मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि: अब मानसरोवर जायेंगे गाड़ी से, 79 KM धारचूला-लिपूलेख मार्ग शुरू

New Delhi : PM Narendra Modi के व्यक्तिगत प्रयासों से दुर्गम कैलाश मानसरोवर यात्रा अब आसान हो गई है। उत्तराखंड के घटियाबगर से लिपूलेख के बीच करीब 60 किमी लंबी सड़क तैयार हो गई है। इस सड़क के बन जाने से लोग अब गाड़ियों से मानसरोवर तक जा सकेंगे। शुक्रवार को डिफेंस मिनिस्टर राजनाथ सिंह ने इसका उदघाटन किया। इस तरह मानसरोवर का उत्तराखंड वाला रास्ता सुगम हो गया है। इस रास्ते पर पहले छह दिन में 79 किमी पैदल यात्रा करनी पड़ती थी। अब यह सफर वाहन से तीन दिन में पूरा कर सकेंगे। यहां सड़क निर्माण पूरा हो गया है। यात्री अल्मोड़ा या पिथौरागढ़ होते हुए चीनसीमा से लगे लिपूलेख तक गाड़ियों से पहुंच सकेंगे।

सीमा सड़क संगठन ने उत्तराखंड में धारचूला-लिपूलेख मार्ग का निर्माण किया है। डिफेंस मिनिस्टर राजनाथ सिंह ने आज इस मार्ग का उद्घाटन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये किया है। बीआरओ ने 80 किलोमीटर की इस सड़क से धारचूला को लिपुलेख से जोड़ा है। यह विस्तार 6000 से 17060 फीट की ऊंचाई पर है। नई सड़क पिथौरागढ़-तवाघाट-घटियाबगर मार्ग का विस्तार है।
लिपूलेख रूट 90 किलोमीटर का ऊंचाई वाला ट्रैक था। अधिक उम्र के यात्रियों को यहां बहुत मुश्किल होती थी। अब यह यात्रा वाहनों से की जा सकती है। लोगों को अब 5-6 दिन तक चढ़ाई करने की जरूरत नहीं है।
कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए सड़क का निर्माण 2007 में घटियाबगर से शुरू हुआ था, पर 2014 तक निर्माण की गति बहुत धीमी रही। काम तेज करने के लिए चीन सीमा से लगे गुंजी से भी सड़क बनाने की योजना बनाई गई, लेकिन यह कठिन था। इसमें सबसे बड़ी चुनौती 14 हजार फीट ऊंचाई पर गूंजी तक उपकरणों को पहुंचाना था। जेसीबी, बुलडोजर, रोड रोलर जैसे भारी उपकरणों के पार्ट्सगूंजी तक हेलीकॉप्टर से पहुंचाए गए। वहां इंजीनियरों ने इन्हें असेंबल कर मशीनें बनाईं। तब दोनों ओर से सड़क निर्माण शुरू हुआ। इंजीनियर, मजदूर बढ़ाए गए, जिससे काम तेजी से हो रहा है।

कैलाश मानसरोवर यात्रा के इस मार्ग से 1981 में यात्रा शुरू हुई थी। यात्रियों को खतरनाक पहाड़ियों से गुजरना पड़ता रहा है। नए रास्ते से यात्रा में समय बचेगा। आईटीबीपी के 7वीं बटालियन मिर्थी– उत्तराखंड के कमांडेंड अनुप्रीत बोरकर कहते हैं– नए रास्ते से हमें भी फायदा है, क्योंकि यात्रा के दौरान कई जवानों की तैनाती करनी पड़ती है। सड़क बनने के बाद इन्हें अन्य जगह तैनात किया जा सकेगा।
यात्रा उत्तराखंड के धारचूला से शुरू होती है। यहां से मंगती नाला तक 35 किमी गाड़ियों से जाते हैं। उसके बाद पहले दिन जिप्ती–गालातक 8 किमी पैदल चलते हैं। यहां रात में रुककर दूसरे दिन 27 किमी चलकर बूधी, तीसरे दिन 17 किमी चलकर गूंजी पहुंचते हैं। यहां दोरातें रुकते हैं। यहीं मेडिकल जांच और मौसम से तालमेल होता है। 5वें दिन 18 किमी चलकर नबीडांग पहुंचते हैं। छठे दिन 9 किमीचलकर लिपूलेख होते हुए चीन में प्रवेश करते हैं।
अब धारचूला से पहले दिन 6 घंटे में वाहनों से बूधी जाएंगे। अगले दिन 3 घंटे में गाड़ियों से गूजी पहुंचेंगे। दूसरी रात यहीं बितानी होगी।मेडिकल जांच के बाद तीसरे दिन लिपूलेख होकर चीन पहुंचेंगे। चीन में 80 किमी सड़क यात्रा के बाद कुगू पहुंचेंगे। वहां से मानसरोवरकी ओर बढ़ेंगे। दिल्ली से यात्रा (2700 किमी) शुरू कर वापस आने में 16 दिन लगेंगे। पहले 22 दिन लगते थे।

नेपाल के रास्ते भी मानसरोवर यात्रा पर जा सकते हैं। भारत और चीन सरकार के बीच इस मार्ग पर कोई अनुबंध नहीं है। उत्तराखंड और सिक्किम वाले मार्ग से सिर्फ भारतीय यात्री ही मानसरोवर जाते हैं। यह यात्रा काठमांडू से शुरू होती है। निजी टूर ऑपरेटर अपनी सुविधासे रूट तय करते हैं। काठमांडू से मानसरोवर तक का सड़क मार्ग करीब 900 किमी लंबा है।
यात्री दिल्ली से सिक्किम की राजधानी गंगटोक पहुंचते हैं। यहां से 55 किमी दूर नाथूला दर्रा जाते हैं। नाथूला से चीन में प्रवेश के बादनग्मा, लाजी और जोंग्बा तक की यात्रा छोटी बसों से होती है। जोंग्बा से मानसरोवर के तट पर स्थित कुगू तक पहुंचते हैं। यानी दिल्ली से2700 किमी की यात्रा कर यात्री मानसरोवर परिक्रमा मार्ग पहुंचते हैं। अाने–जाने में 20 दिन का समय लगता है।

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