सादगी ही पूंजी- लालटेन की रोशनी में पढ़ ऑक्सफॉर्ड पहुंचे देश के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे PM

New Delhi : देश के सबसे ज्यादा पढ़े लिखे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, जो कभी उपाधियों और पद के पीछे नहीं भागे। जबकि उनके जीवन पर नजर डालें तो ऐसा लगता है कि सारी उपाधि और सारे पद उन्हेें खुद पाने को बेताब रहे। वो जेएनयू में प्रोफेसर रहे, कई बैंको के निदेशक और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष रहे, योजना आयोग के अध्यक्ष रहे और ऐसे समय भरतीय अर्थव्यवस्था के उद्धारक बने जब भारतीय अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी थी। फिर बाद में 2004 में 10 सालों तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। लिस्ट यहां खत्म नहीं होती है।

उन्होंने देश में मनरेगा लाकर ग्रामीण मजदूरों को रोजगार दिया, उन्हीं की सरकार में आम लोगों को जानने के हक यानी आरटीआई एक्ट मिला, उन्ही के राज में हर व्यक्ति के लिए भरपेट भोजन सुरक्षित किया गया, जिसके लिए फूल सिक्योरिटी एक्ट 2013 लाया गया। मनमोहन सिंह ने अपने ज्ञान, अपनी शिक्षा के दम पर देश के लिए जो बन पड़ा वो करते रहे। आज सत्ता परिवर्तन के बाद भले ही उनकी विभिन्न मुद्दों पर आलोचना होती हो लेकिन ऐसे भारत पुत्र का देश के प्रति योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता।
मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 को पंजाब के छोटे से गांव गाह में पैदा हुए जो कि अब पाकिस्तान में है। पढ़ाई लिखाई के लिहाज से माहौल बेहतर नहीं था। घर से मीलों दूर वे सरकारी स्कूल मेें पढ़ने जाते थे। घर लौटते-लौटते शाम हो जाया करती। गांव में बिजली थी नहीं तो लालटेन की रौशनी में पढ़ते। पढ़ने का इतना चाव था कि गांव में जब कोई प़ढ़ने को राजी नहीं था तो वो पढ़ते-पढ़ते इंटर तक पहुंच गए और पंजाब से ही ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन कर लिया। जब देश में आगे की पढ़ाई संभव नहीं हुई तो स्कोलशिप से केंब्रिज और ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की। ऑक्सफॉर्ड से ही इन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी की और बन गए डॉ. मनमोहन सिंह। प्रधानमंत्री बनने के बाद 2005 में वो इंडिया-ASEAN मीटिंग का हिस्सा बनने मलेशिया गए, वहां इनका परिचय ‘दुनिया के सबसे ज्यादा शिक्षित प्रधानमंत्री’ के रूप में कराया गया।

मनमोहन सिंह इतना पढ़ चुके थे कि उन्हें विदेश में ही एक अच्छे वेतन और सम्मान वाली नौकरी मिल सकती थी। लेकिन उनकी पढ़ाई जैसे ही पूरी हुई उन्होंने देश का रुख किया और भारत आकर पंजाब विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाने लगे। शुरू से ही वे भारत के प्रति समर्पित रहे। कई पदों पर काम किया। उनकी पढ़ाई का राजनीति के जरिए देश को सीधा लाभ तब मिला जब वो नरसिम्हा राव की सरकार में देश के वित्त मंत्री बनाए गए। साल था 1991 पूरी दुनिया में वैश्वीकरण की बहार आई हुई थी लेकिन भारत नई अर्थव्यवस्था की ओर बढ़े इसके लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव अभी भी कमजार थी। भारतीय रुपया लगातार कमजोर हो रहा था और देश विदेशी मुद्रा संकट का सामना कर रहा था। देश में आयात के लिए विदेशी मुद्रा भी कुछ ही हफ्तों में खत्म होने वाली थी। जब वित्त मत्री की कमान मनमोहन ने संभाली तो मनमोहन सिंह ने न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को उबारा बल्कि उदारीकरण की राह प्रशस्त की और भारतीय बाज़ार को पूरी दुनिया के लिए खोल दिया। यही वजह है कि डॉक्टर मनमोहन सिंह को भारत में आर्थिक उदारीकरण का जनक माना जाता है।
अब उनकी छवि एक पढ़े लिखे राजनेता के तौर पर बन चुकी थी इसी छवि को ध्यान में रखकर 2004 में उन्हें देश के पहले गैर हिंदू प्रधानमंत्री के रूप में चुन लिया गया। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने कई अहम फैसले लिए जो कि आज भी देश के हित में काम कर रहे हैं, फिर वो चाहें आरटीआई हो, मनरेगा रोजगार गारंटी अधिनियम हो या फिर खाद्य सुरक्षा बिल हो। उन्हीं की सरकार में देश के हर नागरिक को विशेष पहचान संख्या यानी आधार कार्ड से जोड़ा गया।

इस योजना की तारीफ यूएन ने भी की। उनके योगदान उनकी आलोचना से हमेशा बड़े रहेंगे।उनके जीवन पर एक ‘द एक्सीडेंटर प्राइम मिनिस्टर’ के नाम से बीते साल फिल्म बनी, जिसमें अनुपम खैर ने मनमोहन सिंह का किरदार निभाया।

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