सोच बदलो, देश बदलेगा- ऐसे दलित जिन्होंने IAS टॉपर बनकर समाज का नजरिया बदल दिया

New Delhi : भारतीय समाज में जाति एक मैन फेक्टर रही है। जाति के आधार पर किसी समय योग्यता को निर्धारित किया जाता था। इसी जाति के आधार पर कभी शिक्षा की पात्रता तय होती थी। देश के संविधान निर्माता डॉ. बी.आर अम्बेडकर को उनकी जाति के आधार पर ही उन्हें पढ़ने नहीं दिया गया। देश में दलित वर्ग ने सदियों से जाति व्यवस्था और उससे जुड़े भेदभाव का दंश झेला है उसका असर आज भी समाज में दिखाई देता है कि ज्यादातर दलित और ओबीसी वर्ग उच्च शिक्षा और उच्च प्रशासनिक पदों से कटा हुआ है। लेकिन आज हम आपकों ऐसे दलित और पिछड़े वर्ग के उन चेहरों के बारे में बताएंगे जिन्होंने देश की सबसे कठिन समझी जाने वाली यूपीएससी परीक्षा में टॉप कर न केवल आईएएस बने बल्कि समाज की सोच भी बदली। आज उनकी ये कामयाबी लाखों दलित वर्ग के युवाओं के लिए प्रेरणा है।

कनिष्क कटारिया- 2018 की यूपीएससी परीक्षा जिसका परिणाम 2019 में आया, परीक्षा में पहले ही प्रयास में टॉप कर आल इंडिया पहली रेंक लाने वाले कनिष्क कटारिया SC केटेगरी से हैं। उन्होंने जब परीक्षा में टॉप किया तो पूरे देश का ध्यान उनकी तरफ गया। उन्हें परीक्षा में 1121 अंक मिले थे जब कि दूसरे स्थान पर रहे जनरल केटेगरी के अक्षत जैन को 1080 अंक मिले थे। इससे समाज में बनी वो धारणा टूटी जिसमें कहा जाता है कि दलित प्रतिभा की कमी से पीछे छूट जाते हैं। कनिष्क अमेरिका में लाखों रुपये की नौकरी छोड़ भारत आए और आईएएस बने। कनिष्क का युवाओं के प्रति यही संदेश रहा कि मेहनत और दृढ़ निश्चय यदि कर लिया जाए तो अयोग्यता योग्यता में बदल जाती है।
टीना डाबी- टीना डाबी को कौन नहीं जानता। 2015 की यूपीएससी परीक्षा में टीना डाबी टॉप आई थीं। टीना डाबी भी दलित समुदाय से ही हैं। वो एक समृद्ध परिवार से ताल्लुक रखती हैं। उनके भी अंक दूसरे और तीसरे टॉपर्स से कहीं ज्यादा थे। उन्हें 1063 अंक मिले थे जबकि तीसरे स्थान पर रहे केंडीडेट को 1014 अंक मिले थे। उन्होंने कहा कि था कि उनकी पढ़ाई के बीच कभी जाति नहीं आई। वो शुरू से ही एक ब्राईट स्टूडेंट रहीं। उनके पिता और मां दोनों ही सरकारी सेवा में कार्यरत हैं।
अच्युतानंद दास-1950 में जब आजाद भारत में पहली बार यूपीएससी की परीक्षा कराई गई तो अच्युतानंद दास देश के पहले आईएएस ऑफिसर बने। उन्होंने परीक्षा में 46वां रेंक हासिल किया था। उस समय जाति व्यवस्था चरम पर थी। अचूतानंद का जीवन भी जातीय दंश का शिकार हुआ था। उन्हें अछूत कहकर कई बार समाज ने दुतकारा था लेकिन वही जब देश के गरिमामयी सरकारी पद पर बैठे तो ये इतिहास में पहली बार था। उनका उदाहरण देकर इस समाज के लोग गर्व महसूस करते थे।

श्रीधन्या सुरेश- ये केरल की पहली महिला दलित आईएएस अधिकारी हैं। वो 2019 की बैच की आईएएस अधिकारी हैं। श्रीधन्या केरल के अनुसूचित जाति की पहली महिला हैं जिन्होनें यूपीएससी सिविल सर्विसेज एक्जाम को पास किया है। उनका मकसद अनुसूचित जाति के बच्चों की शिक्षा में सुधार करना है। उनके पिता मनरेगा में मजदूरी करते थे। वे बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं। आज जब वो आईएएस अधिकारी हैं तो उनके परिवार और समुदाय को ही नहीं उनके पूरे राज्य को उन पर गर्व है।

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