New Delhi : कुपोषण से जंग के लिए गुजरात में मुर्गा–मुर्गी पालन की मदद ली जा रही है। अतिकुपोषित बच्चों को सेहतमंद बनाने केलिए उनके परिवार को 1 मुर्गा और 10 मुर्गियां पालने के लिए दी जा रही हैं, ताकि वे इनके अंडे खाकर सेहतमंद हों। योजना फ़िलहालपायलट प्रोजेक्ट के तहत शुरू की गई है।
अभी 5 तहसीलें पायलट प्रोजेक्ट के दायरे में हैं। हर तहसील में 33 अतिकुपोषित बच्चों को इस योजना के लिए चुना गया है। अच्छेपरिणाम रहने पर इसका विस्तार कर पूरे जिले को शामिल किया जाएगा।
दाहोद गुजरात का आदिवासी बहुल जिला है। यहां बड़ी संख्या में लोगों ने आस्था–धार्मिक विश्वास और जीवनशैली के चलते मांसाहार–शराब से दूरी बना ली है। सरकार की नजर में भले ही अंडा शाकाहार की श्रेणी में है, लेकिन आम लोगों के लिए यह शाकाहार नहीं है।यह नहीं देखा गया है कि संबंधित बच्चे का परिवार शाकाहारी है अथवा मांसाहारी।
एक महीने में 15 से 20 अंडे देती है इस प्रजाति की मुर्गी
कड़कनाथ जाति के मुर्गी–मुर्गे दिए जाने हैं। शीतऋतु में ये मुर्गियां अपने अंडे खुद खा जाती हैं। इसलिए खुद मुर्गियों से ही अंडा बचाने कीचुनौती भी है। कड़कनाथ मुर्गी का जीवन काल 6 से 8 महीना होता है। ये मुर्गियां 02-03 दिन के अंतराल पर अंडे देती हैं। इन मुर्गियों से15 से 20 अंडे मिलने में तकरीबन एक महीना गुजर जाता है।
रूपाणी सरकार ने दाहोद जिले में 6 महीने से 3 साल के कुपोषित और अत्यंत कुपोषित बच्चों की पहचान की है। इसके अंतर्गत कुल6,014 अत्यंत कुपोषित, जबकि 12,512 कुपोषित बच्चों की पहचान हो सकी। ऐसे में राज्य सरकार ने दाहोद जिले के 165 अत्यंतकुपोषित बच्चों को पहले चरण में मुर्गी बांटने का फैसला किया है।
सरकारी योजना के तहत सभी परिवारों को 10 कड़कनाथ मुर्गियां, एक मुर्गा, एक पिंजरा और उन्हें खिलाने के लिए चारा दिया जाएगा।सरकार ने इस योजना में अंडे को शाकाहारी आहार मानते हुए सभी परिवारों के बीच मुर्गी वितरण का फैसला लिया है.