रथयात्रा के सारथी- राम मंदिर निर्माण के पुराने सिपाही हैं प्रधानमंत्री, अद‍्भुत अयोध्या स्वागत में तैयार

New Delhi : 5 अगस्त वो तारीख है जब 500 साल बाद राम मंदिर निर्माण की नींव पड़ने जा रही है। भारत के आजाद होने के 70 साल बाद भी अयोध्या में राम मंदिर एक विवाद का विषय बना रहा। कई सरकारें आईं और चली गईं लेकिन 2019 में मोदी सरकार में ही सुप्रीम कोर्ट में शांति पूर्वक इस विवाद का समाधान हो पाया। आज जब राम मंदिर के शिलान्यास की तारीख करीब है तब समूचा देश राम मंदिर निर्माण के उन सैनिकों को याद कर रहा है जिन्होंने देश के बड़े तबके की आस्था के लिए संघर्ष किया।

उन सैनिकों में बड़ा नाम प्रधानमंत्री मोदी का भी है। जिस तरह महाभारत के में युद्ध के समय स्वयं श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी बने मानो उसी तरह नरेन्द्र मोदी आडवाणी के सारथी बन रथयात्रा को दिशा देने का काम कर रहे थे।
साल 1990 का समय था देश में राम मंदिर आंदोलन चरम पर था। पच्चीस सितम्बर को गुजरात के सोमनाथ मंदिर में पूजा अर्चना के बाद आडवाणी ने रथ यात्रा शुरू की थी। जो देशभर में दस हजार किलोमीटर का सफर तय करते हुए उत्तर प्रदेश के अयोध्या पंहुचना थी। सोमनाथ मंदिर से जब रथ यात्रा चलने को हुई तो नरेंद्र मोदी जो राम मंदिर आन्दोलन के एक सक्रिय और जुझारू कार्यकर्ता बन चुके थे, उन्होंने स्वयं सारथी बनना स्वीकार किया था। रथ यात्रा के दौरान वे जगह जगह कार्यकर्ताओं में उत्साह भी भरते थे।

आडवाणी और रथयात्रा का नेतृत्व कर रहे बड़े नेता जब भाषण देते तो बड़ी भीड़ जुटती। महिलाएं अपने हाथों के कंगन उतार कर देती तो पुरुष न केवल आर्थिक सहयोग करते बल्कि रथयात्रा के साथ ही मीलों निकल पड़ते। अप्रैल 1990 में जब केन्द्र में मिली जुली सरकारों का दौर शुरू हुआ, मोदी की मेहनत रंग लायी, जब गुजरात में 1995 के विधान सभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने बलबूते दो तिहाई बहुमत प्राप्त कर सरकार बना ली। इसी दौरान मोदी को अलग पहचान मिली।

इसी प्रकार कन्याकुमारी से लेकर सुदूर उत्तर में स्थित काश्मीर तक की मुरली मनोहर जोशी की दूसरी रथ यात्रा भी नरेन्द्र मोदी की ही देखरेख में आयोजित हुई। इसके बाद अब 29 साल बाद वो समय आ गया है जब राम मंदिर का वो सारथी आगामी 5 अगस्त को राम मंदिर आंदोलन को सफल बनाएगा।

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