New Delhi : Corona Virus के संक्रमण से बचने के लिये लोग क्या-क्या नहीं कर रहे हैं। देश दुनिया के ज्यादातर लोग घरों में लॉक हैं। बेवजह बाहर नहीं निकल रहे हैं। लेकिन ममता बनर्जी के राज की बात ही कुछ अलग है। वहां के लोगों ने क्वैरंटाइन के लिये पेड़ों को अपना बसेरा चुना है। वे पेड़ों पर सोने, खाने-पीने की व्यवस्था कर दिनरात उसी पर बने रहते हैं।
हालांकि क्वैरंटाइन का यह तरीका बेहद गलत है। डॉक्टरों के मुताबिक यह बेहद खतरनाक है। आप बाहरी दुनिया से दूर नहीं हो रहे बल्कि बाहरी दुनिया से संपर्क का आसान रास्ता दे रहे हैं। ये बेहद शर्मनाक है। बताया जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में आइसोलेशन सेंटर नहीं होने और न ही अलग घर में कमरा होने के चलते कुछ लोग पेड़ पर खुद को क्वारंटाइन कर रहे हैं। ये तस्वीर है पश्चिम बंगाल के पुरूलिया के बलरामपुर इलाके की।
यहां पर वनगिडी गांव के लोग जिन्होंने हाल में चेन्नई से वापसी की है, वे पेड़ पर रहकर 14 दिनों के लिए खुद को क्वैरंटाइन कर रहे हैं। वैसे पेड़ पर यह अस्थाई कैंप पुरूलिया गांव के लोग के लोगों तरफ से हाथी के मूवमेंट का पता लगाने और हाथियों के हमले से बचने के लिए किया जाता है।
तो ये बात तो तय है कि बंगाल में तैयारी वैसी नही हो रही है जैसी होनी चाहिये। कोरोना वायरस के देश में लगातार आ रहे मामलों को रोकने के लिए केन्द्र और राज्य सरकार की तरफ से पूरी कोशिश की जा रही है, तो वहीं आम लोगों से कहा जा है कि वे सतर्कता के साथ रहें और बाहर निकलने से परहेज कर लॉकडाउन का पालन करें। लेकिन पिश्चम बंगाल सरकार का रवैया बेहद निराशाजनक है।
इस बीच कई राज्यों में प्रवासी मजदूरों ने सरकार के लिये मुश्किल खड़ी कर दी है। ज्यादातर मजदूर सड़क के रास्ते पैदल ही अपने घरों के लिये चल पड़े हैं। पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने गांव की ओर जा रहे हैं। ऐसे में सबसे बड़ा डर है कि कहीं इनमें से कोई कोरोना पॉजिटिव निकला तो ये अपने गांव जाकर क्वारंटाइन किए बिना दूसरों की जान के लिए खतरा न बन जाएं।
उधर, दिल्ली के उत्तम नगर बस टर्मिनल पर पलायन करने वाले श्रमिकों की लंबी लाइन लगी हुई है, जो आनंद विहार बस टर्मिनल जाने वाली बसों का इंतजार कर रहे हैं। आनंद विहार बस टर्मिटनल से वे अपने गृह जिले की बस लेंगे।