New Delhi : राम जो भारत के जन-जन में रमे हुए हैं। ऐसे राजा राम की कथा जिसे आज भारत का बच्चा-बच्चा जानता है इसके पीए बड़ा योगदान है रामानंद सागर की रामायण का। रामायण जिसके पात्र से लेकर गाने और संगीत योजना इतने कुशल तरीके से रचे गए की संपुर्ण राम कथा सजीव हो उठी। रामायण आज अपने पात्रों से तो जानी ही जाती है, लेकिन उसमें आए गीतों का भी उतना ही महत्व है जितना की पात्रों का। बीच बीच में जब रामायण में गाने बज उठते हैं तो पात्र और उनका अभिनय सजीव हो जाता है।
ये गाने सुन दर्शक भावुक हो उठते हैं। आज हम आपको इन्हीं गीतों के लेखन और उन्हें इतना कर्णप्रिय बनाने वाली आवाज के बारे में बताएंगे। ये आवाज है रविंद्र जैन की जो जन्म से ही दृष्टिबाधित थे। उनके माता पिता ने कभी सोचा नहीं था कि वो जिस बच्चे के भविष्य की इतनी चिंता करते हैं वो अपनी आवाज से पूरी दुनिया में जाना जाएगा। आज उन्हें आधुनिक सूरदास के नाम से भी जाना जाता है।
रवीन्द्र जैन का जन्म 28 फरवरी 1944 में उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के रामपुर गाँव में हुआ था। जन्म होते ही डॉक्टरों ने बता दिया था कि बच्चा सारी जिंदगी देख नहीं पाएगा। जैसे जैसे वे बड़े हो रहे थे उन्हें लेकर पूरा परिवार चिंतित रहता। लेकिन कहते हैं न कि अगर हुनर कहीं होता है तो वो अपना रास्ता बना ही लेता है। मात्र 4 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने मंदिरों में, भजन मंडलियों के साथ रहकर गाना बजाना सीख लिया और बड़ी तल्लीनता से भजन को गाते। भजन मंडलियों के साथ रहकर ही उन्होंने संगीत मोटा-मोटी जानकारी ले ली। जब वे बड़े हुए तो उन्होंने अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से संगीत में ही औपचारिक शिक्षा ग्रहण की। वैसे बड़े भाई डी.के. जैन उन्हें बचपन से ही धार्मिक ग्रन्थ, दोहे, चौपाईयां पढकर सुनाते थे। रामचरित मानस के सारे दोहे-चौपाई उन्हें 15 वर्ष की आयु तक याद हो गई। आज भी जब वो इन चौपाइयों को गाते हैं तो लगता है कि कोई सिर्फ गले से ही नहीं अपनी आत्मा से गा रहा है। लगता है जैसे उनका रोम रोम प्रभु भक्ति में डूबा हो।
वो जब खुद के लिखे भजनों को गाते तो परिवार से लेकर आस पास के लोग उन्हें बड़ी तल्लीनता से सुनते उनकी आवाज के सब कायल थे। उनके इसी हुनर पर पिता जी ने भरोसा कर रविंद्र को अपना भविष्य बनाने के लिए कलत्ता भेज दिया वहां उन्होंने संगीत पर और अध्यन किया। वहां से फिर उन्होंने मुंबई की ट्रेन पकड़ ली। अब तो उनकी जो भी आवाज सुनता उन्हें प्रमोट करने की सोचता। जैसे ही उन्हें फिल्मों में एंट्री मिली उनकी जैसे किस्मत खुल गई। इसके बाद उन्हें खूब काम मिला। अब तो वो गीत लिखते भी उन्हें कंपोज भी करते और उन्हें गाते भी। इन्होंने अपने फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत फ़िल्म सौदागर से की थी।
Ravindra Jain made Ramayan a hit on Music Side.This number is one of my favourite. Do U remember the big rally at Boat Club which did gave tremendous boost to Ram Mandir Movement. He sang from the dias this song which always energises Rambhakts. Hear it🙏https://t.co/aOF5J3NbAR
— Nationalist Indian/Sanjay Singh (@NationalistIn14) April 3, 2020
कई फिल्मे जिसमें इन्होंने गीत भी लिखे थे और उनको स्वरबद्ध भी किया था फ्लॉप रहीं लेकिन रविंद्र फ्लॉप नहीं हुए क्योंकि उनकी आवाज फ्लॉप नहीं हुई, उनका हुनर फ्लॉप नहीं हुआ। वो अपना काम पूरी लगन से करते गए। बाद में इन्हें सन् 1985 में फ़िल्म राम तेरी गंगा मैली के लिए फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार भी मिला।
इसके बाद उनकी आवाज फिल्मी पर्दे से लोगों के दिलों में बसी रामायण सीरियल के जरीए, जहां उन्हें अपनी राम भक्ति से दूसरों को भी आनंदित करने का मौका मिला। मंगल भवन अमंगल हारी, राम भक्त ले चला राम की निशानी, मैैया तेने का ठानी मन में राम सिया भेज दए बन में, जैसे गीतों को न केवल अपनी अद्वितीए आवाज दी बल्कि इनका लेखन भी उन्होंने ही किया। इसके साथ ही कृष्ण भजन, शिव भजन भी उन्होेंने बड़ी सजीवता से गाए। फिल्मों में भी उन्होंने कुछ एतिहासिक गीत लिखे उनकी लिस्ट इस प्रकार है।
A maestro of melodies who brought the light of music to darkness.
Remembering Ravindra Jain on his birthday: https://t.co/hhbZzH3Ug3 pic.twitter.com/8l5ZNzKtQc
— Saregama (@saregamaglobal) February 28, 2019
गीत गाता चल, ओ साथी गुनगुनाता चल (गीत गाता चल-1975) जब दीप जले आना (चितचोर-1976) ले जाएंगे, ले जाएंगे, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (चोर मचाए शोर-1973) ले तो आए हो हमें सपनों के गांव में (दुल्हन वही जो पिया मन भाए-1977) ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिए (पति, पत्नी और वो-1978) एक राधा एक मीरा (राम तेरी गंगा मैली-1985) अंखियों के झरोखों से, मैंने जो देखा सांवरे (अंखियों के झरोखों से-1978) सजना है मुझे सजना के लिए (सौदागर-1973) हर हसीं चीज का मैं तलबगार हूं (सौदागर-1973) श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम (गीत गाता चल-1975) कौन दिशा में लेके (फिल्म नदियां के पार) सुन साहिबा सुन, प्यार की धुन (राम तेरी गंगा मैली-1985) मुझे हक है (विवाह)।