हैं।