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दिन में बकरियां चराईं, रात में पढ़ाई की, 11 साल की उम्र में शादी हुई…अब मजदूर की बेटी बनी टॉपर

New Delhi: इंसान अगर ठान ले तो कठिन से कठिन परिस्थिति से निकलकर भी सफलता पा सकता है। ये हिम्मत और जज्बे की कहानी है समीपवर्ती गांव रोजड़ी निवासी ममता गुर्जर की, जिन्होंने संयुक्त प्रवेश परीक्षा में पूरे प्रदेश में एमबीसी वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। राजस्थान में कृषि महाविद्यालयों में प्रवेश के लिए आयोजित संयुक्त प्रवेश परीक्षा में अपने वर्ग में पूरे प्रदेश में अव्वल रहकर इस छात्रा ने एक मिसाल कायम की है।

ममता के पिता रामलाल गुर्जर दिहाड़ी मजदूर हैं और 12वीं तक पढ़े हैं जबकि मां निरक्षर है। ममता 11 साल की थी तो 2013 में उसकी शादी हो गई। लेकिन वह आज अपने दम पर अपना भविष्य सवार रही है।

जो लोग ऐसी हिम्मत कर पाते हैं वही अपनी तकदीर बदलने की क्षमता रखते हैं। ममता ने अपने जीवन की कठिनाइयों से लड़कर आगे बढ़ने की हिम्मत दिखाई और कृषि कॉलेज में संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेट) परीक्षा में अपने-अपने वर्ग में शीर्ष पायदान पर जगह बनाई।

ममता पढ़ना चाहती थी लेकिन इतनी कम उम्र में शादी के बाद ये आसान नहीं था लेकिन उन्होंने विपरीत परिस्थितियों के बावजूद पढ़ाई का प्रण कर लिया। माता-पिता ने भी साथ दिया।ममता के ससुराल वालों ने भी कहा कि अगर ममता पढ़ना चाहती है तो उन्हें आपत्ति नहीं है। ममता ने गांव के सरकारी स्कूल में दसवीं तक पढ़ाई की।ममता के लिए शिक्षा इसलिए भी मुश्किल रही क्योंकि उन्हें पढ़ाई के साथ-साथ खेत पर भी काम करना पड़ता है। भैसों का दूध दुहने के बाद रोज डेयरी पहुंचाना पड़ता है। सारा काम निपटाने के बाद वो रात में पढ़ने बैठती हैं और देर रात तक पढ़ती हैं।

ममता के अलावा शालू कुमारी ने भी विपरीत परिस्थितियों में पढ़ाई कर एससी वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त किया है।शालू के पिता हेमंत कुमार की जूते चप्पल की दुकान है।माता-पिता ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं लेकिन शालू ने बचपन से ही कृषि क्षेत्र में उच्च शिक्षा का सपना देखा जो पूरा किया।समीपवर्ती गांव डेहरा निवासी छात्रा सोनम वर्मा ने भी अपनी मेहनत के दम पर अपनी परिस्थितियों को मात दे एससी वर्ग में चौथा स्थान प्राप्त किया है।

सोनम के पिता सेवाराम वर्मा का कैंसर के कारण 2017 में निधन हो गया।सोनम के सामने आगे पढ़ाई का संकट हो गया लेकिन सोनम ने हिम्मत नहीं हारी उसने 12वीं तक की शिक्षा राउमावि।डेहरा से की।पिता की मृत्यु के बाद एक बार तो पढ़ाई छोड़ने के हालात बने लेकिन मां ने साथ दिया और मनरेगा में मजदूरी कर बच्चों को पढ़ाया

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