सोनू श्रमिकों के लिये कर रहे 20 घंटे काम, रोज भेज रहे 1000-1200 को घर, धवन बोले-सलाम आपको

New Delhi : बॉलीवुड एक्टर सोनू सूद ने साबित कर दिया है मौजूदा वक्त में उनसे बड़ा दानवीर कोई नहीं है। वे न सिर्फ सुर्खियों में हैं बल्कि आम लोगों के मन में और दिल में भी जगह बना चुके हैं। जिस तरह से वे मजदूरों और स्टूडेंट्स की मदद कर रहे हैं मुम्बई से उनके घर जाने में वो शानदार है। हर कोई उनकी तारीफ कर रहा है। अब भारतीय क्रिकेट टीम के सलामी बल्लेबाज मशहूर क्रिकेटर शिखर धवन ने उनकी तारीफों के पुल बांधे हैं। इससे पहले केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी, कोरियोग्राफर फराह खान, कामेडियन कपिल शर्मा, बैडमिंटन स्टार पीवी संधू समेत कई सेलेब्रिटी उनको ट्विटर पर बधाई दे चुके हैं।

शिखर धवन ने ट्वीट किया है- सोनू सूद आपके सेवा भाव को सलाम। फंसे हुए मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिये आपकी इस कोशिश की जितनी तारीफ की जाये कम है। इधर दैनिक भास्कर को दिये एक इंटरव्यू में सोनू ने कहा- 15 मई के आसपास की बात है। मैं प्रवासियों को ठाणे में फल और खाने के पैकेट बांट रहा था। कुछ लोग पैदल ही कर्नाटक और बिहार जा रहे थे। यह सुनकर मेरे होश उड़ गये। बच्चे, बूढ़े पैदल कैसे जायेंगे। मैंने उनसे कहा कि आप दो दिन रुक जायें। मैं भिजवाने का प्रबंध करता हूं। नहीं कर सका तो बेशक चले जाना। और इस तरह फिल्म अभिनेता और प्रोड्यूसर सोनू सूद ने माइग्रेंट्स को घर भेजने का सिलसिला शुरू किया।

दो दिन में सोनू ने कर्नाटक, बिहार और महाराष्ट्र पुलिस से अनुमति ली और पहली बार 350 लोगों को उत्तर प्रदेश भिजवाया। सोनू बताते हैं- मैं काम करता रहा और कारवां बढ़ता गया…। पहले इसके लिए 10 घंटे काम करता था। अब 20 घंटे कर रहा हूं। सुबह छह बजे से फोन बजना शुरू हो जाता है। मेरा पूरा स्टाफ, दोस्त नीति गोयल भी साथ दे रहे हैं। कोशिश है कि कोई भी न छूटे। सोनू अपने ट्विटर अकाउंट पर खुद नजर रखते हैं। सोनू बताते हैं- वे हर दिन 1000 से 1200 लोगों को उत्तर प्रदेश, बिहार, तेलंगाना, कर्नाटक भेज रहे हैं।

मदद के नाम पर घर वापसी का ही काम क्यों किया? इस सवाल पर उन्होंने बताया कि जब इन लोगों को बच्चों के साथ पैदल चलते देखा तो लगा कि ये बच्चे कितनी खराब यादें लेकर बड़े होंगे कि सड़कों पर हमारे पापा को पुलिस ने पीटा, हमारे घर के बुजुर्ग रास्ते में मर गए। मैं कम से कम कुछ बच्चों की यादों को अच्छा बनाना चाहता हूं। मैं मोगा से मुंबई आया था, तब मेरे पास रिजर्वेशन भी नहीं था। पैसे नहीं थे। मैंने सोचा कि ये लोग तो मुझसे भी बुरी स्थिति में घर जा रहे हैं।

सोनू पंजाब में मोगा जिले के रहने वाले हैं। पेशे से इंजीनियर रहे हैं। मां सरोज प्रोफेसर थीं। वे सुबह से शाम तक गरीब बच्चों को पढ़ाती रहती थीं। पिता शक्तिसागर का कपड़े का बड़ा शोरूम था, जिसे आज सोनू स्टाफ के जरिये चलाते हैं। वे बताते हैं कि हमारे घर में दूसरों की मदद का इतना जज्बा था कि पेरेंट्स यही कहते थे कि गरीबों की मदद को कामयाबी समझना।

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