New Delhi : डाकोर में रणछोड़ राय मंदिर में पिछले 45 वर्षों से भीख मांग कर अपना गुजर बसर करने वाले भिखारी ने जब डाकोर के2500 ब्राह्मणों को भोजन करवाने की घोषणा की तो पूरे इलाक़े में शोर मच गया। लोगों को लगा कि यह सूरदास भिखारी भगवानदासशंकरलाल जोशी पता नहीं ब्राह्मण भोजन करा पायेगा भी या नहीं लेकिन उसने उम्मीद से बेहतर भोज करवाया।
जीवन के आखिरी पड़ाव पर पहुंचे भगवानदास ने बताया कि वे 45 वर्षों से डाकोर में रहते हैं। उन्होंने कहा – रणछोड़ राय के मंदिर में भीखमांगकर मैंने जो कुछ भी एकत्र किया है उसका तर्पण तो उन्हें ही करना पड़ेगा। डाकोर के ब्राह्मणों के यहां विविध प्रसंगों पर मैंने भोजनकिया है। मैंनें पूरी जिंदगी जिन लोगों का खाया है, कभी हमें भी उन्हें भोजन करवाना चाहिए। मैंने भिक्षा मांगकर जो कुछ भी एकत्र कियाहै, वह समाज का ही है। मुझे अगले जन्म के लिए परोपकार करना चाहिए। मैंने यह तर्पण कर अगले जन्म के लिये ब्राह्मणों से आशीर्वादलिया।
उन्होंने बताया सुबह चार बजे मंगला आरती के साथ ही डाकोर मंदिर के कोट के दरवाजे पर पहुंच जाता हूँ। तरह–तरह के भजन गाते हूं।इस मंदिर के दरवाजे पर भीख मांगते हूं। वे यहां के गोपालपुरा क्षेत्र के एक मकान में किराए पर रहते हैं। उन्होंने डाकोर के ब्राह्मणों कोसार्वजनिक रूप से आमंत्रित कर भोजन करवाया।
उन्होंने कहा – तर्पण का विचार मन में आते ही मैंने डाकोर के टावर चौक में ब्राह्मणों को आमंत्रित करने वाला सार्वजनिक सूचना बोर्डलगवा दिया था। मैने यहां पथिक आश्रम की अंबावाडी में डाकोर के बाह्मणों को दाल, भात, सब्जी और लड्डू का भोजन करवाया। इसब्रह्म चौर्यासी में त्रिवेदी, मेवाड़ा, तपोधन, श्रीगोण, तथा खेड़ावाड़ जैसे चौर्यासी जाति के ब्राह्मण भोजन के लिए आते हैं, इसलिए इसेब्रह्मचौर्यासी कहते हैं। मुझे संतोष है कि यहां तकरीबन 2500 ब्राह्मणों ने भोजन किया।
भगवानदास की विशेषता है कि वे भीख मांगने के अलावा अच्छे भजनिक भी हैं। वे देशी भजनों के गायक हैं, वे जन्म से ही नेत्रहीन हैं फिरभी उन्हें एक हजार भजन कंठस्थ हैं। कोई भी व्यक्ति डाकोर मंदिर में धजा चढ़ाने आता है, तो भक्त समुदाय के आगे भगवानदास भजनगाते हुए चलते हैं। डाकोर में रंगअवधूत भजन मंडल के वे स्टार गायक हैं। जब वे सब्जियों के नाम के साथ प्रभु के नाम को शामिलकरनेवाला भजन ह्यमेरे करेला में कृष्ण, मेरे गिलोड़ा में गोविंद, गाते हैं तो सब लोग ईश्वर में लीन हो जाते हैं।
यूं तो भगवानदास बनासकांठा के भाखरी गांव के मूल वासी हैं। वे चार भाई हैं। बचपन से ही नेत्रहीन होने के कारण संसार से मोहभंग होगया था। वे संयोगवश डाकोर आ गये और डाकोर मंदिर के द्वार पर भजन गाने लगे। उन्हें यहां 45 वर्ष हो गये हैं। वे किसी भी व्यक्ति कोउसकी आवाज से ही पहचान लेते हैं। वे जिस व्यक्ति को एक बार बात करते सुन लेते हैं, उसे दूसरी बार सुनते ही नाम से बुलाते हैं। उनकेपास कोई सम्पति नहीं है, परन्तु जो कुछ भी है, उन्हें उसी में संतोष हैं। उन्होंने लाखों रूपये खर्चकर डाकोर के ब्राह्मणों को भोजनकरवाया।