NEW DELHI : मोबाइल और सोशल मीडिया के जरिए आप तक वह तस्वीर पहुंच चुकी होगी जिसमें दिख रहा है कि अयोध्या में नव निर्मित राम मंदिर के गर्भ गृह में भगवान राम लाल की नई प्रतिमा को विराजमान किया गया है। काले पत्थर से मूर्ति का निर्माण हुआ है और अभी तक उद्घाटन नहीं हुआ है इसीलिए भगवान राम की प्रतिमा के मुंह पर कपड़ा बंधा हुआ है। विभिन्न मीडिया चैनल में अलग अलग एंगल से इस खबर को प्रस्तुत किया जा रहा है। बताया जा रहा है की प्रतिमा को स्थापित करने के दौरान जो मजदूर या भक्ति मंदिर परिसर में उपस्थित थे सब के सब भावुक हो रहे थे। कुछ लोग तो भावुक होकर रोने भी लगे। अब सवाल उठता है कि नए राम मंदिर में अगर नए राम भगवान विराजित हो गए हैं तो पुराने वाले राम भगवान का क्या होगा।
इस बाबत ज्योर्तिमठ बद्रिकाश्रम हिमालय उत्तराखंड के शंकराचार्य स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती 1008 ने पत्र लिखकर अयोध्या राम मंदिर ट्रस्ट के महंत नृत्य गोपाल दास जी महाराज को एक पत्र लिखा है और उनसे पांच सवाल पूछे हैं।
शंकराचार्य का कहना है कि टीवी चैनल के माध्यम से पता चला है कि रामलला की मूर्ति किसी स्थान विशेष से राम मंदिर परिसर में लाई गई है और उसी की प्रतिष्ठा निर्माण अधीन मंदिर के गर्भ गृह में की जा चुकी है। एक ट्रक भी दिखाया गया जिसमें वह मूर्ति लाई जा रही है। इससे पता चलता है कि नवनिर्मित श्री राम मंदिर में किसी नवीन मूर्ति की स्थापना हो रही है, जबकि श्री राम लला विराजमान तो पहले से ही परिसर में विराजमान है।
शंकराचार्य ने सवाल उठाते हुए पूछा है कि अगर नवीन मूर्ति की स्थापना की जाएगी तो रामलला विराजमान का क्या होगा। अभी तक राम भक्त यही समझते थे कि यह नया मंदिर श्री राम लला विराजमान के लिए बनाया जा रहा है पर अब किसी नई मूर्ति के निर्माण अधीन मंदिर के गर्भ गृह में प्रतिष्ठा के लिए ले जाने पर आशंका प्रकट हो रही है कहीं इससे श्री राम लला विराजमान की अपेक्षा ना हो जाए।
शंकराचार्य ने यह भी याद दिलाया है कि यह वहीं रामलला विराजमान है जो अपनी जन्मभूमि पर स्वयं प्रकट हुए हैं, जिसकी गवाही मुस्लिम चौकीदार ने भी दी है, जिन्होंने जाने कितनी परिस्थितियों का वहां पर प्रकट होकर डटकर सामना किया है, जिन्होंने सालों साल टेंट में रखकर धूप बरसा और ठंड सही है, जिन्होंने न्यायालय में स्वयं का मुकदमा लड़ा और जीता है।
शंकराचार्य ने आग्रह करते हुए कहा है कि हम सविनय आपसे अनुरोध कर रहे हैं कि कृपया यह सुनिश्चित करें कि निर्माणाधीन मंदिर के गृभगृह में जो प्रतिमा प्रतिष्ठा की बात की जा रही है वहां पूर्ण प्रमुखता देते हुए श्री रामलला विराजमान की ही प्रतिष्ठा की जाए। अन्यथा किया गया कार्य इतिहास जनभावना नैतिकता धर्मशास्त्र और कानून आदि की दृष्टि में अनुचित होगा, श्री रामलला विराजमान पर बहुत बड़ा अन्याय होगा।
शंकराचार्य का यह भी कहना है कि हम स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि ट्रस्ट सद्भावना के संवर्धन के लिए अगर किन्ही और मूर्तियों को यथास्थान लगाना चाहता है तो उसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं है, लगाई जा सकती है परंतु मुख्य विधि पर मुख्य रूप से श्री राम लला विराजमान की ही प्रतिष्ठा अनिवार्य है, कृपया यह सूचित कर हमें अवगत भी कराएं ऐसी अपेक्षा है.
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