चीन का नुकसान, भारत का फायदा होते जा रहा है। प्रधानमंत्री मोदी और चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग। पावर ट्रांसफर की प्रतीकात्मक तस्वीर

चीन छोड़ भारत आ रही कंपनियों के लिये मोदी सरकार 4.61 लाख हेक्टेयर जमीन देने की तैयारी में

New Delhi : कोरोना आपदा और इसकी भूमिका में चीन की बदनामी ने उसकी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। और इसका सीधा फायदा भारत को मिलता दिख रहा है। स्थिति ऐसी बन गई है कि 1000 से अधिक विदेशी कंपनियां चीन छोड़कर भारत आने को तैयार है। अमेरिका ने भी अपनी कंपनियों को इशारा कर दिया है कि वे चीन को छोड़ें और भारत आ जायें। ब्लूमबर्ग की एक रपट के मुताबिक भारत ने भी इन कंपनियों को आसानी से जमीन मुहैया कराकर मौके को लपकने की तैयारी कर ली है।

इसके लिए भारत ने एक लैंडपूल तैयार किया है, जो आकार में यूरोपीय देश लक्जमबर्ग से दोगुना और देश की राजधानी दिल्ली से तीन गुना बड़ा होगा। पहचान गोपनीय रखने की शर्त पर इस मामले से जुड़े अधिकारियों ने ब्लूमबर्ग को बताया कि देशभर में 4 लाख 61 हजार 589 हेक्टेयर जमीन की पहचान की गई है। इनमें से 1 लाख 15 हजार 131 हेक्टेयर जमीन गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में मौजूद औद्योगिक भूमि है। भारत में निवेश की इच्छुक कंपनियों के लिए जमीन एक बड़ी बाधा रही है। पोस्को से सउदी आरामको तक भूमि अधिग्रहण में देरी से झुंझला गये।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार राज्य सरकारों के साथ मिलकर इसे बदलने की कोशिश में जुटी है, क्योंकि कोरोना वायरस संक्रमण के फैलाव के बाद सप्लाई में बाधा की वजह से मैन्युफैक्चरिंग बेस के रूप में निवेशकों का भरोसा चीन से हटा है। अभी भारत में फैक्ट्री लगाने को इच्छुक कंपनियों को खुद ही भूमि अधिग्रहण करना पड़ रहा है। कई बार इस प्रक्रिया में काफी समय लग जाता है क्योंकि कई छोटे प्लॉट ऑनर्स से भी मोलभाव करना पड़ता है। बार्कलेज बैंक पीएलसी के वरिष्ठ अर्थशास्त्री राहुल बाजोरिया ने कहा – पारदर्शी और तीव्र भूमि अधिग्रहण एफडीआई बढ़ाने वाले कारकों में से एक है। यह कारोबार सुगमता का एक आयाम है और इसलिए आसानी से भूमि उपलब्ध कराने के लिए अधिक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है।

जमीन, ऊर्जा, पानी और रोड कनेक्टिविटी के जरिये सरकार नये निवेशकों को आकर्षित करके अर्थव्यवस्था में जान फूंक सकती है, जो कोरोना वायरस से पहले ही काफी सुस्त हो चुकी थी और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की वजह से अब दुर्लभ संकुचन शुरू हो गया है। सरकार इलेक्ट्रिकल, फार्माशुटिकल्स, मेडिकल डिवाइस, इलेक्ट्रॉनिक्स, हैवी इंजीनियरिंग, सोलर इक्विपमेंट, फूड प्रोसेसिंग, केमिकल्स और टेक्सटाइल्स से जुड़े मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को प्रमुखता देगी। पिछले दिनों हुई एक बैठक में यूएस डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट्स में साउथ एशिया के असिस्टेंट सेक्रेटरी ऑफ स्टेट थॉमस वाजदा ने कहा कि जो इंडस्ट्रियल ऐक्टिविटी अभी चीन में हो रही है बहुत जल्द वह भारत में होने वाली है। अमेरिकी कंपनियों के प्रतिनिधियों से कहा गया है कि वे अपने प्रस्ताव को लेकर भारत सरकार से सामने पहुंचे और इन्सेंटिव की मांग करें जिससे आने वाले दिनों में यहां अमेरिकन कंपनियों का तेजी से विस्तार हो सके।
इधर Business Today की एक रिपोर्ट की मानें तो करीब 1000 विदेशी कंपनियां ऐसी हैं जिनकी नजरें भारत में उत्‍पादन शुरू करने पर टिकी हैं। इन कंपनियों के बीच ‘एग्जिट चाइना’ मंत्र यानी चीन से निकलने की सोच मजबूत होती जा रही है। निश्चित तौर पर भारत की अर्थव्‍यवस्‍था के लिए यह अच्‍छी खबर है। 1000 विदेशी कंपनियां जहां भारत में उत्‍पादन शुरू करने पर नजरें गड़ा रही हैं तो 300 कंपनियां ऐसी हैं जिन्‍होंने सक्रियता से चीन से निकलने की योजना पर काम शुरू कर दिया है। ये कंपनियां भारत को एक वैकल्पिक मैन्‍युफैक्‍चरिंग हब के तौर पर देखने लगी हैं। कंपनियों ने सरकार के अलग-अलग स्‍तर पर अपनी तरफ से प्रस्‍ताव भेजने शुरू भी कर दिए हैं। कंपनियों की तरफ से केंद्र सरकार के विभागों के अलावा विदेशों में भारतीय उच्‍चायोगों और राज्‍य के औद्योगिक विभागों के पास प्रपोजल भेजे गए हैं।

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