New Delhi : जीवन में हौसला हमेशा ऊंचा होना चाहिए। वो हौसला ही होता है तो विपरीत परिस्थितियों में भी आपको टिका कर रखता है। हौसलों की उड़ान से ही आप दुनिया की बड़ी से बड़ी कठिनाई पार कर जाते हैं और एक दिन अपने लक्ष्य को हासिल कर पाते हैं। बिहार के युवा मनोज कुमार राय की कहानी, इसी हौसले की कहानी है। अक्सर हम सबके जीवन में निराशा का वक्त आता है। हमें लगता है कि संसाधन पर्याप्त नहीं हैं। हम यह भी सोचते हैं कि ये गरीबी न होती तो न जाने हम क्या कर गुजरते। लेकिन सिर्फ ऐसा सोच लेने से ही सफलता तो मिलती नहीं। ऐसे में कोई भी निराश हो सकता है। आज हम अपने पाठकों के लिए मनोज राय की इस कहानी को सामने लेकर आए हैं।
इस कहानी से आपको प्रेरणा और विपरीत परिस्थितियों में भी साहस से टिके रहने का हौसला मिलेगा। वैसे तो ये कहानी बिहार के सुपौल से शुरू होती है लेकिन इसकी यात्रा देश की राजधानी से होकर प्रदेश की राजनीति पर आकर समाप्त होती है। असल में बिहार के लाल मनोज कुमार राय सुपौल के रहने वाले हैं। मनोज की घर की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी। मनोज कुमार राय के पिता एक सरकारी अस्पताल में चपरासी हुआ करते थे। मुश्किल से मनोज को इंटर तक पढाकर उन्होंने तौबा कर लिया। इसी वजह से उन्हें 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही नौकरी करने की जरूरत पड़ गई। मन में नौकरी का ख्याल लेकर मनोज दिल्ली चले आए। लेकिन उन्हें तब शायद इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि आने वाला समय काफी चुनौतीपूर्ण साबित होने वाला है।
मनोज बताते हैं कि वह 1996 में सुपौल से दिल्ली आए। उन्होंने दिल्ली में नौकरी पाने की ढेरों कोशिश की, लेकिन कहीं सफलता हासिल नहीं हुई। जाहिर तौर पर ऐसी ठोकर निराश कर सकती है लेकिन मनोज ने हौसला नहीं गंवाया। उन्होंने सब्जी की रेहड़ी और अंडे बेचने का फैसला किया। जीवन की गाड़ी थोड़ी सी पटरी पर आई तो कोई भी थोड़ा सुकून में आ ही जाता है पर मनोज के लिए तो मानों नियति ने कुछ और ही तय करके रखा हुआ था। अगर ऐसा नहीं होता तो शायद मनोज आज भी दिल्ली में अपनी रेहड़ी ही लगा रहे होते।
आप सभी देश की प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के बारे में जानते हैं। इस यूनिवर्सिटी में प्रवेश पाना काफी कठिन समझा जाता है और यहां की पढ़ाई विश्वस्तरीय मानी जाती है। दिल्ली में रहते हुए मनोज के जीवन में जेएनयू की एंट्री हुई। हालांकि मनोज वहां पढ़ने नहीं गए बल्कि उन्हें यूनिवर्सिटी में राशन पहुंचाने का काम मिला। इसी क्रम में जेएनयू में उनकी मुलाकात एक स्टूडेंट से हुई। उदय कुमार नाम का यह स्टूडेंट खुद बिहार का रहने वाला था। मनोज के मुताबिक, उदय ने उन्हें पढ़ाई जारी रखने की सलाह दी। मनोज को उदय की यह सलाह रास आई।
उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के अरविंदो कॉलेज में इवनिंग क्लास को ज्वाइन कर लिया। दिन में वो सब्जियां और अंडे बेचते और शाम को पढ़ाई करते। इस तरह 2000 में मनोज ने अपना ग्रेजुएशन पूरा किया। उदय ने उन्हें केवल पढ़ने की ही नहीं बल्कि यूपीएससी की परीक्षा देने की भी सलाह दी थी। इस सलाह पर अमल करते हुए मनोज ने 2001 में तैयारी शुरू कर दी। बड़ी मशहूर कहावत है कि जहां चाह होती है राह भी वहीं होती है। मनोज के मामले में भी ऐसा ही हुआ।
एक दूसरे दोस्त के माध्यम से मनोज पटना विश्वविद्यालय में भूगोल के प्रोफेसर रास बिहारी प्रसाद सिंह के संपर्क में आए। मनोज को उनके साथ-साथ भूगोल का भी साथ पसंद आया। उन्होंने सिविल सेवा में वैकल्पिक विषय के रूप में भूगोल का चुनाव कर लिया और आगे की तैयारी के लिए पटना लौट आए। 2005 में मनोज ने सिविल सेवा में अपना पहला प्रयास दिया। लेकिन उन्होंने सफलता नहीं मिली। इस बीच वह अपना खर्च बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर निकाल रहे थे। लेकिन इस असफलता ने उन्हें एक बार फिर दिल्ली की राह पर लाकर खड़ा कर दिया।
ऐसा नहीं था कि मनोज केवल एक बार असफल हुए। सिविल सेवा को लेकर लगातार उनके 4 प्रयासों का नतीजा असफलता के रूप में ही देखने को मिला। लेकिन मनोज ने हार नहीं मानी। यही वो समय था जब हो सकता था कि मनोज इसे अपनी नियति स्वीकार कर तैयारी छोड़ चुपचाप बैठ जाते लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। मनोज बताते हैं कि पांचवें प्रयास के लिए उन्होंने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया। उन्होंने अंग्रेजी भाषा को मजबूत करने के लिए हिंदू अखबार पढ़ना शुरू किया। मेन्स के लिए खास तैयारी की। इसका नतीजा भी मिला और अंततः पांचवें प्रयास में सिविल सेवा को पास कर मनोज अफसर बन गए।
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— Ram Lal Upadhyay (@updramlal) August 16, 2020
ये सफलता उन्हें 2010 में मिली। मनोज आज सफल अफसर हैं। लेकिन इस सफलता का श्रेय वो अपने दोस्तों को भी देते हैं जिनसे मनोज को समय-समय पर अच्छे सुझाव मिलते रहे। मनोज की तरह की सकारात्मकता ही हमें जीवन में सफलता दिलाती है।