अनोखा खजाना : 115 साल बाद खोला महाराणा स्कूल का कमरा, सोने के पानी से लिखी किताबें मिलीं

New Delhi : इतिहास के पन्नों में दर्ज धौलपुर के महाराणा स्कूल के कुछ कमरों को पिछले दिनों 115 साल बाद खोला गया। इतने सालों तक इन कमरों को इसलिए नहीं खोला गया था क्योंकि स्थानीय प्रशासन यह समझता था कि इनमें कबाड़ पड़ा होगा। लेकिन दो महीने पहले मार्च में जब 2-3 कमरे खोले गये तो, वहां मौजूद ‘खजाना’ देख लोगों को होश उड़ गये। असल में इन कमरों से इतिहास की ऐसी धरोहरें रखी गई थीं, जो आज बेशकीमती हैं।

इन कमरों से प्रशासन को ऐसी किताबें मिली हैं जो कई सदी पुरानी हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में ये किताबें बेशकीमती हैं। इन किताबों में कई ऐसी किताबें हैं, जिनमें स्याही की जगह सोने के पानी का इस्तेमाल किया गया है। इतिहासकार इस अनोखे खजाने को लेकर बहुत उत्साहित हैं। उनका कहना है कि इन किताबों को सहेज कर रखना जरूरी है, ताकि भविष्य में इन किताबों से छात्रों को बहुत अहम जानकारी मिले।
स्कूल के दो से तीन कमरों में एक लाख किताबें तालों में बंद पड़ी मिली। अधिकांश किताबें 1905 से पहले की हैं। महाराज उदयभान दुलर्भ पुस्तकों के शौकीन थे। ब्रिटिशकाल में महाराजा उदयभान सिंह लंदन और यूरोप यात्रा में जाते थे। तब ने इन किताबों को लेकर आते थे। इन किताबों में कई किताबें ऐसी हैं जिनमें स्याही की जगह सोने के पानी का इस्तेमाल किया गया है। 1905 में इन किताबों के दाम 25 से 65 रुपये थी। जबकि उस दौरान सोना 27 रुपये तोला था। ऐसे में मौजूदा समय में इन 1-1 किताब की कीमत लाखों में आंकी जा रही है। सभी पुस्तकें भारत, लंदन और यूरोप में छपी हुई हैं।
इनमें से एक किताब 3 फीट लंबी है। इसमें पूरी दुनिया और देशों की रियासतों के नक्शे छपे हैं। खास बात यह है कि किताबों पर गोल्डन प्रिंटिग है। इसके अलावा भारत का राष्ट्रीय एटलस 1957 भारत सरकार द्वारा मुद्रित, वेस्टर्न-तिब्बत एंड ब्रिटिश बॉडर्र लेंड, सेकड कंट्री ऑफ हिंदू एंड बुद्धिश 1906, अरबी, फारसी, उर्दू और हिंदी में लिखित पांडुलिपियां, ऑक्सफोर्ड एटलस, एनसाइक्लोपीडिया, ब्रिटेनिका, 1925 में लंदन में छपी महात्मा गांधी की सचित्र जीवनी द महात्मा भी इन किताबों में निकली है।
इतिहासकार गोविंद शर्मा बताते हैं – महाराजा उदयभान सिंह को किताबें पढ़ने का शौक था। ब्रिटिशकाल में वे जब भी लंदन और यूरोप की यात्रा पर जाते थे, तब वहां से किताबें जरूर लाते थे। उन्होंने खुद भी अंग्रेजी में सनातन धर्म पर एक पुस्तक लिखी थी। जिसका विमोचन मदन मोहन मालवीय ने किया था। धौलपुर राज परिवार की शिक्षा में इतनी रुचि थी कि उन्होंने बीएचयू के निर्माण में भी मदन मोहन मालवीय को बड़ी धनराशि प्रदान की थी।

महाराणा स्कूल के प्रधानाचार्य रमाकांत शर्मा ने कहा – हैरानी की बात यह है कि पिछले 115 सालों में कई प्रधानाचार्य और तमाम स्टाफ बदल गया। लेकिन, किसी ने भी बंद पड़े इन तीन कमरों को खुलवाकर देखना उचित नहीं समझा। मैंने भी इन कमरों को कई बार देखा। जब भी इनके बारे में स्टाफ से पूछा गया तो हर बार एक ही जवाब मिला कि इनमें पुराना कबाड़ भरा पड़ा है। मैंने भी कबाड़ को साफ कराने की नीयत से इन कमरों को खुलवाया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

fifty nine − = fifty one