New Delhi : हुवावे के बल पर वर्ष 2030 तक डिजीटल तकनीक की दुनिया पर राज करने का सपना देख रहे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को बड़ा झटका लगा है। दुनिया में चीन की ‘ताकत’ का प्रतीक कहे जानी वाली हुवावे कंपनी पर अमेरिका ने ताजा प्रतिबंध लगा दिया है। इससे हुवावे की अमेरिकी तकनीकों तक पहुंच बहुत सीमित हो गई है। इन प्रतिबंधों के बाद के अब हुवावे के 5G तकनीक मुहैया कराने के वादे पर सवाल उठने लगे हैं। संकट की इस घड़ी में भारत और पूरी दुनिया में बढ़ रहे चीन विरोधी माहौल ने हुवावे की मुश्किलों को और बढ़ा दिया है।
Did China miscalculate the rise of India? https://t.co/V5AKDQfjOz
— SCMP News (@SCMPNews) July 5, 2020
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक हुवावे इस समय बहुत ज्यादा दबाव में है। उसकी अमेरिकी तकनीकों तक पहुंच इससे पहले इतनी कम कभी नहीं थी। अब दुनियाभर में मोबाइल कंपनियां यह सवाल कर रही हैं कि क्या हुवावे समय पर अपने 5G तकनीक मुहैया कराने के वादे को पूरा कर पाएगी या नहीं। यही नहीं लद्दाख में सीमा पर चल रहे भारी तनाव से दुनिया के विशालतम बाजारों में से एक भारत में चीनी कंपनी के लिए संकट पैदा हो गया है। यही नहीं पूरे विश्व में चीन विरोधी भावनाएं तेज होती जा रही हैं।
अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने पिछले महीने घोषणा की थी- हुवावे के खिलाफ माहौल बहुत खराब हो गया है क्योंकि दुनियाभर में लोग चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के सर्विलांस स्टेट के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं। पोम्पियो ने चेक रिपब्लिक, पोलैंड और इस्टोनिया जैसे देशों की तारीफ की जो केवल ‘विश्वसनीय वेंडर्स’ को ही अनुमति दे रहे हैं। पोम्पियो ने पिछले दिनों भारत की टेलिकॉम कंपनी जियो की भी तारीफ की थी जिसने हुवावे की तकनीक को नहीं लिया है।
वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक न्यू अमेरिकन सिक्यॉरिटी की शोधकर्ता कारिसा नेइश्चे ने कहा – यूरोप में बदलाव की शुरुआत हो गई है। उन्होंने कहा – यूरोप के देश और मोबाइल सेवा प्रदाता कंपनियां इस बात से बहुत चिंतित हैं कि अमेरिकी प्रतिबंधों से हुवावे के बिजनस को बहुत बड़ा झटका लगा है और वह सही समय पर 5G तकनीक मुहैया नहीं करा पाएगी। दरअसल, अमेरिकी प्रतिबंधों के दायरे में ताइवान की कंपनी टीएसएमसी भी आ गई है जो हुवावे को चिप और अन्य जरूरी उपकरण मुहैया कराती है।
विशेषज्ञों के मुताबिक टीएसएमसी के चिप की मदद के बिना हुवावे 5G बेस स्टेशन और अन्य उपकरण नहीं बना पाएगी। इससे हुवावे का 5G बिजनस गंभीर खतरे में पड़ गया है। उनका कहना है कि अगर अमेरिका और चीन के बीच तनाव कम नहीं हुआ तो हुवावे 5G उपकरण मुहैया नहीं करा पाएगी। उधर, हुवावे ने दावा किया है – उसे उनके ग्राहकों से पूरा सहयोग मिल रहा है। हालांकि कंपनी ने माना कि अमेरिकी प्रतिबंधों से उसे बहुत ज्यादा संकट का सामना करना पड़ रहा है। ब्रिटेन में इसकी शुरुआत हो गई है और पीएम बोरिस जॉनसन हुवावे से किनारा करने जा रहे हैं।
अमेरिका हुवावे को संदेह की दृष्टि से देखता है और उसका मानना है कि कंपनी के चीन की कम्युनिस्ट पार्टी से गहरे संबंध हैं। उधर, हुवावे का दावा है कि वह एक निजी फर्म है और उसके हजारों कर्मचारी उसे चलाते हैं। आलोचकों का कहना है कि चीन हुवावे को अन्य देशों में जासूसी करने के लिए भी दबाव डाल सकता है। हुवावे का कहना है कि ऐसा कभी नहीं हुआ है और कभी ऐसे आदेश आते हैं तो वह उसे ठुकरा देगी।
John Bolton, US ex NSA, speaks to me on IAF's Balakot strike, Trump & Modi, India-China stand-off, Pak-Taliban nexus and his controversial new book. @AmbJohnBolton Watch India Today : https://t.co/ECtTmpkGId
— Raj Chengappa (@rajchengappa) July 5, 2020
सीएनएन के मुताबिक चीन का अमेरिका के साथ चल ही रहा है और इस बीच अब भारत और यूरोपीय देशों से ताजा तनाव ने उसकी चिंता को और ज्यादा बढ़ा दिया है। भारतीय विदेश नीति के विशेषज्ञ चैतन्य गिरी कहते हैं कि भारत अब विचार कर रहा है कि क्या उसे 5G नेटवर्क में हुवावे के उपकरणों के साथ जाना चाहिए या नहीं। इससे पहले भारत ने हुवावे को 5G नेटवर्क के लिए ट्रायल में भाग लेने की अनुमति दी थी।
गिरी कहते हैं कि चीन पर कोरोना वायरस को फैलाने का आरोप लगा है जिससे भारत में उसके खिलाफ लोगों को अभियान तेज हो गया है। भारत सरकार ने चीन के टिक टॉक समेत 59 ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया है। अब भारत का अगला कदम हुवावे हो सकता है। जनता में भी यह माहौल बन रहा है कि चीनी सामानों का बहिष्कार करना है। दुनिया के बड़े लोकतंत्र एक सुर में बोल रहे हैं और वे जानते हैं कि क्या दांव पर लगा है।