New Delhi : इस बार एक जून को गंगा दशहरा मनाया जा रहा है। सनातन धर्म में गंगा दशहरा का विशेष महत्व है। गंगा दशहरा का पर्व हर साल जेष्ठ शुक्ल दशमी को मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं में गंगा दशहरा के दिन गंगा स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। मान्यता है कि गंगा दशहरा को मां गंगा का श्रद्धापूर्वक स्मरण मात्र से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
मान्यताओं अनुसार गंगा दशहरा के दिन प्रातः गंगा स्नान करना चाहिए। संभव न हो तो पास की किसी नदी या तालाब में ही स्नान करना चाहिए। इसके बाद भगवान की पूजा करने के साथ ही गरीबों, ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देना चाहिए। ऐसे करने से सिर्फ अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है बल्कि जीवन में शांति भी आती है। भक्तों पर मां गंगा की कृपा सदैव बनी रहती है।
पौराणिक कथाओं में वर्णन है कि महाराजा भगीरथ के अखंड तप से प्रसन्न होकर जिस दिन मां गंगा प्रथ्वी पर अवतरित हुईं वह बहुत ही दिव्य और पवित्र दिन था। यह दिन जेष्ठ माह शुक्ल पक्ष की एकादशी था। प्रथ्वी पर मां गंगा के अवतरण दिवस को गंगा दहशरा मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान से मनुष्य को कई यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होते हैं। इसलिए आस्थावान मनुष्य को पवित्र मन के साथ ही गंगा स्नान करना चाहिए। इस दौरान मां गंगा और भगवान शिव का स्मरण भी बहुत से लोग करते हैं।
गंगा अवतरण के 10 योग हैं- ज्येष्ठ, शुक्ल पक्ष, दशमी, बुधवार, हस्त नक्षत्र, व्यतिपात योग, गर करण, आनंद योग, कन्या राशि का चंद्रमा, वृषभ राशि का सूर्य है। बुधवार और हस्त नक्षत्र होने से आनंद योग बनता है। इसमें दशमी और व्यतिपात मुख्य माने गए हैं।
ग्रंथों में लिखा है कि दशहरा और चारों युगादि तिथियों में उत्कर्ष नहीं। यानी गौण और मुख्य का विचार नहीं होता है। इसलिए इस दिन अपने तीर्थ में स्नान कर गंगा का पूजन करना चाहिए। ज्येष्ठ सभी बारह महीनों में सबसे बड़ा है। इस महीने के शुक्लपक्ष की दशमी तिथि पर सिद्धि और रवियोग बहुत महत्वपूर्ण है। इस योग में किए दान सिद्ध माने गए हैं।
गंगा दशहरा पर बन रहे शुभ योगों में मंगलिक कार्य भी करा सकेंगे। ज्योतिषियों के अनुसार रवियोग भी बन रहा है। इसलिए इस दिन वाहन और अन्य चीजों की खरीदारी, गृह प्रवेश, नव निर्माण की शुरुआत, नए प्रतिष्ठान का आरंभ, यज्ञोपवित संस्कार, चौलकर्म, विवाह, धार्मिक यात्रा की शुरुआत, अनुष्ठान की पूर्णाहुति या आरंभ, यज्ञ, जप, दान करने की शास्त्रीय मान्यता है। इस कारण शुभ कार्यों को करने में किसी तरह की बाधा नहीं है।