New Delhi : बस मन में सच्ची श्रद्धा होनी चाहिए, प्रभु कृपा अवश्य करते हैं। वैसे तो माता वैष्णो देवी से जुड़ी कई कथाएं हैं, पर जो कथा सबसे अधिक प्रचलित है वो आज आपको बताते हैं। वैष्णो देवी ने अपने एक परम भक्त पंडित श्रीधर की भक्ति से प्रसन्न होकर उसकी लाज बचाई। माता ने पूरे जगत को अपनी महिमा का बोध कराया। तब से आज तक लोग इस तीर्थस्थल की यात्रा करते हैं और माता की कृपा पाते हैं। कटरा से कुछ दूरी पर स्थित हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। वे नि:संतान होने से दु:खी रहते थे। एक दिन उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को बुलवाया।
Around 700 years back, the legend goes Mata Vaishnavi revealed herself to Pandit Shridhar at a place now known as Bhoomika Mandir. Bhoomika means an introduction, a book or story, & darshan at this place symbolically imply the beginning of this great tale of Mata Vaishno Devi. pic.twitter.com/L69NQLoa1U
— rahulvaidya (@rahulva19610064) October 8, 2018
@devduttmyth as per our knowledge vaishno devi did not offer food to Bhairav, it was shridhar Pandit and mata was in a Kanya Roop that time
— Amit Bhargava (@bhargavamit21) September 27, 2016
Live from Mata Vaishno Devi Ji pic.twitter.com/by1zfrILp8
— HINDU MANDIR LIVE (@HinduMandirLive) October 16, 2020
Special arrangements were made for the Navratri festival at Mata Vaishno Devi temple. Following Covid protocols, the Navratri festival at the temple will start on Saturday. As per the shrine board, the per-day pilgrims limit has been increased from 5000 to 7000. pic.twitter.com/x1BYJTIjey
— Eagle Eye (@SortedEagle) October 16, 2020
मां वैष्णो कन्या वेश में उन्हीं के बीच आ बैठीं। पूजन के बाद सभी कन्याएं तो चली गईं, पर मां वैष्णो देवी वहीं रहीं और श्रीधर से बोलीं, ‘सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ।’ श्रीधर ने उस दिव्य कन्या की बात मान ली और आस-पास के गांवों में भंडारे का संदेश पहुंचा दिया। वहां से लौटकर आते समय गुरु गोरखनाथ व उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ जी के साथ उनके दूसरे शिष्यों को भी भोजन का निमंत्रण दिया।
भोजन का निमंत्रण पाकर सभी गांववासी अचंभित थे कि वह कौन सी कन्या है, जो इतने सारे लोगों को भोजन करवाना चाहती है? इसके बाद श्रीधर के घर में अनेक गांववासी आकर भोजन के लिए जमा हुए। तब कन्या रूपी मां वैष्णो देवी ने एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया। भोजन परोसते हुए जब वह कन्या भैरवनाथ के पास गई, तब उसने कहा कि मैं तो खीर- पूड़ी की जगह मां’स खाऊंगा और म’दिरापान करूंगा।
तब कन्या रूपी मां ने उसे समझाया कि यह ब्राह्मण के यहां का भोजन है, इसमें मांसाहार नहीं किया जाता। किंतु भैरवनाथ ने जान-बूझकर अपनी बात पर अड़ा रहा। जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब मां ने उसके कपट को जान लिया। मां वायु रूप में बदलकर त्रिकूटा पर्वत की ओर उड़ चलीं। भैरवनाथ भी उनके पीछे गया।
माना जाता है कि मां की रक्षा के लिए पवनपुत्र हनुमान भी थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर बाण चलाकर एक जलधारा निकाली और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा बाणगंगा के नाम से जानी जाती है। इसके पवित्र जल को पीने या इसमें स्नान करने से श्रद्धालुओं की सारी थकावट और तकलीफें दूर हो जाती हैं।
इस दौरान माता ने एक गुफा में प्रवेश कर नौ माह तक तपस्या की। भैरवनाथ भी उनके पीछे वहां तक आ गया। तब एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिसे एक कन्या समझ रहा है, वह आदिशक्ति जगदम्बा है, इसलिए उस महाशक्ति का पीछा छोड़ दे। भैरवनाथ ने साधु की बात नहीं मानी। तब माता गुफा की दूसरी ओर से मार्ग बनाकर बाहर निकल गईं। यह गुफा आज भी अर्द्धकुमारी या आदिकुमारी या गर्भजून के नाम से प्रसिद्ध है।
अर्द्धकुमारी के पहले माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहां माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था। गुफा से बाहर निकल कर कन्या ने देवी का रूप धारण किया। माता ने भैरवनाथ को चेताया और वापस जाने को कहा। फिर भी वह नहीं माना। माता गुफा के भीतर चली गईं। तब माता की रक्षा के लिए हनुमानजी गुफा के बाहर थे और उन्होंने भैरवनाथ से युद्ध किया। भैरव ने फिर भी हार नहीं मानी। जब वीर लंगूर निढाल होने लगा, तब माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लेकर भैरवनाथ का संहार कर दिया। भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किमी दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा। उस स्थान को भैंरोनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है।
जिस स्थान पर मां वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान पवित्र गुफा अथवा भवन के नाम से प्रसिद्ध है। इसी स्थान पर मां महाकाली (दाएं), मां महासरस्वती (मध्य) और मां महालक्ष्मी (बाएं) पिंडी के रूप में गुफा में विराजमान हैं। इन तीनों के सम्मिलत रूप को ही मां वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है।
कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने मां से क्षमादान की भीख मांगी। माता वैष्णो देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी। उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक कोई भक्त, मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा। उसी मान्यता के अनुसार आज भी भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद करीब पौने तीन किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई करके भैरवनाथ के दर्शन करने जाते हैं।
इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं। इस बीच पंडित श्रीधर अधीर हो गए। वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते आगे बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था, अंततः वे गुफा के द्वार पर पहुंचे। उन्होंने कई विधियों से पिंडों की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली। देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुईं। वे उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया।
Shrine was discovered and established by the Baridars under the spiritual guidance of Pandit Shridhar in the 10th Century AD.
Baridars used to manage and control Shri Mata Vaishno Devi Shrine before its State take over in 1986.
— Bar & Bench (@barandbench) August 27, 2020
Bhawan of Shri Mata Vaishno Devi Ji and the area surrounding have been decorated with flowers during the Navratri. Yatris are coming in large numbers amid ongoing COVID-19 pandemic.@Rameshkumarias | @ShamsherSLive pic.twitter.com/hA484U4870
— Gursimran Singh (@gursymran) October 20, 2020
Kol Kandoli Temple is situated in Nagrota city in UT Jammu & Kashmir at a distance of 14 km from Jammu. The temple is dedicated to Mata Vaishno Devi. The Goddess is established in this temple in the form of a pindi. #Navratri #JaiMataDi pic.twitter.com/cFFHsWyNId
— Holidays Hunt 🇮🇳 (@HolidaysHunt) October 20, 2020
तब से श्रीधर और उनके वंशज देवी मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं। आज भी बारहों मास वैष्णो देवी के दरबार में भक्तों का तांता लगा रहता है। सच्चे मन से याद करने पर माता सबका बेड़ा पार लगाती हैं।